नेपाल में बड़े पर्दे पर पहुंची समलैंगिक फिल्म
२३ नवम्बर २०११अविनाश विक्रम शाह द्वारा लिखित और निर्देशित फिल्म शरीर सुमन और चाहाना की कहानी कहती है जो तब अलग होते हैं जब चाहाना काठमांडू की सड़कों पर बलात्कार और हत्या का शिकार हो जाती है. फिल्म में पार्टनर को खोने के बाद सुमन की व्यथा कथा दिखाई गई है. उनकी प्रेम की कहानी फ्लैशबैक में चलती है.
"आप इसे लेस्बियन मुद्दे पर बनी नेपाल की पहली फिल्म कह सकते हैं," शाह कहते हैं, "लेकिन जब मैं पटकथा लिख रहा था तो मैं एक प्रेमकथा कहना चाहता था." शाह का कहना है कि उन्होंने दो महिलाओं के प्रेम को अपने फिल्म की कथावस्तु इसलिए बनाया क्योंकि अब तक किसी ने इस मुद्दे को नहीं छुआ है. "मैं कुछ नया करना चाहता था."
नेपाल में समलैंगिकता वर्जना का शिकार रहा है और तीन साल पहले सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सरकार को उनके अधिकारों को सुनिश्चित करने के निर्देश के बाद धीरे धीरे उन्हें स्वीकार किया जाने लगा है. लेकिन देश की बहुमत हिंदू आबादी अभी भी पुरातनपंथी है और समलैंगिकों तथा किन्नरों को स्वीकार करने से कतराती है.
शाह कहते हैं, "जब मैं इस फिल्म पर काम कर रहा था तो मुझे डर था लोग अपने को इस विषय के साथ जोड़ नहीं पाएंगे, लेकिन दर्शकों ने इसे पसंद किया है और मुझे लगता है कि ऐसा इसलिए हुआ है कि फिल्म में समकालीन नेपाल का चित्रण है."
सिनेमा हॉल में दर्शकों ने, जिनमें अधिकांश युवा लोग थे, सुमन और चाहाना के बीच अंतरंग दृश्यों को खामोशी के बीच देखा. सुमन चाहाना की जुदाई के बाद अपने को शराब और सिगरेट में डुबो देती है. सुमन का किरदार निभाने वाली पूजा गुरुंग कहती हैं, "आप किसी व्यक्ति को, किसी किताब को या कुत्ते को प्यार करते हैं, जब आप अपने चहेते को खोते हैं तो बहुत दुख होता है." मंगलवार को सिनेमा देखने आए लोगों में बड़ी संख्या समलैंगिकों और ट्रांसजेंडरों के संगठन एलजीबीटी के सदस्यों की थी.
संस्था के अध्यक्ष सुनील बाबू पंत का कहना है, "नेपाल लेस्बियनों, समलैंगिकों, बाइसेक्सुअल और ट्रांसजेंडर लोगों के अधिकारों के मामले में सामाजिक परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है." देश के पहले घोषित समलैंगिक सांसद पंत कहते हैं, "फिल्म लोगों के यौन रुझानों के प्रति बढ़ती जागरूकता के बीच इस परिवर्तन का प्रतिबिंब है."
रिपोर्ट: डीपीए/महेश झा
संपादन: ओ सिंह