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नक्सलियों और भ्रष्टाचार से जूझता रहा भारत

२२ दिसम्बर २०१०

अब इस साल का अपना अस्तित्व क्या रह जाएगा? हम कैसे इसे याद करेंगे? शायद ये कहकर कि 2010 में बराक ओबामा पहली बार भारत आए थे...या फिर कि उस साल दिल्ली में कॉमनवेल्थ खेल हुए थे और बड़ा हंगामा खड़ा हो गया था.

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तस्वीर: AP

इन घटनाओं को इतिहास में दर्ज कर देने का मतलब होगा 2010 को जिंदगी बख्श देना. और अब यह काम करने का वक्त आ गया है.तो चलिए यह काम भी कर ही डालते हैं. आपसे कहा जाए कि भारत में इस साल की सबसे बड़ी घटना क्या रही तो किसे चुनेंगे आप? कॉमनवेल्थ खेल?

बराक ओबामा की भारत यात्रा? नक्सलवादियों के सबसे बड़े हमले? कश्मीर की हिंसा का महीनों लंबा दौर? आसान नहीं है ना! तो यूं करते हैं कि लम्हों को चुनने के बजाय किस्सों की जाए. इस तरह बात भी ज्यादा हो जाएगी और 2010 को कुछ छोड़ देने की शिकायत भी नहीं रहेगी.

Flash-Galerie Albanien Flüchtling Deutsches Rotes Kreuz 1990
तस्वीर: AP

किस्सा रेल की पटरी का

2010 का सफर रेल की पटरियों से ही शुरू हुआ. साल के दूसरे ही दिन तीन जगहों पर कोहरे से जूझती ट्रेनें एक दूसरे से भिड़ गईं. इटावा में मगध और लिच्छवी एक्सप्रेस भिड़ीं. कानपुर के पास पांकी में गोरखधाम और प्रयागराज एक्सप्रेस टकराईं. और इलाहाबाद से 61 किलोमीटर दूर प्रतापगढ़ में सरयू एक्सप्रेस एक ट्रैक्टर पर चढ़ गई. इन हादसों में 10 लोगों की जान गई और 45 से ज्यादा लोग घायल हुए.इस तरह रेल हादसों का एक सिलसिला शुरू हुआ जो सालभर चलता रहा. 16 जनवरी को कालिंदी और श्रमशक्ति एक्सप्रेस की टक्कर में तीन लोगों की जान गई. 17 और 22 जनवरी को रेलवे क्रॉसिंग पर दो छोटे हादसे हुए. फिर कुछ महीने शांति रही तो लगा कि प्रशासन और कर्मचारी सावधान हो गए हैं. लेकिन यह भ्रम 28 मई को एक बड़े हादसे ने तोड़ा जब पश्चिम मेदीनीपुर में ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस पटरी से उतर गई. इस हादसे में 140 से ज्यादा लोगों की जानें चली गईं. यह साल का पांचवां बड़ा रेल हादसा था. इसके बाद लोग कहने लगे कि ममता बनर्जी के रेल मंत्री बनने के बाद रेल हादसे बढ़ गए हैं.ममता बनर्जी ने इस हादसे को राजनीतिक साजिश बताया और मामला राजनीतिक बयानबाजी की भेंट चढ़ गया. 20 सितंबर को फिर ट्रेनें टकराईं. मध्यप्रदेश के शिवपुरी में 21 लोग मारे गए. लेकिन बदला कुछ नहीं.

किस्सा ए कसाब

वो 6 मई का दिन था. दिन के दो बजे के आसपास दुनियाभर की निगाहें टीवी चैनलों से चिपकी हुई थीं. टीवी कैमरे आर्थर रोड जेल के बाहर खड़े थे और पलक तक नहीं झपका रहे थे. फिर अचानक ही अदालत के दरवाजे से भागते हुए टीवी रिपोर्टर दिखाई देने लगे. वे लोग यूं भाग रहे थे मानो कहीं आग लग गई हो. रिपोर्टर वहीं से चिल्ला रहे थे फांसी...फांसी. हांफते हुए उन रिपोर्टरों ने बताया कि अजमल आमिर कसाब को अदालत ने फांसी का हुक्म सुनाया है.

