धर्म और राष्ट्रवाद की चाशनी में पाकिस्तानी क्रिकेट
२९ अक्टूबर २०२१टी20 क्रिकेट विश्व कप के एक मैच में पाकिस्तान ने भारत को क्या हराया कि देश के गृहमंत्री शेख राशिद अहमद ने कह डाला कि ये जीत "इस्लाम की जीत” है. ट्विटर पर जारी एक वीडियो संदेश में मंत्री ने कहा "दुनिया भर में मुसलमान उल्लास मना रहे हैं.” पहली बार है कि किसी वर्ल्ड कप मैच में पाकिस्तान ने भारत को शिकस्त दी है. जश्न स्वाभाविक ही था, देश भर में देशभक्ति के नारे गूंजने लगे. झूमते नाचते और पाकिस्तानी झंडा लहराते हुए लोग सड़कों पर उतर आए.
ब्रिटिश हुकूमत से 1947 में आजादी मिलने के बाद से भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्तों में कड़वाहट रही है. बाकायदा तीन लड़ाइयां दोनों देशों के बीच हो चुकी हैं और दोनों देश विवादास्पद कश्मीर क्षेत्र में दखल को लेकर एक दूसरे पर आरोप लगाते आ रहे हैं. इस समूचे इलाके पर दोनों अपने प्रभुत्व का दावा करते हैं लेकिन उसके अलग अलग हिस्सों पर ही उनका शासन है.
ये भूराजनीतिक तनाव खेलों तक भी खिंचा चला आया है, खासकर क्रिकेट में जो भारत और पाकिस्तान में सबसे ज्यादा लोकप्रिय खेल है. रविवार को भारत की हार के बाद पाकिस्तानी सोशल मीडिया, भारत विरोधी पोस्ट, मीम और टिप्पणियों से भर उठा.
राष्ट्रवाद में इस्लामवाद का पुट
अतीत में, भारत पाकिस्तान की क्रिकेट प्रतिद्वंद्विता राष्ट्रवादी भावना से निर्धारित होती थी और हाल के वर्षों में मजहब ने भी इसमें एक बड़ा रोल निभाना शुरू कर दिया है. कई पाकिस्तानी मानते हैं कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार भारतीय मुसलमानों के अधिकारों को कुचल रही है. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने मोदी सरकार को बार बार एक "फासिस्ट हुकूमत” करार दिया है. उनका आरोप है कि वो न सिर्फ भारत प्रशासित कश्मीर में बल्कि देश के दूसरे हिस्सों में भी मुस्लिमों पर हिंसा कर रही है.
जानकारों का कहना है कि पाकिस्तानी गृहमंत्री अहमद का "इस्लाम की जीत” वाला बयान इसी रोशनी में देखा जाना चाहिए. क्योंकि उसका आशय यही है कि पाकिस्तान ने मुस्लिमों के खिलाफ "भारत के अत्याचारों” का "बदला” लिया है. पाकिस्तान के जानेमाने पत्रकार और सामाजिक मामलों के टिप्पणीकार नदीम फारूक पराचा ने डीडब्ल्यू को बताया कि "ये एक गैर-जिम्मेदाराना टिप्पणी थी.” वो कहते हैं, "पाकिस्तान के कई नेता हर चीज में इस्लाम को ले आते हैं. वे सत्ताधारी नेता वो काम नहीं कर पाते जिनके लिए वे चुने गए थे तो वही ये सब ज्यादा करते हैं. इस्लाम उनका आखिरी ठिकाना है.”
क्रिकेट का इस्लामीकरण
1990 के दशक तक कई पाकिस्तानी क्रिकेटर, मजहब को अपने पेशे से अलग रखा करते थे. उनमें से कई दाढ़ी नहीं रखते थे. 1992 का क्रिकेट विश्व कप पाकिस्तान की झोली में डालने वाले आज के प्रधानमंत्री इमरान खान जैसे कुछ पूर्व खिलाड़ियों की शिक्षा-दीक्षा ब्रिटेन में हुई थी. पिछले दो दशकों में कई पाकिस्तानी खिलाड़ी तबलीगी जमात में शामिल हुए थे. ये एक इस्लामी मिशनरी समूह है जिसके देश में लाखों अनुयायी हैं.
