'नेता नहीं, जनता बदलेगी भारत'
१६ जनवरी २०१३बीते एक महीने में महिलाओं की सुरक्षा के नाम पर भारत में बयानबाजी के अलावा कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया. सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाई कोर्ट जैसी संवैधानिक संस्थाओं ने सीमाओं में रहते हुए कुछ पहल की. लेकिन संसद में बैठे नेताओं की तरफ से कुछ नहीं हुआ. कड़े कानून के नाम पर एक समिति बनाई गई.
इक्कीसवीं सदी में भी भारत में 150 साल पुराना कानून चलता है. दिल्ली पुलिस की पूर्व आईपीएस अधिकारी किरण बेदी कहती हैं, "हमारे यहां ब्रिटिश इंडिया का 1861 का पुलिस एक्ट है. हम लंबे समय से पुलिस सुधारों की मांग कर रहे हैं, लेकिन उस पर कोई कार्रवाई होती नहीं दिख रही. पुलिस अब भी नेताओं और प्रशासन को रिपोर्ट करती है. पुलिस कायदे की बात तो करती है लेकिन कानून के प्रति जवाबदेह नहीं."
संसद से निराशा
सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील कामिनी जायसवाल नेताओं के रुख के आहत हैं. उनके मुताबिक अदालतें अपना काम कर रही है. संविधान के तहत न्याय प्रक्रिया चल रही है लेकिन संसद के प्रति उनके मन में गहरी नाराजगी है, "मैं संसद से बिल्कुल नाखुश हूं. मैं संसद से कोई उम्मीद नहीं करती हूं, अगर कुछ होगा तो वह जनता करेगी और आम आदमी करेगा. उनके पास समय ही नहीं है इन चीजों के लिए. पुलिस सुधारों पर 2007 का फैसला है, आज तक पुलिस सुधारों पर तो कुछ किया नहीं उन्होंने. चुनाव सुधार की बात 2003 से चल रही है, आज तक तो कुछ किया नहीं उन्होंने. वो करना ही नहीं चाहते. जिस संसद में 30 फीसदी से ज्यादा लोग आपराधिक पृष्ठभूमि के हों, ऐसे नेताओं से क्या उम्मीद की जा सकती है."
महीने भर बाद दिल्ली
बीते एक महीने में दिल्ली में अगर कुछ बदला है तो वह है पुलिस वालों का व्यवहार और ऑटोचालकों का रुख. यह पहले से बेहतर है. लेकिन छेड़खानी और बलात्कार की घटनाएं अब भी हो रही हैं. दिल्ली में एक कंपनी के मानव संसधान विभाग में काम कर रही फरहा आबिद मानती है कि 16 दिसंबर की घटना के बाद महिलाओं के प्रति समाज का नजरिया नहीं बदला है, "कुछ नहीं बदला है. दुख की बात तो यह है कि अब अखबारों में भी इस पर हो रही बहस सिमटती जा रही है. डर का माहौल महिलाओं के भीतर काफी गहराई तक उतर चुका है."
मीडिया में काम करने वाली एक युवती ने नाम न देने की शर्त पर कहा, "बदतमीज लोगों पर शायद ही घटना का कोई असर पड़ा है. वे समाज में हर जगह हैं."
दिल्ली की रहने वाली बोहनी बंदोपाध्याय कहती हैं, "इस शहर में जिस तरह से पुरुष महिलाओं से पेश आते हैं, वह अमानवीय है. महिलाओं का सम्मान नहीं होता. अगर बलात्कार के मामले बढ़ते हैं तो इसमें कोई हैरानी वाली बात नहीं. शाम के सात बजे के बाद मैं अपनी गाड़ी या मेट्रो पर सफर करती हूं. ऑटो लेना या पैदल जाने में मुझे डर लगता है."
बर्बर बलात्कार
16 दिसंबर 2012, भारत की राजधानी नई दिल्ली में 23 साल की एक छात्रा से चलती बस में सामूहिक बलात्कार हुआ. छात्रा और उसके मित्र को खूब पीटा गया. छात्रा के जनगांगों में लोहे की रॉड घुसा दी गई. उसकी आंतें बाहर आ गईं. भीड़ भाड़ वाली सड़क पर बस लगातार चलती रही.