2010 के पन्नों पर आतंकवादियों ने लाल रंग से कई किस्से लिख रखे हैं. लेकिन जिस किस्से को सबसे ज्यादा कहा सुना गया, उसकी इबारत मुंबई की आर्थर रोड जेल में लगाई गई एक विशेष अदालत में लिखी गई. अदालत ने 26/11 के आतंकी हमले में पकड़े गए कसाब को दोषी पाया और मौत की सजा सुनाई.लेकिन आतंकवाद के इस किस्से में साल 2010 इससे पहले भी दो बड़ी घटनाएं जोड़ चुका था. 13 फरवरी को पुणे की जर्मन बेकरी में धमाका हुआ. 17 लोग मारे गए. इसका इल्जाम भी उसी डेविड कोलमैन हेडली पर लगा जिसके लिए भारत सारा साल अमेरिका से बातचीत करता रहा. हालांकि बातचीत का हल कुछ नहीं निकल.

Flash-Galerie Anschläge Mumbai Indien 2008 Ajmal Kasab
तस्वीर: AP

हेडली अब भी अमेरिकी जेल में है और उसके भारत प्रत्यर्पण की फिलहाल कोई संभावना नहीं है.इसके बाद 17 अप्रैल को बैंगलोर के चिन्नास्वामी स्टेडियम में दो छोटे धमाके हुए. स्टेडियम में आईपीएल का मैच होने वाला था. बहुत से खिलाड़ी जिस डर की वजह से भारत नहीं आए थे वह सच हो गया था. लेकिन उस वक्त खिलाड़ियों ने हिम्मत नहीं हारी. मैच हुआ. खेल जीत गया. दहशतगर्दी हार गई.

किस्सा नक्सल हमलों का

इस किस्से की वजह से तो भारत की दुखती रग यानी नक्सलवाद की दुनियाभर में चर्चा हुई. इस साल नक्सलियों ने कुछ सबसे बड़े हमले किए. 15 फरवरी को पश्चिम बंगाल के सिल्दा में एक ईएफआर कैंप पर हमला करके 24 जवानों को मार डाला गया. अभी इस हमले की जांच चल ही रही थी कि 6 अप्रैल को अब तक का सबसे बड़ा नक्सली हमला हुआ. छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में सीआरपीएफ के 70 जवानों को नक्सलियों ने घेरकर गोलियों से भून दिया.

17 अप्रैल को दंतेवाडा़ में ही एक बस को बारूदी सुरंग के जरिए धमाका करके उड़ा दिया गया. इस हमले में 35 से ज्यादा लोगों की जानें गईं. फिर 29 जून को नारायणपुर में 26 जवानों को गोलियों से भून दिया गया.इन हमलों के बाद नक्सलियों के खिलाफ सेना के इस्तेमाल की बात होने लगी. सेना के इस्तेमाल का विरोध करने वालों की भी कमी नहीं थी. इस तरह देश में एक बहस छिड़ गई कि सेना का इस्तेमाल किया जाए या नहीं. बहस तो किसी अंजाम तक नहीं पहुंची लेकिन भारत सरकार ने सेना के हेलीकॉप्टरों का इस्तेमाल तो शुरू कर ही दिया है.

Flash-Galerie Supermacht Indien - 60 Jahre demokratische Verfassung
तस्वीर: picture-alliance/ dpa

किस्सा ए कश्मीर

2010 में कश्मीर उबलता रहा. जज्बात सुलगते रहे और पत्थर बरसते रहे. जून महीने की शुरुआत में नदी से एक किशोर का शव बरामद हुआ. लोगों का आरोप है कि इस बच्चे को पुलिस ने मार डाला. इसके विरोध में गुस्से की आग में जलते लोग सड़कों पर ऐसे उतरे कि पांच महीने तक उस आग को ठंडा नहीं किया जा सका. कश्मीर के अलगाववादी दलों ने बंद का आह्वान कर दिया. लोग रोज सड़कों पर उतरते. नौजवान पुलिस पर पथराव करते. जवाब में पुलिस वाले गोली चलाते.

