धर्मांतरण की राजनीति पर छिड़ी बहस
१५ अप्रैल २०१५बुधवार को प्रकाशित शिवसेना के मुखपृष्ठ सामना में छपे संपादकीय के बारे में लोगों ने सोशल मीडिया पर भी अपनी खूब प्रतिक्रियाएं दीं. ट्विटर पर लोगों ने इसे बंटवारे की राजनीति करने की कोशिश बताकर इसकी आलोचना की. असल में लेख में इस बात का प्रस्ताव दिया गया था कि देश में तेजी से बढ़ती मुसलमानों और ईसाईयों की आबादी को नियंत्रण में रखने के लिए उनके परिवार नियोजन का अनिवार्य कार्यक्रम चलाया जाना चाहिए.
इसके पहले भी सामना के संपादक शिवसेना नेता संजय राउत ने वोट बैंक की राजनीति खत्म करने के लिए मुसलमानों से वोटिंग का अधिकार ही वापस लिए जाने की बात कही. इस पर शिवसेना को अलग से सफाई पेश करनी पड़ी थी.
वहीं उत्तर प्रदेश के रामपुर में तथाकथित अनधिकृत कालोनी को हटाए जाने के मामले ने भी धार्मिक रंग ले लिया. इस कालोनी में रहने वाले वाल्मिकी समुदाय के लोगों का आरोप है कि प्रशासन एक नवनिर्मित मॉल के सामने पार्किंग स्थल बनाने के लिए उनके अधिकृत निवास स्थान को खाली करने का दबाव डाल रहा है. अपनी कालोनी को बचाने के लिए ये लोग रामपुर से सपा के विधायक आजम खान से मदद चाहते हैं. विरोध प्रदर्शन कर रहे लोगों का मानना था कि यदि वे इस्लाम धर्म स्वीकार कर लें तो शायद उनके घर ना तोड़े जाएं. बुधवार को कई भारतीय मीडिया संस्थानों ने इस धर्मांतरण की खबर दी.
इस खबर से ट्विटर पर लोगों ने गुस्से का इजहार किया और केंद्र सरकार से इस मामले में दखल करने की अपील की.
बात इतनी बढ़ी कि आजम खान ने यहां तक कह डाला कि वह देश छोड़ कर चले जाना चाहते हैं. खान का कहना है कि इस पूरे मामले में बेवजह उनका नाम खींचा जा रहा है.
भारत में जगह जगह धर्म के नाम पर विवाद खड़े होते आ रहे हैं. पिछले लोकसभा चुनावों में भारी बहुमत से जीतने वाली बीजेपी सरकार से सोशल मीडिया पर धर्मांतरण जैसे संवेदनशील मुद्दे पर स्थिति साफ करने और इससे निपटने के लिए कड़े कदम उठाने की मांग हो रही है.
आरआर/एमजे