एक जमाने में अपनी "प्लेब्वॉय” छवि के लिए ब्रिटेन में चर्चित इमरान खान आज एक रूढ़िवादी नेता हैं जो मानते हैं कि पश्चिमी तहजीब का असर युवा पाकिस्तानियों को भ्रष्ट कर रहा है. कई क्रिकेटर अपने प्रेस सम्मेलनों में धार्मिक शब्दावली का इस्तेमाल करते हैं और कुछ तो जीतने के बाद मैदान पर घुटनों के बल झुककर सिर टिका देते हैं. भारत पाकिस्तान मैच के दौरान बल्लेबाज मोहम्मद रिजवान ने मैदान में नमाज अता की तो पाकिस्तानी सोशल मीडिया यूजरों ने उनकी जमकर तारीफ की.
पाकिस्तानी क्रिकेट टीम के पूर्व तेज गेंदबाज वकार यूनिस भी रिजवान के इस कदम से प्रभावित हुए बिना न रह सके. उन्होंने एक पाकिस्तानी न्यूज चैनल को बताया कि हिंदुओं के सामने रिजवान को "नमाज” अता करते हुए देखना उनके लिए बहुत खास था. बाद में वकार को अपने बयान पर माफी मांगनी पड़ी, "भावावेश में मैंने वो कह दिया जो मैं नहीं कहना चाहता था.”
पाकिस्तान में मोनोकल्चर इस्लाम
लेकिन इमरान खान के कराची स्थित 39 वर्षीय एक समर्थक कैसर इकबाल कहते हैं, "खेल के दौरान नमाज अता करने से खिलाड़ियों को एक मनोवैज्ञानिक ताकत मिलती है.” उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "वे इस बात से संतुष्ट होते हैं कि उन्होंने अपना बेस्ट दिया और अब अल्लाह ही मदद करेगा.” लाहौर स्थित एक बैंकर जाहिदा नजर का कहना है कि मुसलमान मानते हैं कि मुश्किल हालात में अल्लाह ही मानने वालों की मदद करता है. वो कहती हैं, "लेकिन मैं सोचती हूं कि खेल में जीत के लिए कड़ी मेहनत भी जरूरी है.”
लेकिन खेल के मैदान के भीतर और बाहर पाकिस्तानी क्रिकेटर इस कदर मजहबी क्यों हो जाते हैं? शोधकर्ता और पत्रकार फारूक सुलेहरिया ने डीडब्ल्यू को बताया, "इस बारे में तो ज्यादा रिसर्च नहीं हुई है लेकिन कुछ अकादमिक विद्वानों और पत्रकारों ने इस तरह की घटना को समझने की कोशिश की है.” वो कहते हैं, "हमें ये समझना होगा कि क्रिकेट खिलाड़ी भी समाज का हिस्सा हैं और पाकिस्तान में इस्लाम एक ‘मोनोकल्चर' यानी ‘एकल-संस्कृति' बन चुका है. क्रिकेटर, फिल्मी सितारे और दूसरी शख्सियतें भी इसी का फायदा उठाती हैं.”
पराचा के मुताबिक पाकिस्तान में क्रिकेट का इस्लामीकरण 2000 के शुरुआती दशकों में शुरू हुआ था जब तबलीगी जमात आंदोलन कुछ प्रमुख क्रिकेट खिलाड़ियों को अपने सदस्यों के रूप में भर्ती करने में सफल रहा. पराचा बताते हैं, "2003 के विश्व कप में टीम का प्रदर्शन बहुत खराब था, और मैच फिक्सिंग के आरोप भी लग रहे थे. ये पछतावे और पाप से छुटकारे के एक संकेत की तरह था. 2003 और 2007 के दरमियान धार्मिकता का प्रदर्शन अपने उच्चतम स्तर पर था.”