और देखते देखते 100 से ज्यादा लोग पुलिस की गोली का शिकार हो गए. उस दौरान खबरें कुछ इस तरह आती थीं कि कश्मीर में मरने वालों की संख्या 42 हुई. अगले दिन खबर आती, मरने वालों की संख्या बढ़कर 46 हुई. घाटी में कई महीनों तक कर्फ्यू रहा. राज्य की उमर अब्दुल्लाह सरकार भी खतरे में पड़ गई. पाकिस्तान ने भी इस दौरान काफी बयानबाजी की और इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठाने की पुरजोर कोशिश की. आखिरकार 13 अक्तूबर को भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पत्रकार दिलीप पडगांवकर के नेतृत्व में तीन वार्ताकारों के एक दल को नियुक्त किया.

इस दल पर कश्मीर के विभिन्न पक्षों से बात करने की जिम्मेदारी डाली गई है ताकि समस्या के स्थायी हल तक पहुंचा जा सके. दल ने नवंबर महीने में अपनी पहली रिपोर्ट प्रधानमंत्री को सौंप दी.

वही पुराना किस्सा करप्शन का

2010 के दामन पर भारत के अब तक के सबसे बड़े घोटाले का दाग लगा है. कंपनियों को 2जी स्पेक्ट्रम बांटने के नाम पर सरकार को एक लाख 76 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ. इस घोटाले के आरोप लगे टेलीकॉम मंत्री ए राजा पर. काफी दिन तक नानुकुर करने के बाद आखिरकार राजा को इस्तीफा देना पड़ा. उन्होंने 14 नवंबर को पद छोड़ दिया. और जब आग इतनी बड़ी हो तो लपटें ए राजा तक ही सीमित कैसे रहतीं.

इस घोटाले से जुड़ा एक और कांड सामने आया. इनकम टैक्स विभाग ने कॉर्पोरेट लाबीइस्ट नीरा राडिया के फोन टैप करने शुरू किए क्योंकि उन्होंने बहुत कम समय में 300 करोड़ रुपये जमा कर लिये. लेकिन फोन पर जो सूचनाएं मिलीं उन्होंने भारत के खबरनवीसों को ही खबर बना दिया. पता चला कि नीरा राडिया ने भारत के कई बड़े पत्रकारों से बात की और उनके जरिए ए राजा को मंत्री बनवाने के लिए साजिश रची. नीरा राडिया से बात करने वालों में बरखा दत्त, प्रभु चावला और वीर संघवी जैसे कई बड़े नाम फंसे. वीर संघवी को अपना हफ्तावार कॉलम तक बंद करना पड़ा.

अब नीरा राडिया के ठिकानों पर सीबीआई के छापे भी पड़ चुके हैं.सीबीआई के छापे तो उन लोगों पर भी पड़ रहे हैं जो कॉमनवेल्थ खेलों के आयोजन में लगे थे. कॉमनवेल्थ खेलों ने भी भारत में अंतरराष्ट्रीय बवाल खड़ा कर दिया. 3 अक्तूबर से खेल होने थे और जुलाई अगस्त में पता चला कि काम पूरा नहीं हुआ है. अंतरराष्ट्रीय कॉमनवेल्थ फेडरेशन के प्रमुख माइक फेनेल के हाथ पांव फूल गए. उन्होंने भारत की आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी पर दबाव बनाना शुरू कर दिया. काम में जल्दबाजी शुरू हुई तो कभी छत गिरी कभी पुल. सारी दुनिया का मीडिया सवाल पूछने लगा. कलमाड़ी उन्हें बहलाते रहे और आखिरी तारीख आगे बढ़ाते रहे. जब मीडिया ने काम का जायजा लेना शुरू किया तो घोटालों की परतें खुलनी शुरू हुईं.

Flash-Galerie Indien Commonwealth Games Delhi 2010
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पता चला कि इस आयोजन के नाम पर हजारों करोड़ की हेराफेरी हो चुकी है. इसका इल्जाम कलमाड़ी और उनकी टीम पर लगा.खैर, खेल तो जैसे तैसे हो गए. लेकिन कलमाडी़ और उनकी टीम मुश्किल में फंस गई है. कलमाड़ी से उनकी पार्टी कांग्रेस ने किनारा कर लिया है. उनके तीन साथी जेल में हैं. और सीबीआई की नजरें कलमाड़ी पर भी लगी हुई हैं.

