नकली पैरों से एवरेस्ट फतह करने की चाहत
२३ फ़रवरी २०१८हरी बुद्धा मागर कुछ साल पहले तक ब्रिटिश सेना की ब्रिगेड ऑफ गोरखा में सैनिक थे. 2010 में मागर को अफगानिस्तान भेजा गया. वहां मागर एक बारूदी सुरंग की चपेट में आए और दोनों पैर गंवा बैठे. इलाज के दौरान मागर के लिए प्रोस्थेसिस (कृत्रिम पैर) बनाए गए. लंबे अभ्यास के बाद मागर ने नकली पैरों के सहारे चलना और दौड़ना सीखा.
इसके बाद वह लौटकर अपने देश नेपाल आ गए. हिमालय की पहाड़ियों में रहने वाले मागर को इसी दौरान अपने बचपन का सपना याद आया. सपना था माउंट एवरेस्ट में चढ़ाई का. मागर ने जानकारी जुटाई तो उन्हें पता चला कि 2006 में न्यूजीलैंड के मार्क इंगलिस ने दो नकली पैरों के साथ माउंट एवरेस्ट की सफल चढ़ाई की. इससे प्रेरित होकर मागर ने भी ऐसा ही करने की ठानी. उन्होंने खास प्रोस्थेसिस वाले नकली पैरों के सहारे एवरेस्ट पर चढ़ाई की ट्रेनिंग शुरू कर दी. इस दौरान मागर नेपाल के मेरा पर्वत और यूरोप की सबसे ऊंची चोटी मो ब्लॉं की सफल चढ़ाई की.
हालांकि अब मागर के हाथ निराशा लगी है. सरकार ने माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई के लिए नए नियम लागू किए हैं. दिसंबर 2017 में लागू किए गए नियमों के तहत अब दृष्टिहीन और दोनों नकली पैरों वाले पर्वातारोही माउंट एवरेस्ट पर नहीं चढ़ सकते. सरकार के प्रतिबंध की जानकारी मागर को ट्रेनिंग के दौरान मिली. मागर कहते हैं, "मैंने पहले भी ऐसी अफवाहें तो सुनी थी लेकिन मुझे लगा था कि ऐसा नहीं होगा. अब मैं हैरान और परेशान हूं."
मागर नए नियमों को "अन्यायपूर्ण" और "भेदभाव भरा" बताते हैं, "जोखिम को कम करने के लिए सरकार जो नए नियम लाई है मैं उनसे सहमत हूं लेकिन प्रतिबंध लगाना कोई उत्तर नहीं है." मागर के पक्ष में अब कुछ पर्वतारोही क्लब और संगठन भी आए हैं. नेपाल में विकलांगों के संगठन नेशनल फेडरेशन ऑफ द डिसेबल्ड के प्रेसीडेंट सुदर्शन सुबेदी कहते हैं, "कानून के तहत यह देखा जाना चाहिए था कि पर्वतारोहण के दौरान ऐसे लोग कैसे सुरक्षा संबंधी उपाय करते हैं. आप ऐसे भेदभावपूर्ण तरीके से प्रतिबंध नहीं लगा सकते."
2001 में अमेरिका के दृष्टिहीन पर्वतारोही एरिक वाहेनमायर ने भी माउंट एवरेस्ट का शिखर छुआ. एरिक के बाद 2017 ऑस्ट्रिया के दृष्टिहीन पर्वतारोही ने भी यह कारनामा कर दिखाया. इन मामलों का उदाहरण देते हुए मागर ने अपनी सरकार से अपील की है कि वह उन्हें भी सागरमाथा की चोटी पर जाने दे. मागर को उम्मीद है कि सरकार उनकी अपील सुनेगी और 2019 में उन्हें पृथ्वी की सबसे ऊंची चोटी पर जाने की इजाजत देगी.
ओएसजे/एनआर (डीपीए, एएफपी)