नहीं थमी कम उम्र में लड़कियों की शादी
१० मई २०१५करियर को प्राथमिकता देने की वजह से देश में अब ज्यादा उम्र में शादी का चलन धीरे-धीरे जोर पकड़ रहा है. इसके बावजूद कम उम्र में दुल्हन बनने वाली लड़कियों की तादाद में खास गिरावट नहीं आई है. वर्ष 2011 की जनगणना के ताजा आंकड़ों में इस चौंकाने वाला तथ्य का खुलासा किया गया है. यह आंकड़े इसी सप्ताह जारी किए गए.
ताजा आंकड़ों के मुताबिक, देश में 19 वर्ष या उससे कम उम्र वाली 41.3 फीसदी युवतियां शादी के बंधन में बंध चुकी हैं. वर्ष 2011 की जनगणना के समय भारत में इस उम्र की युवतियों की तादाद एक करोड़ से ज्यादा थी उनमें से 41 लाख से ज्यादा की शादियां हो चुकी थीं. कम उम्र में लड़कियों के विवाह के मामले में बिहार, पश्चिम बंगाल, राजस्थान और झारखंड जैसे राज्यों के नाम इस सूची में सबसे ऊपर हैं. वहां इस उम्र की ज्यादातर लड़कियां अपने पिया के घर जा चुकी थीं. मध्यप्रदेश (46.6 फीसदी) और त्रिपुरा (49.6) जैसे राज्य भी इस मामले में ज्यादा पीछे नहीं थे.
वैसे, इस आंकड़ों से यह भी सामने आया है कि देश में बाल विवाह के मामले कुछ हद तक कम हुए हैं. वर्ष 2001 की जनगणना के आंकड़ों में कहा गया था कि 15 से 19 वर्ष के बीच की 25 फीसदी लड़कियों की शादी हो चुकी थी. लेकिन ताजा आंकड़ों में यह घट कर 20 फीसदी रह गया है. इसी तरह 20 से 24 आयु वर्ग की 77 फीसदी युवतियां तब विवाह के बंधन में बंध गई थीं. अब यह आंकड़ा घट कर 70 फीसदी तक पहुंच गया है.
ताजा आंकड़ों में ग्रामीण और शहरी इलाकों की तस्वीर में अंतर भी साफ उभर कर आया है. ग्रामीण इलाकों में जहां 19 वर्ष की उम्र वाली 47.3 फीसदी लड़कियों की शादी हो चुकी थी, वहीं शहरी इलाकों के मामले में यह आंकड़ा 29.2 फीसदी है. ज्यादातर राज्यों में 20 की उम्र तक पहुंचने के पहले ही ज्यादातर युवतियों की शादी हो जाती है. इनमें पूर्वोत्तर राज्य नागालैंड के अलावा केरल, तमिलनाडु और गोवा जैसे दक्षिणी राज्य और जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, पंजाब और उत्तराखंड तक शामिल हैं. यानी तस्वीर कमोबेश हर जगह एक जैसी ही है. दिल्ली के मामले में यह आंकड़ा 19.6 फीसदी है.
वजह
तमाम जागरुकता अभियानों और लड़कियों की शिक्षा पर जोर के बावजूद आखिर तस्वीर ऐसी क्यों है? समाजविज्ञानियों का कहना है कि खासकर ग्रामीण इलाकों में अब भी लड़कियों को एक जिम्मेदारी समझा जाता है. मां-बाप और घरवाले जल्दी उसके हाथ पीले कर अपनी इस अहम जिम्मेदारी से मुक्त हो जाना चाहते हैं. इसलिए खासकर ग्रामीण इलाकों में लड़कियों के 15-16 वर्ष की उम्र तक पहुंचते ही उनके लिए भावी वर की तलाश शुरू हो जाती है. सामाजिक कार्यकर्ता मनोरमा राय कहती हैं, "इसके पीछे अशिक्षा के अलावा आर्थिक और सामाजिक वजहें भी हैं. गांवों में यह माना जाता है कि बढ़िया वर हमेशा नहीं मिलता. इसलिए कोई योग्य वर मिलते ही मां-बाप अपनी बेटी के हाथ पीले कर निश्चिंत हो जाना चाहते हैं." समाजविज्ञानियों का कहना है कि ग्रामीण इलाकों में तमाम सहूलियतों के बावजूद पूरी अर्थव्यवस्था खेती पर टिकी है. इसलिए फसल बेहतर होने की स्थिति में मां-बाप अपनी इस जिम्मेदारी से मुक्ति पा लेना चाहते हैं. वहां दहेज अब भी एक अभिशाप के तौर पर खड़ा है.
इससे पहले राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की एक रिपोर्ट में भी कहा गया था कि देश में 74 फीसदी युवतियों की शादी 20 की उम्र तक पहुंचने से पहले ही हो जाती है. उस रिपोर्ट में इसकी कई वजहें गिनाई गई थीं. उनमें शादी पर होने वाला खर्च, पुरुष प्रधान समाज में लड़कियों की इच्छा-अनिच्छा पर कोई ध्यान नहीं देना, अशिक्षा, सामाजिक परिस्थिति और उम्र शामिल है. वैसे भी तमाम दावों के बावजूद देश के कई राज्यों में अब बी बाल विवाह का प्रचलन है.
सुधार
सामाजिक कार्यकर्ता सुनीता टंडन कहती हैं, "गांवों से रोजगार के लिए शहरी इलाकों में पलायन के बावजूद तस्वीर में खास सुधार नहीं आया है. लोग गांव छोड़ कर शहरों में जाने से पहले वहीं अपनी बेटियों की कम उम्र में ही शादी कर देते हैं. यह सोच कर कि शहरों में उनकी जवान बेटी को न जाने किन मुसीबतों का सामना करना पड़े."
विशेषज्ञों की राय में इस स्थिति में तेजी से किसी बदलाव की उम्मीद कम ही है. सुनीता कहती हैं, "इस मामले में सरकार और गैर-सरकारी संगठनों के प्रयास नाकाफी हैं. युवतियों में शिक्षा को बढ़ावा देकर और उनमें करियर के प्रति महत्वाकांक्षा पैदा करने की स्थिति में हालत में तेजी से सुधार हो सकता है." लेकिन गांवों में शिक्षा तंत्र की बदहाली को ध्यान में रखते हुए इस मामले में उम्मीद की खास किरण नहीं नजर आती. तब तक कम उम्र में बेटियों के हाथ पीले करने का सिलसिला जस का तस रहेगा.