पंच परमेश्वर

यह शायद पहला ऐसा साल रहा जब दुनिया की तवज्जो से भारत पूरा साल बल्लियों उछलता रहा. इस साल दुनिया के सबसे ताकतवर समझे जाने वाले पांचों वीटो पावर देशों यानी अमेरिका, फ्रांस, चीन, ब्रिटेन और रूस के राष्ट्रपति या प्रधानमंत्रियों ने भारत की यात्रा की. इन सभी से भारत ने 50 अरब डॉलर के समझौते किए.सबसे ज्यादा चर्चा बेशक बराक ओबामा के दौरे की रही. अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपने पद पर एक साल से ज्यादा का वक्त गुजारने के बाद भारत भ्रमण का कार्यक्रम बना लिया. इससे भारत में हंगामा मचना लाजमी था. बराक ओबामा को 5 नवंबर को भारत पहुंचना था लेकिन उनका लाव लश्कर कई हफ्ते पहले से पहुंचने लगा. और तभी से ओबामा की भारत यात्रा सुर्खियों में छाई रही.

NO FLASH Obama in Indien
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ओबामा आए और बहुत सारी अच्छी अच्छी बातें करके गए. उनकी पत्नी ने भी भारतीय गानों पर डांस करके मन मोहने की कोशिशें कीं. अपने अब तक के सबसे लंबे विदेशी दौरे में ओबामा ने भारतीयों को खुश करने में कोई कसर नहीं उठा रखी. उनके संसद में दिए भाषण ने तो यूट्यूब तक पर खूब हिट्स बटोरे. ओबामा ने यहां तक कह दिया कि वह भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में देखना चाहते हैं. ऐसा अब तक अमेरिका ने नहीं कहा था तो भारत ने इसे हाथोंहाथ लिया. ओबामा चले गए. भारत अभी सुरक्षा परिषद का सदस्य बनने से सालों दूर है.

बातें ब्लैक ब्लैक सी

2010 ने भारत में ब्लैकबेरी को बाजार दिया और उस पर मुसीबतों का अंबार लगा दिया. मेसेजिंग और ईमेल की खास ब्लैकबेरी सुविधाओं पर भारत सरकार ने एतराज जता दिया. सरकार का कहना है कि ब्लैकबेरी के जरिए जो भी सूचनाएं भेजी जाएंगी उन पर नजर रखने की सुविधा भारतीय एजेंसियों को मिलनी चाहिए.

लेकिन ब्लैकबेरी बनाने वाली कनाडा की कंपनी रिसर्च इन मोशन के लिए यह मुश्किल है क्योंकि उसका सर्वर तो कनाडा में है. इस बात पर सरकार ने उसे कह दिया कि अपना कारोबार समेट लो. ब्लैकबेरी ने कहा कि वह कोई रास्ता निकाल लेगी. रास्ता निकालने के नाम पर कंपनी को तीन बार तीन तीन महीने की मोहलत मिल चुकी है. इस वक्त भी वह मोहलत पर ही कारोबार कर रही है. 31 जनवरी से पहले उसे भारत सरकार को ऐसा जुगाड़ देना है जिसके जरिए सुरक्षा एजेंसियां सारे संदेशों पर नजर रख सकें. हालांकि तीन दिसंबर को भी भारत सरकार ने कहा कि अब तक कोई समाधान नहीं मिला है. अब ब्लैकबेरी का भविष्य 2011 के हाथ में है.

कपटी क्रायोजेनिक

हर साल की तरह 2010 में भी भारत ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में कई उपलब्धियां हासिल कीं. कई उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजा. उपग्रह भेजने में कई देशों की मदद करके डॉलर भी कमाए. और 2016 तक चांद पर इंसान भेजने में कामयाब होने का ख्वाब भी देख डाला. लेकिन एक क्रायोजनिक इंजन के कपट ने उसकी खुशियों पर ग्रहण लगा दिया. 15 अप्रैल की सुबह पहली बार भारत अपने बनाए क्रायोजेनिक इंजन के दम पर जीएसएलवी डी-3 को अंतरिक्ष में भेज रहा था.

