धरती पर लौटेंगे विलुप्त जीव
२२ अप्रैल २०१३बायोजेनेटिक्स से जुड़े कुछ वैज्ञानिकों को यकीन है कि वो अपनी जिंदगी में ही विलुप्त हो चुके जीवों को दोबारा धरती पर ला पाएंगे. इनमें से कुछ जीव तो हजारों साल पहले धरती से विलुप्त हो चुके हैं. आने वाले गुरुवार को फ्रांसिस क्रिक और जेम्स वॉटसन के डीएनए की संरचना बताने वाले रिसर्च पेपर को जारी किए 60 साल हो जाएंगे. कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि इस जानकारी को आधार बनाकर किए गए प्रयोगों के बलबूते अगले कुछ साल में पहले दुर्लभ जीव को फिर पैदा किया जा सकेगा.
इन जीवों के संरक्षित ऊतकों से हासिल जेनेटिक पदार्थों को उनके परिवार के दूसरे जीवों के परिवर्तित अंडों के साथ मिलाकर उनकी क्लोनिंग की जा सकेगी. आगे चल कर डीएनए की इस कृत्रिम संरचना के आधार पर कुछ जीव दोबारा आ सकेंगे, ऐसे दावे किए जा रहे हैं. कनाडा की मैकमास्ट यूनिवर्सिटी में जेनेटिक्स के वैज्ञानिक हेन्ड्रिक पोयनार ने बताया, "गैस्ट्रिक फ्रॉग के लिए शायद एक या दो साल लगेंगे और हाथियों के लिए 20 या 30 साल या शायद थोड़ा जल्दी." 2009 में रिसर्चरों ने एलान किया कि उन्होंने एक हिरण की एक प्रजाति बुकार्डो की क्लोनिंग कर ली है. इसके लिए डीएनए उसके परिवार की आखिरी सदस्य स्पेनी पहाड़ी बकरी से लिए गए थे जिसकी 2000 में मौत हो गई. यह पहला जीव था जो विलुप्त प्रजाति का था, हालांकि सफलता मिली जुली थी क्योंकि एक स्थानीय बकरी के पेट से पैदा हुए जीव ने पैदा होने के 10 मिनट बाद ही दम तोड़ दिया. असामान्य फेफड़ों की वजह से वह जी नहीं सका.
पिछले महीने ऑस्ट्रेलिया की न्यू साउथ वेल्स यूनिवर्सिटी में एक टीम ने भी मेंढक की एक विलुप्त प्रजाति की क्लोनिंग का दावा किया, लेकिन सारे जीव कुछ ही दिनों में मर गए. ऑस्ट्रेलियाई टीमें तस्मानियाई बाघों को भी जिंदा करने की कोशिश कर रही हैं. यह बाघ 1930 के दशक में लुप्त हो गए. जापान में जेनेटिक्स के वैज्ञानिकों का कहना है कि हिमयुग में लुप्त हो चुके विशालकाय हाथियों की अगले छह साल के भीतर क्लोनिंग की योजना बनाई है. उधर ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने हिंद महासागर के उस पक्षी की डीएनए संरचना हासिल कर ली है जो 1680 में ही विलुप्त हो गया. वैज्ञानिकों का मानना है कि दो लाख साल तक के जीवों के डीएनए बचे हुए है और उन्हीं के दोबारा पैदा होने की संभावना है. इस दायरे में डायनोसोर नहीं आते, जाहिर है कि जुरासिक पार्क कभी नहीं बन पाएगा. डीएनए संरचनाओं को बड़ी सावधानी से बचा कर रखना होता है और इनमें कोई गड़बड़ी न होने के साथ ही, गर्भपात और समय से पहले मौत से जैसे खतरों से जूझना पड़ता है.
नैतिक सवाल
लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में समाजशास्त्री कैरी फ्राइज को डर है कि जीवों को दोबारा पैदा करने की जल्दबाजी में नैतिक सवालों को पीछे छोड़ दिया गया है. उनका कहना है, "मैं इसलिए चिंता में हूं क्योंकि सारा ध्यान इस बात पर है कि क्या हम ये कर सकते हैं. इसकी बजाए यह सोचना चाहिए कि पैदा होने वाले इन जीवों के साथ हम क्या करेंगे." उनका कहना है कि ज्यादातर जीव इसलिए विलुप्त हुए क्योंकि उनके प्राकृतिक आवास खत्म हो गए थे. विस्तृत जीन पूल न होने की स्थिति में यह क्लोन वाले जीव महज म्यूजियम में प्रदर्शन की वस्तु बन कर रह जाएंगे. उनके पास समुदाय से जोड़ने वाले न तो असल मां बाप होंगे न ही ये बताने वाला कि उड़ें कैसे या शिकार कैसे करें.
कुछ वैज्ञानिकों की यह भी दलील है कि विलुप्त जीवों को फिर पैदा करने की कोशिश में जो समय और पैसा खर्च किया जा रहा है, वह दुर्लभ प्राणियों की रक्षा में इस्तेमाल हो सकता था. वर्ल्ड वाइल्ड फंड से जुड़े कोलमन ओ क्रिओडेन का कहना है, "विलुप्त जीवों को दोबारा पैदा करने से जीवों के संरक्षण में मदद नहीं मिलेगी बल्कि इससे बाधा ही आएगी."
हालांकि इसके कुछ फायदे भी हैं विलुप्त प्राणियों को जिंदा पाकर वैज्ञानिकों के रिसर्च का आधार मजबूत होगा और साथ ही पर्यावण के असर का भी. इसके अलावा कुछ वैज्ञानिक यह भी मानते है कि विशालकाय हाथियों का आना बंजर साइबेरिया को फिर हरा भरा कर दे या फिर टुंड्रा फिर घास के मैदान के रूप में विकसित हो जाए. इसके अलावा लुप्त होने की कगार पर खड़े जीवों के जेनेटिक्स में कुछ विविधता लाने का कोई उपाय सुझा दे. कुछ भी संभव है.
एनआर/ओएसजे (एएफपी)