दो खुफिया एजेंसियों के जाल में फंसे भारत समेत 120 देश
१३ फ़रवरी २०२०1945 में दूसरे विश्वयुद्ध के खत्म होने के बाद से सन 2000 तक जर्मन और अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने 120 देशों की जासूसी की. करीब 55 साल तक की गई इस जासूसी में पश्चिमी जर्मनी की खुफिया एजेंसी बीएनडी और अमेरिकी सीक्रेट एजेंसी सीआईए शामिल थे.
मंगलवार को अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट, जर्मनी के सरकारी टेलिविजन चैनल जेडडीएफ और स्विट्जरलैंड के सरकारी प्रसारक एसआरएफ ने साझा पड़ताल में इसका खुलासा किया. अक्टूबर 1990 से पहले पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी अलग अलग देश थे.
इंवेस्टीगेशन के दौरान पता चला कि दुनिया के ज्यादातर देशों ने अपनी गोपनीय जानकारी सुरक्षित रखने के लिए स्विट्जरलैंड की एक कंपनी क्रिप्टो एजी की सेवाएं लीं. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान इस कंपनी ने अमेरिकी सेना के लिए कोड मशीन बनाई थी. मशीन गुप्त संदेश भेजने और रिसीव करने में बेहद सफल रही.
महायुद्ध के बाद कई देशों ने करोड़ों डॉलर खर्च कर क्रिप्टो एजी से सीक्रेट संभालने वाली सर्विस ली. कंपनी की कोड मशीनों के जरिए इन देशों ने अपने जासूसों, राजनयिकों, सेनाओं और वरिष्ठ नेताओं के गोपनीय संदेश भेजे. इन देशों में भारत, पाकिस्तान, ईरान और दक्षिण अमेरिकी देशों समेत 120 राष्ट्र शामिल थे.
लेकिन अब जांच में पता चला है कि यह कंपनी पूरी तरह सीआईए और बीएनडी के नियंत्रण में थी. रिपोर्ट के मुताबिक, 1970 में बीएनडी और सीआईए ने चुपचाप क्रिप्टो एजी को अपने नियंत्रण में ले लिया. इस कंपनी के ग्राहक रहे किसी देश को इस नियंत्रण की हवा भी नहीं थी.
अमेरिकी और जर्मन खुफिया एजेंसियों ने क्रिप्टो की मशीनों, इलेक्ट्रॉनिक सर्किटों, चिपों और सॉफ्टवेयरों के जरिए दुनिया भर की सरकारों के संदेश और कोड रिकॉर्ड किए. सीआईए के गोपनीय रिकॉर्डों में इसे पहले ऑपरेशन ‘थिसॉरस' नाम दिया गया. बाद में ऑपरेशन को रुबीकॉन नाम रखा गया.
1980 के दशक में क्रिप्टो की मशीनों ने दुनिया भर के गोपनीय संदेशों का करीब 40 फीसदी हिस्सा सीआईए और बीएनडी के सामने रखा. 1979 में ईरान में अमेरिकी दूतावास में उपजे बंधक संकट और 1982 में ब्रिटेन और अर्जेंटीना के बीच फाल्कन द्वीपों को लेकर हुए युद्ध में भी जर्मन और अमेरिकी एजेंसियों ने सटीक जानकारियां जुटाईं.
खुद को अंतरराष्ट्रीय राजनीति में तटस्थ करार देने वाले देश स्विट्जरलैंड में इस खुलासे के बाद हंगामा हो रहा है. देश के प्रमुख अखबार ट्रिब्यून दे जेनेवा ने लिखा है कि उनका देश "तथाकथित साझेदार खुफिया एजेंसियों" का मेजबान बना.
अपने संपादकीय में अखबार ने यह भी कहा, "इस बात की बहुत ही ज्यादा संभावना है कि स्विस अधिकारियों को जासूसी का पता था और उन्होंने तटस्थता के बावजूद अपनी आंखें मूंद लीं." स्विट्जरलैंड के सबसे बड़े शहर जेनेवा में संयुक्त राष्ट्र का यूरोपीय मुख्यालय है. शहर में इंटरनेशनल कमेटी ऑफ द रेड क्रॉस का भी हेडक्वॉर्टर है. तटस्थता के दावे के चलते स्विट्जरलैंड को अंतरराष्ट्रीय विवादों में ईमानदार मध्यस्थ भी माना जाता रहा है.
स्विट्जरलैंड में सदियों से तटस्थता की परंपरा रही है. देश पहले और दूसरे विश्वयुद्ध में भी किसी तरह से शामिल नहीं हुआ. यूरोप में भारी सैन्य तनाव के दौरान भी स्विट्जरलैंड कभी नाटो जैसे सैन्य संगठन का हिस्सा नहीं बना. यूरोप के केंद्र में बसा स्विट्जरलैंड आज भी यूरोपीय संघ का अंग नहीं है.
लेकिन इस खुलासे के बाद स्विस सरकार दबाव में है. देश ने एक रिटायर्ड संघीय जज को जांच का जिम्मा सौंपा है. माना जा रहा है कि जांच के नतीजे जून 2020 तक सामने आएंगे. इस बीच क्रिप्टो एजी का एक्सपोर्ट लाइसेंस भी निलंबित कर दिया गया है. ज्यादातर राजनीतिक दल सरकार के इन कदमों से संतुष्ट नहीं हैं. वे बहुत कुछ किए जाने की मांग कर रहे हैं.
मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल की स्विस शाखा ने एक ट्वीट करते हुए पूछा है, "क्या हमारी खुफिया एजेंसियों और सरकार को इस बात का पता था कि चिली और अर्जेंटीना में सैन्य तानाशाहियां लोगों को प्रताड़ित कर रही थीं, उनकी हत्याएं कर रही थीं."
रिपोर्ट: ओंकार सिंह जनौटी (एएफपी)
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