Hurricane Wilma: Überschwemmte Straße in Cancun, Mexiko - freies Bildformat
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भारत के अलावा यह तकनीक दुनिया में सिर्फ पांच देशों के पास है. इस तकनीक को हासिल करके भारत अमेरिका, फ्रांस, रूस, चीन और जापान के साथ खड़ा हो गया. लेकिन उसका ख्वाब पूरी तरह कामयाब नहीं हो पाया. क्रायोजनिक इंजन ने बीच रास्ते में रॉकेट को धोखा दे दिया. रॉकेट अपने रास्ते से भटक कर बंगाल की खाड़ी में जा गिरा. अब 2011 में इसे दोबारा अंतरिक्ष में भेजने की तैयारी हो रही है.

हादसे हर महीने

2010 के हादसों का लेखाजोखा बड़ा ही दर्दनाक है. कुछ ऐसे हादसे हुए जिनकी वजह इंसान ही बना. मसलन 22 मई को मैंगलोर हवाई अड्डे पर एक्स्प्रेस इंडिया का एक विमान उतरते वक्त हादसे का शिकार हो गया. इसमें सवार 159 लोगों की मौत हो गई. बाद में जांच से पता चला कि हादसा पायलट की गलती की वजह से हुआ.

15 नवंबर को पूर्वी दिल्ली में अवैध तरीके से बनाई गई एक बहुमंजिला इमारत के गिर जाने से 66 मासूम जानें चली गईं. एक नवंबर को पश्चिम बंगाल की मुड़ी गंगा नदी में एक नाव के साथ 74 लोग डूब गए. 4 मार्च को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में एक मंदिर में मची भगदड़ ने 60 से ज्यादा जानें ले लीं.और कुदरत ने भी 2010 के दामन को खून से रंगने में कोई कसर नहीं छोड़ी. जेठ के महीने में ऐसी आग बरसी की सैकड़ों जानें झुलस गईं. दुनियाभर में चली हीट वेव ने अकेले भारत में ही 250 से ज्यादा लोगों को मार डाला. 2010 सैकड़ों सालों में सबसे गरम रहा. गर्मी से छुटकारा मिला तो बारिश ने कहर बरपाना शुरू कर दिया. 17 जून को महाराष्ट्र भारी बारिश में 46 लोगों की जान गई. 6 अगस्त को कश्मीर के लेह में एक बादल फटा और 113 जिंदगियों को बहा ले गया.

किस्से जो नहीं बने

2010 में कई ऐसी बातें भारत में हुईं जो किस्सों में तो शुमार नहीं हुईं लेकिन उनके जिक्र के बिना इस साल का लेखाजोखा पूरा नहीं हो सकता. जैसे 5 फरवरी को अंडमान में बोआ सर नाम की महिला की मौत के साथ एक भाषा की भी मौत हो गई. अंडमान द्वीप पर 65 हजार साल पुराने आदिवासी समूह की वह अकेली सदस्य बची थीं और बो भाषा और किसी को नहीं आती.

इस तरह दुनिया की सबसे प्राचीन भाषाओं में से एक बो अब 2010 के पन्नों में खो जाएगी.इसी साल सबसे ज्यादा समय तक मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड बनाने वाले कम्यूनिस्ट नेता ज्योति बसु का भी निधन हुआ.1 अप्रैल 2010 से भारत में राइट ऑफ चिल्ड्रन टु फ्री एंड कंपलसरी एजुकेशन एक्ट लागू हो गया. इसके तहत 6 से 14 साल तक बच्चों के लिए शिक्षा मूलभूत अधिकार बन गई.2010 में भारत की जनगणना भी शुरू हो गई और यूनिक आईडेंटिटी कार्ड आधार भी मिलने लगे. लेकिन यह काम पूरा तो अगले साल ही होगा.

2010 के इन सभी किस्सों को ध्यान से पढ़ें तो एक बात साझी है. 2011. साल 2010 अपनी कितनी सारी जिम्मेदारियां आने वाले साल पर डाल कर चल दिया है. और यह साल दर चली आ रही परंपरा है. हर बीतता साल एक ही चीज छोड़कर जाता है, उम्मीदें.

रिपोर्ट; विवेक कुमार

संपादन: एस गौड़