‘नस्लवाद जर्मनी के लोकतंत्र के लिए एक खतरा’
१३ जनवरी २०२३जर्मनी में नस्लवाद पर पहली सरकारी वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए रीम अलाबाली रादोवान ने कहा, "नस्लवाद कोई एक अमूर्त अवधारणा नहीं है बल्कि हमारे समाज के तमाम लोगों के लिए यह एक दर्दनाक सच्चाई है.” उन्होंने कहा, "यह लोकतंत्र के लिए एक बड़ा खतरा है क्योंकि यह लोगों और उनकी मानवीय गरिमा पर हमला करता है. उस मानवीय गरिमा पर जिसकी गारंटी उन्हें संविधान में दी गई है.”
अलाबाली रादोवान को जर्मनी में नए सृजित पद फेडरल कमिश्नर फॉर एंटीरेसिज्म के तौर पर नियुक्त किया गया है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया है कि देश भर में हर दिन पहचान के संकट से गुजरने वाले और नस्लवाद का दंश झेलने वालों की मदद की जरूरत है क्योंकि यह मुद्दा वर्षों से नजरअंदाज किया जाता रहा है. हालांकि जर्मनी का प्रवासन, शरणार्थी और एकीकरण आयोग अप्रवासियों और उनके वंशजों की स्थिति पर नियमित रूप से रिपोर्ट देता रहा है, लेकिन यह नई रिपोर्ट जर्मनी में नस्लवाद की पहली व्यापक रिपोर्ट है और यह रिपोर्ट उन रिपोर्टों की कमियों को भी दूर करती है.
अलाबाली रादोवान के दफ्तर ने इस रिपोर्ट का मिलान नेशनल डिस्क्रिमिनेशन एंड रेसिज्म मॉनीटर नादिरा जैसे संगठनों के अध्ययनों से भी किया जिसने नस्लवाद पर अपनी रिपोर्ट तैयार करने के लिए करीब 5000 लोगों के टेलीफोन पर इंटरव्यू किए थे. नादिरा का अध्ययन, "तमाम मौजूदा अध्ययनों के विपरीत न सिर्फ बहुसंख्यक आबादी के सदस्यों के सर्वेक्षण के आधार पर तैयार किया गया है बल्कि नस्लवाद का शिकार तमाम समूहों के सदस्यों के साक्षात्कार और उनके अनुभवों के आधार पर तैयार किया गया है.”
जर्मनी में नस्लवाद की फिलहाल कोई मानक कानूनी परिभाषा नहीं है, इसलिए नई रिपोर्ट में साल 2021 में सरकार की ओर से एकीकरण पर कराए गए एक अध्ययन की परिभाषा को ही आधार बनाया गया है. इस परिभाषा के मुताबिक, "नस्लवाद वो विश्वास और प्रथाएं हैं जो व्यवस्थित अवमूल्यन और बहिष्करण के साथ-साथ आबादी के कुछ समूहों के नुकसान पर आधारित हैं. जिनके लिए जैविक या सांस्कृतिक रूप से निर्मित, अपरिवर्तनीय और कथित रूप से हीन विशेषताओं और व्यवहारों को जिम्मेदार ठहराया जाता है.”
नए साल की बहस: ‘नस्लवादी रूढ़ियों की वापसी'
सर्वेक्षण में शामिल 90 फीसद लोगों ने बताया कि उन्होंने जर्मनी में नस्लवाद को एक समस्या के रूप में महसूस किया है, जबकि करीब 22 फीसद लोगों का कहना था कि उन्होंने व्यक्तिगत तौर पर नस्लवाद का अनुभव किया है. साल 2022 के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक राजनीति प्रेरित हिंसक अपराध की संख्या 1042 थी जिनमें से करीब दो तिहाई घटनाएं नस्लवाद से संबंधित थीं. हालांकि स्वतंत्र रूप से काम करने वाली कुछ संस्थाओं के मुताबिक, उन्हें इस दौरान शारीरिक उत्पीड़न और हमलों की कम से कम 1391 सूचनाएं मिली थीं.
अलाबाली रादोवान ने यह रिपोर्ट उन घटनाओं के बाद प्रस्तुत की है जब नव वर्ष की पूर्व संध्या पर कुछ जगहों पर हुई हिंसक घटनाओं के बाद विदेशियों के समाज में समेकन को लेकर बहस एक बार फिर शुरू हुई है. ये हिंसक घटनाएं बर्लिन और कुछ अन्य शहरों में हुईं जहां विविध नस्लों के लोग रहते हैं.
कमिश्नर रादोवान के मुताबिक, जिन लोगों ने कथित तौर पर पुलिस और आपातकालीन सेवाओं पर हमला करने के लिए पटाखों का इस्तेमाल किया था, उन लोगों के बारे में नस्लवाद संबंधी पूर्वाग्रही धारणा रखने वालों को बहाना मिल गया था. वो कहती हैं, "नए साल की पूर्व संध्या पर पैदा हुई स्थिति के बारे में बहस से पता चलता है कि 2023 में भी हमें यह सीखने की जरूरत है कि नस्लवादी पूर्वाग्रहों के बिना सामाजिक मुद्दों पर कैसे चर्चा की जाए.”
