दुनिया को खुद साफ करना होगा अपना कचरा: पोप
१९ जून २०१५पोप फ्रांसिस ने अपने भावनात्मक और गंभीर संबोधन में सभी इंसानों को "धरती और गरीबों दोनों की कराह" सुनने को कहा. कैथोलिक गिरजे के प्रमुख ने एक बार फिर पूरे विश्व में जारी मुनाफा कमाने की प्रतिस्पर्धा में बढ़ते उपभोक्तावाद की ओर ध्यान दिलाने की कोशिश की. उन्होंने पर्यावरण पर अपना पत्र जारी करते हुए उम्मीद जताई कि इससे आम लोगों को उनकी रोजमर्रा की जिंदगी में और पेरिस यूएन कॉंन्फ्रेंस में शामिल होने वाले महत्वपूर्ण लोगों के दिलोदिमाग में जलवायु परिवर्तन को लेकर सही निर्णय लेने में मदद मिलेगी. पोप ने लिखा है, "हमने पहले कभी अपने साझा घर के साथ इतना बुरा व्यवहार नहीं किया था, जितना हमने पिछले करीब 200 सालों में किया है." पोप ने साझा घर के बारे में आगे लिखा है, "धरती, हमारा घर अब कचरे के असीम ढेर जैसी दिखने लगी है."
जलवायु परिवर्तन को लेकर चिंतित सामाजिक कार्यकर्ताओं, वैज्ञानिकों, राष्ट्रीय नेताओं ने पोप के भाषण का स्वागत किया है. पोप ने कहा कि इन सबके लिए मुख्य तौर पर मनुष्य जिम्मेदार है और उन्होंने उम्मीद जतायी कि साल के अंत में होने वाले पेरिस सम्मेलन में पर्यावरण को बचाने की दिशा में कोई ठोस कदम उठाया जाएगा. जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल, अर्जेंटीना की राष्ट्रपति क्रिस्टीना फर्नांडेज दे किर्षनर के अलावा हजार साल में पहली बार ऑर्थोडॉक्स चर्च के प्रतिनिधि भी 2013 में पोप फ्रांसिस की ताजपोशी में उपस्थित थे. अपना पदभार ग्रहण करते समय भी पोप ने पर्यावरण संरक्षण, गरीबों की मदद और सुरक्षा की अपील की थी. कार्डिनल बैर्गोलियो ने सेंट फ्रांसिस ऑफ आसिसी का नाम गरीबी, दान और प्रकृति के प्रति प्रेम के सम्मान में अपनाया.
तमाम प्रशंसाओं के बीच ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जिन्होंने पोप के पत्र "एनसिक्लिकल" की आलोचना की. कुछ राजनीतिक संकीर्णवादी कैथोलिक पोप के आर्थिक विश्लेषण की बुराई तो अमेरिका के कुछ रिपब्लिकन नेता क्लाइमेट पॉलिसी से धर्म को जोड़ने को गलत बताते हैं. अमेरिकी हाउस कमेटी ऑन नैचुरल रिसोर्सेज के अध्यक्ष और ऊटा के रिपब्लिकन बॉब बिशप कहते हैं, "नहीं माफ कीजिए, यह एक राजनीतिक मामला है...कई लोग इस बारे में अपनी राय बना चुके हैं, इसलिए ऐसे भाषणों से कुछ फर्क नहीं पड़ने वाला है."
पिछले 50 सालों से वैज्ञानिक जलवायु परिवर्तन के खतरों की बात करते आए हैं. तमाम आंकड़ों और रिसर्च आधारित संभावनाओं के सामने रखे जाने के बावजूद पूरे विश्व में इसे लेकर राजनीतिक स्तर पर एकजुटता नहीं बन पायी है. धार्मिक नेताओं के मार्गदर्शन से इस बाबत साझा लक्ष्य तय करने में मदद मिलने की उम्मीद है.
आरआर/एमजे (एपी)