ध्यान भटकाने के लिए क्रिकेट
समाजशास्त्रियों का कहना है कि दुनिया भर में हुकूमत करने वाले वर्ग, वास्तविक राजनीतिक मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए खेलों का इस्तेमाल करते रहे हैं. पाकिस्तान में क्रिकेट भी इसी मकसद के हवाले है. क्रिकेट मुकाबलों के दौरान लोग सरकार की कमजोरियों, प्रशासनिक गड़बडियों और बेतहाशा बढ़ती मुद्रास्फीति के बारे में भूल जाते हैं और राष्ट्रवाद में पनाह लेते हैं. पराचा रेखांकित करते हैं कि "भारत और पाकिस्तान में क्रिकेट लगातार राजनीति में मुब्तिला होता जा रहा है.”
पाकिस्तान की पहली महिला क्रिकेट एंपायर
सुलेहरिया का नजरिया है कि खेल भी सकारात्मक भूमिका निभा सकते हैं. "अगर आप अफगानिस्तान के हालात देखें. क्रिकेट वहां तालिबान के खिलाफ प्रतिरोध का प्रतीक बन चुका है. लेकिन भारत और पाकिस्तान में सत्ताधारी वर्ग अपने दमनकारी रवैये से लोगों को ध्यान हटाने के लिए क्रिकेट का इस्तेमाल कर रहे हैं.” पाकिस्तान इस समय अपने इतिहास का सबसे बुरा आर्थिक संकट झेल रहा है. बढ़ती मुद्रास्फीति और मुद्रा अवमूल्यन को लेकर इमरान खान की कड़ी आलोचना की जा रही है. लेकिन उनकी सरकार को क्रिकेट के जरिए देश को "एकजुट” करने का मौका मिल जाता है.
सुलेहरिया के मुताबिक, "क्रिकेट में राष्ट्रवाद का तड़का लगाने से इमरान खान को निश्चित रूप से फायदा हुआ है लेकिन उनकी लोकप्रियता घट रही है. ये चीज़ें लंबे समय तक उन्हें बचा नहीं पाएंगीं.” इमरान ने 1992 में पेशेवर क्रिकेट से विदाई के बाद राजनीति का रास्ता लिया था. जानकारों के मुताबिक पाकिस्तान में व्यापक पैमाने पर हुए राजनीतिकरण के सबसे बड़े लाभार्थियों में इमरान भी एक हैं. देश में एक अहम राजनीतिक खिलाड़ी के रूप मे उभरने से पहले इमरान को "मसीहा” का दर्जा हासिल था जिसने देश को उसका पहला क्रिकेट विश्व कप हासिल कराया था.
उनके समर्थक मानते हैं कि अगर इमरान "चमत्कारिक ढंग से” खेल की दुनिया की बेशकीमती ट्रॉफी पाकिस्तान को हासिल करा सकते थे तो वो बेशक देश की बेशुमार समस्याओं को भी "हल” कर सकते थे. लाहौर स्थित बैंकर नजर कहती हैं, "मैं मानती हूं कि इमरान देश को भ्रष्टाचार से निजात दिला सकते हैं. वो पाकिस्तान को मजबूत बना सकते हैं जैसा उन्होंने अपनी विश्व-कप विजेता टीम के जरिए किया था. लेकिन उन्हें सरकार में एक बेहतर टीम की दरकार है.” विश्लेषकों का कहना है कि जटिल समस्याओं के साधारण समाधानों पर यकीन रखने वाले पाकिस्तानियों के राजनीतिकरण के लिए क्रिकेट जिम्मेदार है. विश्लेषक पराचा इससे सहमत हैं, "भारत और पाकिस्तान में क्रिकेट एक राजनीतिक औजार बन चुका है. वो अब महज एक खेल नहीं रह गया है.”