देहव्यापार में फंसे जर्मन बच्चे
६ अगस्त २०१३यह बात विवाद से परे है कि जर्मनी में बच्चे भी सेक्सवर्कर हैं, लेकिन उसके आयाम का पता नहीं है. यौन शोषण से बच्चों की सुरक्षा करने वाले कार्यदल की मैनेजर मेष्टिल्ड माउरर कहती हैं, "बाल देहव्यापार के बारे में शायद ही कोई सूचना है क्योंकि इसके बारे में जानकारी, तथ्यों और आंकड़ों का अभाव है." जबकि बच्चों को यौन शोषण से बचाने के लिए इसकी बेहतर जानकारी बहुत जरूरी है. समस्या यह है कि पुलिस के आंकड़े स्पष्ट नहीं हैं. वे यौन हिंसा और दुर्व्यवहार के बारे में जानकारी तो देते हैं लेकिन उसके पीछे की संरचनाओं के बारे में नहीं. दूसरी ओर बाल देहव्यापार ढंके छिपे होता है.
चकलाघरों, क्लबों और सेक्स वर्करों के लिए किराए पर लिए गए मकानों में नाबालिग लड़कियां शायद ही मिलती हैं. इसलिए उनका पता लगाना बेहद मुश्किल है. उसके संकेत भी कम ही मिलते हैं. कुछ अपवाद भी हैं, जैसे डॉर्टमुंड का मिडनाइट मिशन (मिटरनाख्ट मिसियोन), जो सेक्स वर्करों के साथ मिल कर काम करता है. वहां मदद के लिए लिए आने वाला हर 11वां इंसान नाबालिग होता है. सेक्स वर्करों के संगठन हाइड्रा के अनुसार पूरी जर्मनी में करीब 4,00000 सेक्स वर्कर हैं. उनके ग्राहकों के बारे में कम ही जानकारी है. सिर्फ इतना कि उनमें से ज्यादातर मर्द हैं और समाज के सभी तबकों से आते हैं.
बहुमत जर्मनी से
जानकारी दिखाती है कि देहव्यापार के बारे में पूर्वाग्रह गलत हैं. माउरर कहती हैं, "हम जानते हैं कि बच्चों का देहव्यापार जितना समझा जाता है, उससे ज्यादा बहुरूपी है." यूरोपीय संघ में मानव तस्करी अरबों यूरो का कारोबार है, लेकिन इसके शिकारों में सिर्फ पूर्वी यूरोप या अफ्रीका की लड़कियां ही नहीं हैं, बल्कि बहुत सी जर्मन भी हैं. डॉर्टमुंड की राहत संस्था मिडनाइट मिशन के अनुसार उनके द्वारा मदद पाने वाले एक तिहाई युवा जर्मन हैं.
उनमें से कुछ लड़कियां नियमित रूप से धंधा करती हैं. वे स्कूल और शाम के खाने के बीच धंधे पर जाती हैं. जबकि दूसरी ड्रग एडिक्ट हैं, देहव्यापार से अपनी लत के लिए पैसा जुटाती हैं. अक्सर ये लड़कियां बेघर भी होती हैं. सेक्स वर्कर बनने की वजहें भी अलग अलग हैं. लड़के और लड़कियां परिचितों और रिश्तेदारों के जरिए तो देहव्यापार में पहुंचती ही हैं, अक्सर पराये मर्द और औरतें विभिन्न तरीकों से उनका भरोसा जीतकर उन्हें इस कारोबार में धकेलते हैं.
लड़कियों के लिए प्रेमी
मिडनाइट मिशन में काम करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता सिल्विया फोरहॉयर के अनुसार लड़कियों को देह व्यापार में डालने का एक तरीका लवरब्यॉय का इस्तेमाल है. "लवरब्यॉय ऐसे युवा मर्द हैं जो टीनएज लड़कियों को स्कूलों, पब और डिस्कोथेक में ढूंढते हैं और उन्हें भावनात्मक रूप से निर्भर बना लेते हैं." लड़कियां उनसे प्रभावित हो उन्हें दिल दे बैठती हैं.
इस रिश्ते के दौरान लड़की को उसके दोस्तों और परिवार वालों से दूर कर दिया जाता है, लवरब्यॉय सबसे अहम हो जाता है. उसके बाद वह लड़की को अपनी मुश्किलों के बारे में बताना शुरू करता है. फोरहॉयर बताती हैं कि लवरब्यॉय लड़की को अपनी जुए की लत और कर्ज के बारे में बताता है, यह भी बताता है कि उसे धमकी दी जा रही है. और कि लड़की को उसकी मदद करनी चाहिए. बहुत सी लड़कियां उन पर भरोसा कर लेती हैं और उन्हें धंधे पर भेज दिया जाता है.
माउरर बताती हैं कि लड़कियों के अलावा बढ़ते पैमाने पर लड़के भी प्रभावित हैं. उन्हें दूसरे तरीकों से लुभाया जाता है, मसलन खुले घर के जरिए. ये घर पेडोसेक्शुअल लोग किराए पर लेते हैं, जो शुरू में मिलने की जगह होती है. माउरर कहती हैं कि लड़कों को वहां खेलने और फिल्म देखने के लिए बुलाया जाता है, कभी कभार पोर्न फिल्में भी दिखाई जाती हैं. लड़के वहां आने वालों के साथ संबंध बनाने लगते हैं, मर्दों से दोस्ती भी हो जाती है. बाद में उनसे यौन संबंध बनाने को कहा जाता है. उनमें से बहुत से ऐसा करने का दबाव महसूस करते हैं.
मुश्किल है बाहर निकलना
प्रभावित लोगों के साथ संपर्क बहुत मुश्किल होता है. वे शायद ही कभी मदद पाने की कोशिश करते हैं. आमतौर पर उनके रिश्तेदारों या बहन को शक होता है और वे मिडनाइट मिशन जैसे राहत संगठनों से संपर्क करते हैं. इसके साथ हालांकि शुरुआत होती है, लेकिन इस चक्कर से निकलने का रास्ता लंबा होता है. इसकी एक वजह यह भी है कि लोगों को अक्सर अपनी हालत का अंदाजा नहीं होता और अक्सर देहव्यापार में शामिल होने को वे सकारात्मक समझते हैं.
सामाजिक कार्यकर्ता फोरहॉयर बताती हैं कि एक ऐसी स्थिति होती है जिसे वे शुरुआती उत्साह कहती हैं. लड़कियां किशोर उम्र में होती हैं, वे समाज में बालिगों के लिए बनाए गए नियमों को मानने से इंकार करती हैं, देह व्यापार में जाकर सामाजिक वर्जना को तोड़ती हैं और उसे फायदेमंद समझती हैं. लड़कियों को अक्सर इस बात की भी चिंता होती है कि सोशलवर्कर लवरब्यॉय के साथ उनके रिश्ते को नुकसान पहुंचाएंगी. इसलिए इस चक्कर से बाहर निकलना तभी संभव होता है, जब लड़कियां खुद ऐसा चाहें. सोशल वर्कर के लिए सबसे जरूरी होता है कि भरोसा बना रहे.
रिपोर्ट: श्टेफनी होएफनर/एमजे
संपादन: आभा मोंढे