नागरिकता संशोधन बिल पर सरकार और विपक्ष का टकराव तय
४ दिसम्बर २०१९इस बिल का उद्देश्य पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले हिन्दू, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन और पारसी समुदाय के शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देना है. पिछली लोकसभा में भी एनडीए सरकार इस बिल को संसद में लाई थी और इसे लोकसभा से पारित भी करा लिया था. लेकिन राज्यसभा में बिल को भारी विरोध का सामना पड़ा और अंततः यह गिर गया.
माना जा रहा है कि नई लोकसभा में केंद्र सरकार ने कई सहयोगी दलों द्वारा बिल के विरोध को ध्यान में रखते हुए इसमें कुछ संशोधन किये हैं. इसके बाद सरकार को उम्मीद है कि वह बिल को इस बार दोनों सदनों से पारित जरूर करवा लेगी. बिल संसद में अगले हफ्ते आने की उम्मीद है.
वहीं, विपक्षी पार्टियों का विरोध जस का तस बना हुआ है. असम से कांग्रेस के सांसद गौरव गोगोई ने ट्वीट कर के कहा कि इस विधेयक का विरोध करने की जरूरत है क्योंकि ये जनता को बांटने का काम करेगा और लोगों को खतरे में डाल देगा.
सीपीएम के सीताराम येचुरी ने ट्वीट किया कि विधेयक "असंवैधानिक है क्योंकि इसका लक्ष्य है भारत के आधार को ही नष्ट कर देना".
साफ है कि विधेयक जब भी संसद में आएगा, विपक्षी पार्टियां इसके विरोध में ही खड़ी होंगी जिसकी वजह से सरकार को राज्य सभा में मुश्किल हो सकती है. ऐसे में सरकार उन सहयोगी दलों की तरफ उम्मीद से देख रही है जिन्होंने पिछली बार विधेयक का विरोध किया था. नया विधेयक लाने से पहले सरकार ने इन सभी दलों के साथ बैठक की, इनके विरोधों को सुना और विधेयक में कुछ संशोधन करके उनकी चिंताओं को शांत करने की कोशिश की गई है.
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2016 में असम की क्षेत्रीय पार्टी एजीपी विधेयक का विरोध करते हुए एनडीए से अलग हो गई थी. बिल के गिर जाने पर एजीपी फिर से एनडीए में वापस आ गई और अब वो बिल का समर्थन कर रही है.
पिछली बार बिल को लेकर पूर्वात्तर के राज्यों में विशेष रूप से कई शंकाएं थीं. उन्हें चिंता थी कि इसकी वजह से दशकों से बांग्लादेश से आकर भारत में रह रहे लोगों को भारतीय नागरिकता मिल जाएगी. अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और मिजोरम, जहां कुछ इलाकों में जाने के लिए विशेष अनुमति लेनी पड़ती है, उन्हें चिंता थी की शरणार्थियों को नागरिकता मिलने और उनके बसने से उन इलाकों ही जाएगा.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इन तीनों राज्यों को आश्वासन दिलाया है कि इन्हें बिल से बाहर रखा जाएगा. लेकिन अब भी पूर्वोत्तर में कई संगठन कह रहे हैं कि एक बार शरणार्थियों को नागरिकता मिलनी शुरू होगी तो वे देश में कहीं भी जाकर बस सकेंगे, इसलिए बिल का विरोध जारी रहेगा.
अब देखना ये है कि सरकार कब विधेयक को संसद में लाती है और इसे कितना समर्थन मिल पता है.
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