‘धर्म संसद’ के रूप में दिखी भारतीय संसद
२० जून २०१९सांसदों के शपथ ग्रहण कार्यक्रम में धार्मिक नारों से लेकर सांसदों को उकसाने का जो सिलसिला शुरू हुआ, वो अगले पांच साल के दौरान लोकसभा के स्वरूप की भूमिका लिखने के लिए पर्याप्त है. लोकसभा के दोनों सदनों में तमाम मुद्दों पर बहस के दौरान गहमागहमी, तल्खी और यहां तक कि झड़पें भी हुई हैं लेकिन किसी लोकसभा के गठन के साथ ही बड़े पैमाने पर धार्मिक नारों और वो भी धर्म विशेष के सांसदों को लक्ष्य करते हुए लगाए जाने का ये शायद पहला मौका रहा हो.
हालांकि इसकी शुरुआत तो 17 जून से शुरू हुए शपथ ग्रहण कार्यक्रम के पहले दिन से ही हो गई लेकिन इसके दूसरे दिन तो इस सांप्रदायिक शुरुआत की चरम परिणति देखने को मिली. सत्रहवीं लोकसभा सत्र का दूसरा दिन सांसदों के शपथ लेने के दौरान कई तरह के नारों, खासकर धार्मिक नारों का गवाह बना.
भाजपा सांसद जहां 'जय श्रीराम', 'वंदे मातरम्', 'भारत माता की जय' जैसे नारे लगाते रहे तो दूसरी पार्टियों के सांसदों ने जय भीम, जय मीम, जय समाजवाद से लेकर 'अल्लाह-ओ-अकबर' जैसे नारे भी लगाए. अपने अजीबोगरीब बयानों के लिए अक्सर चर्चा में रहने वाले यूपी के उन्नाव से बीजेपी सांसद साक्षी महाराज तो सांसद के रूप में शपथ लेने के बाद 'मंदिर वहीं बनाएंगे' के नारे लगाने लगे.
भगवा कपड़े पहने साक्षी महाराज ने संस्कृत भाषा में शपथ ली, शपथ में 'जय श्रीराम' शब्द जोड़ा था और शपथ लेने के बाद ‘मंदिर वहीं बनाएंगे' की भी शपथ एक बार संसद के भीतर भी ले ली. बाहर तो यह शपथ लेने की जैसे आदत सी पड़ गई होगी. बीजेपी सांसदों ने मेज थपथपाकर और जय श्रीराम के नारे दोहराकर उनका भरपूर उत्साहवर्धन भी किया और अपना समर्थन भी जताया.
सबसे दिलचस्प नजारा उस वक्त देखने को मिला जब हैदराबाद से एआईएमआईएम पार्टी के सांसद असदुद्दीन ओवैसी सांसद पद की शपथ लेने के लिए आगे बढ़े. तब बीजेपी सांसद जय श्रीराम, वंदे मातरम जैसे नारे काफी जोर-जोर से लगाने लगे. हालांकि ओवैसी ने इस पर आपत्ति भी की लेकिन जब उन्हें लगा कि ये सब उन्हें लक्ष्य करके हो रहा है तो खुद उन्होंने भी दोनों हाथ उठाकर और जोर से नारे लगाने को कहा.
शपथ लेने के बाद ओवैसी ने इन नारों का जवाब 'जय भीम', जय मीम, 'अल्लाह-ओ-अकबर' ‘जय हिंद' से दिया. बाद में मीडिया से बातचीत में उन्होंने बीजेपी सांसदों पर कुछ इस तरह तंज कसा, "अच्छा है कि उन्हें इस तरह की बातें याद आ जाती हैं, जब वे मुझे देखते हैं. मुझे उम्मीद है कि उन्हें संविधान भी याद होगा और मुजफ्फरपुर में बच्चों की मौत भी.”
बीजेपी सांसदों ने ये नारे हर उस बार लगाए, जब तृणमूल कांग्रेस के किसी भी सांसद ने शपथ ली. वहीं तृणमूल सांसदों ने भी इसकी प्रतिक्रिया में 'जय हिंद' और 'जय बंगाल' का नारा लगाया. संभल से सपा सांसद शफीकुर्रहमान बर्क की जब बारी आई तो जयश्री राम का नारा फिर तेज हो गया. शपथ लेने के बाद बर्क की बीजेपी सदस्यों से बहस भी हुई. शपथ लेने के बाद बर्क ने साफ तौर पर कहा कि संविधान जिंदाबाद है, मगर वंदेमातरम इस्लाम के खिलाफ है. बीजेपी सांसदों ने इस पर शेम-शेम के नारे भी लगाए.
लेकिन इन सबके बीच, अमरावती के निर्दलीय सांसद नवनीत राणा ने नारों पर आपत्ति जताते हुए कहा कि ऐसे नारों की जगह संसद नहीं बल्कि मंदिर, मस्जिद और दूसरे धार्मिक स्थल हैं.
दरअसल, धार्मिक पहचान से जुड़े ये नारे खुद को धार्मिक दिखाने से ज्यादा विपरीत धर्म के सांसदों को चिढ़ाने के अंदाज में लगाते देखे गए. ज्यादातर सांसदों ने नियमों के विरुद्ध शपथ लेने के बाद धार्मिक पहचान से जुड़े नारे लगाए. इसीलिए प्रोटेम स्पीकर को दर्जनों बार शपथ के अतिरिक्त कोई और बात रिकॉर्ड में न डालने की बात दोहरानी पड़ी.
संसद के इतिहास में ऐसा शायद पहली बार देखने को मिला हो जब सदस्यता की शपथ लेने वाले निर्वाचित सांसदों ने इस तरह के नारे लगाए हों. लंबे समय से संसद को कवर कर रहे तमाम पत्रकारों से बातचीत के बाद यही पता चला कि संसद में बहस के दौरान तो ऐसे नारे जरूर सुनने को मिले हैं लेकिन शपथ ग्रहण के दौरान धार्मिक और सांप्रदायिक विभाजन का ये नजारा पहली बार दिखा है.
यही नहीं, संविधान विशेषज्ञ भी इसे सही परंपरा नहीं मानते. संविधान विशेषज्ञों की नजर में सांसदों को सिर्फ वही शब्द पढ़ने होते हैं जो कि निर्धारित प्रारूप में लिखे होते हैं और उनके सामने होते हैं. इसीलिए इस तरह के नारों को बार-बार रिकॉर्ड से निकालने की अपील प्रोटेम स्पीकर करते रहे.
संविधान विशेषज्ञ और लोकसभा के महासचिव रह चुके सुभाष कश्यप कहते हैं, "धर्म और संप्रदाय के पक्ष में शपथ ग्रहण के दिन शुरू हुई ये नारेबाजी न सिर्फ संवैधानिक तरीके से गलत है बल्कि चिंताजनक भी है. इस तरह की गतिविधियों की यदि इजाजत दी गई तो इसका परिणाम क्या होगा, ये सोचा भी नहीं जा सकता.”
हालांकि जानकारों का ये भी कहना है कि ऐसी स्थिति में प्रोटेम स्पीकर ने कड़ा कदम न उठाकर और ऐसे सदस्यों को कोई चेतावनी न जारी करके भी गलत किया है. लोकसभा में वरिष्ठ अधिकारी रह चुके एक शख्स ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि सिर्फ कार्यवाही से हटाने का निर्देश देना भर पर्याप्त नहीं था बल्कि ऐसा न करने की बाकायदा चेतावनी दी जानी चाहिए थी और ऐसा करने वाले सदस्यों से दोबारा-तिबारा शपथ लेने को कहा जाना चाहिए था.
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