इसके बाद दक्षिण दिल्ली के एक अंधेरे कोने में छात्रा और उसके मित्र को नग्न अवस्था में सड़क पर फेंक दिया गया. आस पास से सैकड़ों लोग गुजरे पर किसी ने इनके बदन ढंकने के लिए कपड़ा तक नहीं दिया. कारों में सवार लोग आगे बढ़ गए और लंबे वक्त तक यह जगह सिर्फ एक क्राइम स्पॉट बनी रही. कुछ देर बाद पुलिस आई और थाना क्षेत्र की बहस में उलझ गई.
दिल्ली में महिलाओं की सुरक्षा पर लंबे समय से बहस होती आ रही है. राजधानी में हर दिन औसत तौर पर बलात्कार के दो मामले दर्ज होते हैं. 16 दिसंबर की घटना ने जनमानस को झकझोरा. अगले दिन से आम प्रदर्शन शुरू हुए. युवा वर्ग सड़कों पर उतरा. नेताओं और सरकारों का विरोध हुआ. पुलिस कानून व्यवस्था के नाम पर फिर नेताओं की सत्ता बचाने के लिए आगे आई और महिलाओं पर भी उसने लाठियां भांजी. लेकिन विरोध शांत नहीं हुआ.
बस बहसबाजी में अव्वल
दुनिया भर की मीडिया में, यहां तक कि जर्मनी के स्थानीय एफएम चैनलों में भी दिल्ली बलात्कार मामले की चर्चा होने लगी. भारतीय नेता भी बलात्कारियों को सख्त सजा देने का वादा करने लगे. महिलाओं की स्थिति पर जोरदार बहस छिड़ गई. प्रधानमंत्री ने करीब डेढ़ हफ्ते बाद निंदा की. महिलाओं पर अपराध करने वालों के लिए कड़े कानून की मांग हुई. बलात्कारियों को फांसी देने की मांग हुई. देश भर में जिस ढंग से प्रदर्शन हुए, उन्हें देखकर लगा कि भारत में मृतप्राय हो चुकी चेतना लौट रही है. लेकिन इसी बीच पीड़ित छात्रा की मौत हो गई. प्रदर्शनों की आशंका से घबराई सरकार ने गोपनीय ढंग से उसका अंतिम संस्कार कर दिया.
इसके बाद दिल्ली की अदालत में आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट पेश कर दी गई. कार्रवाई शुरू हो गई. राजधानी में पुलिस की गश्त बढ़ा दी गई. काले शीशे वाली गाड़ियों का चालान काटा जाने लगे. सड़कों पर पुलिस हरकत में दिखी पर महिलाओं के खिलाफ हिंसा बंद नहीं हुई.
भारत में हर घंटे एक महिला से बलात्कार हो रहा है. अफगानिस्तान, कांगो और पाकिस्तान के बाद भारत महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक मुल्क है.
16 दिसंबर की घटना को कुछ ही दिन बीते थे कि दिल्ली से सटे नोएडा में 21 साल की युवती का शव मिला. बलात्कार के बाद उसकी हत्या कर दी गई. झारखंड में बलात्कार से बचने के लिए एक युवती ने चलती ट्रेन से छलांग लगा दी. पंजाब में 18 साल की युवती से बस में सामूहिक बलात्कार हुआ. पुलिस ने मामला दर्ज करने तक से इनकार कर दिया, पीड़ित युवती ने जहर खाकर जान दे दी. दिल्ली में भी सात साल की बच्ची को अगवा कर उससे बलात्कार किया गया.
इन घटनाओं के बीच महिलाओं की सुरक्षा पर महीने भर से चल रही बहस भी अब आराम कर रही है. नेता बजट सत्र की तैयारी में व्यस्त हैं. भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना के आंदोलन को आसानी से झेल चुकी भारतीय राजनीति इस जनविरोध को भी दबाने में सफल रही है. अदालतें अपना काम कर रही हैं, मीडिया अपना काम कर रहा है, देश जैसे चल रहा था, वैसे ही चल रहा है.
रिपोर्ट: ओंकार सिंह जनौटी
संपादन: अनवर जे अशरफ