‘नस्लवाद सिर्फ घृणा और हिंसा ही नहीं है'
अपनी टिप्पणी में अलाबाली रादोवान इस बात पर जोर देने को इच्छुक थीं कि नस्लवाद खुद को महज ‘घृणा और हिंसा' के रूप में ही प्रस्तुत नहीं करता बल्कि इसके कई और रूप भी हैं. मसलन, नियमित रूप से छोटे-मोटे हमले, श्रम और अचल संपत्ति बाजार से व्यवस्थित बहिष्कार, सत्ता में प्रतिनिधित्व की कमी, पुलिस अत्याचार, स्कूलों में भेदभाव या फिर डॉक्टरों के यहां भेदभाव के रूप में भी दिखता रहता है.
रिपोर्ट में भी इस बात पर जोर दिया गया है कि ऐसे मुद्दों को अलग किया जाना चाहिए जो पहले उनके खिलाफ लड़ने के लिए एक साथ थे. जैसे, नस्लवाद और विदेशी मूल के मुद्दों को मिलाना और केवल नस्लवाद के मामलों की जांच करना. उदाहरण के लिए, ब्लैक जर्मन, मुस्लिम, एशियन जर्मन, यहूदी और सिंटी या रोमा लोगों के मामलों को एक ही तराजू पर तौलना.
अलाबाली रादोवान कहती हैं कि रिपोर्ट में इस्लामोफोबिया के बारे में चौंकाने वाले आंकड़े मिले हैं, "ऐसा नहीं होना चाहिए कि किसी नौकरी के लिए इंटरव्यू में हिजाब पहने किसी मुस्लिम महिला को बुलाए जाने की संभावना उस महिला की तुलना में चार गुना कम हो जिसका नाम जर्मन नाम से मेल खाता हो, जबकि योग्यता में दोनों बराबर हों.” वास्तव में, एक सर्वेक्षण में उनके दफ्तर ने इस बात की ओर ध्यान दिलाया है कि "सर्वे में शामिल एक तिहाई लोगों का कहना था कि जर्मनी में मुस्लिम आबादी के प्रवेश को रोका जाए, जबकि 27 फीसद लोगों का कहना था कि जर्मनी में बहुत ज्यादा मुसलमान रहते हैं."
जब बात काले नस्लवाद के विरोध की आई तो करीब 886 लोगों ने 2020 एफ्रोसेंसस सर्वे में मतदान किया जो कि या तो नस्लवाद का शिकार हुए थे या फिर उन्होंने नस्लीय हमलों को देखा था. इनमें से 74.1 फीसद लोगों का कहना था कि उन पर हुए हमलों की शिकायत पर अधिकारियों के रवैये से वे नाखुश थे. रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि ऐसी घटनाओं की रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए लोगों को किन बाधाओं से होकर गुजरना पड़ता है. चाहे वह बदले की कार्रवाई का डर हो, अधिकारियों का शिकायत को गंभीरता से न लेना, या कई बार ऐसा भी होता है कि उन्हें यह पता भी नहीं होता है कि उनके साथ जो कुछ भी हुआ है, वह अपराध है.
रिपोर्ट में इस बात का भी उल्लेख है कि एशियाई मूल के जर्मन लोगों के साथ भी भेदभाव होता है, खासकर जब से कोविड-19 महामारी शुरू हुई है. सर्वेक्षण में भाग लेने वाले 700 एशियाई जर्मन लोगों में से आधे लोगों का कहना था कि उन्हें महामारी से संबंधित गलत धारणाओं के चलते नस्लवाद का शिकार होना पड़ा. रिपोर्ट में जोर दिया गया है कि जर्मनी में हिंसक घटनाओं समेत एशियाई मूल के लोगों के साथ नस्लभेद की घटनाएं 2020 से पहले कोई बड़ा मुद्दा नहीं हुआ करती थीं.
रिपोर्ट के मुताबिक, सबसे ज्यादा खुले तौर पर दुश्मनी और घृणा का सामना करने वाले सिंटी और रोमा पृष्ठभूमि के लोग हैं. करीब 29 फीसद निवासियों ने स्वीकार किया है कि वे इन समूहों के प्रति शत्रुता की भावना रखते हैं. यहूदी नरसंहार के दौरान इन दोनों समुदायों के खिलाफ हुए अत्याचार को देखते हुए, सर्वेक्षण के ये परिणाम बेहद खतरनाक हैं.
‘रिपोर्ट बहुप्रतीक्षित है और तत्काल जरूरी है'
इन सभी मुद्दों को ध्यान में रखते हुए अलाबाली रादोवान ने घोषणा की कि उनका विभाग आगामी वर्ष में कुछ खास उपायों पर अमल करने की योजना बना रहा है. इनमें समुदाय आधारित परामर्श सेवाओं को मजबूत करना, यह सुनिश्चित करना कि ये सेवाएं एक-दूसरे से बेहतर तरीके से जुड़ी हुई हैं, सरकार को नस्लवाद विरोधी सलाह देने के लिए एक विशेषज्ञ समूह बनाना, नस्लवाद की कानूनी परिभाषा बनाने के साथ-साथ इंटरनेट पर अभद्र भाषा के खिलाफ कानून को कड़ा करना और यह सुनिश्चित करना कि राज्य, शहर और स्थानीय स्तर पर नेता नस्लवाद विरोधी अभियान से जुड़े रहें.
जर्मनी की स्वतंत्र संस्था एंटी डिस्क्रिमिनेशन कमिश्नर फेर्डा अतामन ने रिपोर्ट का यह कहकर स्वागत किया है कि यह "बहुप्रतीक्षित और तत्काल आवश्यक संकेत है." रादोवान कहती हैं, "यह पहली बार है जब सरकार ने स्पष्ट किया है कि नस्लवाद का मुकाबला करना सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए. रिपोर्ट से पता चलता है कि जर्मनी में नस्लवाद एक समस्या बनी हुई है.”