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पत्रकारों की लक्ष्मणरेखा पर महाभारत

३ दिसम्बर २०१०

भारत की दो पत्रिकाओं में लॉबिस्ट नीरा राडिया की टैप की हुई बातचीत छपने के बाद पूरे देश में पत्रकारिता की आचार संहिता पर बहस छिड़ गई है. एडिटर्स गिल्ड की बैठक में यह बहस और भड़क उठी और दोनों पक्षों ने गोले दागे.

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तस्वीर: AP

गिल्ड के अध्यक्ष राजदीप सरदेसाई ने दोनों पत्रिकाओं पर इलजाम लगाया कि उन्होंने पूरी बातचीत को प्रकाशित करके पत्रकारिता के सिद्धांतों को तोड़ा है. सरदेसाई का मानना है कि नीरा राडिया कांड में फंसे हुए पत्रकारों से पेशेवर भूल हुई है और उन्होंने पेशेवर गलती नहीं की है.

दिल्ली के प्रेस क्लब में खचाखच भरे हॉल में सरदेसाई ने कहा कि मामले में फंसे पत्रकारों से उनका पक्ष न लिया जाना बेहद खराब पत्रकारिता की निशानी है और इससे उन्हें सदमा पहुंचा है.

लेकिन इस बयान पर सरदेसाई वहां जमा पत्रकारों से घिर गए. मेल टुडे की पूर्णिमा जोशी ने कहा, "मुझे यह जान कर बेहद दुख होता है कि एडिटर्स गिल्ड के प्रेसीडेंट सिर्फ इस बात को सही ठहरा रहे हैं, बल्कि कॉरपोरेट कंपनियों के संदेश कांग्रेस तक पहुंचाने वालों का साथ दे रहे हैं."

इसके बाद राजदीप सरदेसाई ने फौरन सफाई दी कि उनके कहने का यह मतलब नहीं था. इस बैठक में वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर, आउटलुक पत्रिका के एडिटर इन चीफ विनोद मेहता, प्रसार भारती की चेयरपर्सन मृणाल पांडे और फाइनेंसशियल टाइम्स के सुनील जैन भी शामिल हुए.

विनोद मेहता ने सरदेसाई को सीधा जवाब देते हुए कहा कि बोफोर्स और वाटरगेट जैसे मुद्दों पर भी लोगों की प्रतिक्रिया नहीं ली गई क्योंकि बुनियादी जानकारी में ही पक्के सबूत मिल गए. मेहता ने कहा कि पत्रकारों को भी इस बात की जानकारी होनी चाहिए और यह तर्क देना कि वह अपने सूत्रों से बात कर रहे थे, बिलकुल बकवास है. मेहता की मैगजीन आउटलुक ने भी नीरा राडिया और भारत के कुछ चुनिंदा पत्रकारों की बातचीत को प्रकाशित किया है. मेहता ने कहा, "अगर वह (नीरा राडिया) जानती थी कि उसके निर्देशों का पालन नहीं किया जाएगा, तो वह आखिर जानकारी क्यों दे रही थी."

नीरा राडिया भारत के कुछ प्रमुख औद्योगिक घरानों की मार्केटिंग करती हैं. लेकिन कहा जाता है कि वह जबरदस्त लॉबिस्ट भी हैं. पिछले साल उन्होंने भारत के कुछ प्रमुख मीडिया घरानों के जाने माने पत्रकारों से बात की, जिसमें केंद्रीय मंत्रिमंडल में एक मंत्री पद की फिक्सिंग की चर्चा थी.

वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर ने हाल के दिनों में मीडिया हाउस के नियमों पर सवाल उठाया और कहा कि कॉन्ट्रैक्ट सिस्टम की वजह से आज के रिपोर्टर जबरदस्त दबाव में रहते हैं. प्रसार भारती प्रमुख मृणाल पांडे ने कुछ प्रमुख उद्योगपतियों के मीडिया हाउसों पर निशाना साधा, जिसमें मालिक खुद प्रमुख संपादक बन बैठता है.

द हिन्दू की नीना व्यास ने बताया कि किस तरह एक वरिष्ठ बीजेपी नेता ने उनसे गुजारिश की थी कि उनसे संबंधित खबर को हल्के ढंग से प्रकाशित किया जाए और इसके बदले वह बीजेपी के अंदर की खबरें उन्हें देते रहेंगे. नीना ने कहा कि यह उनकी पत्रकारिता की जिन्दगी को आसान कर सकता था लेकिन उन्होंने उस नेता को दोबारा फोन नहीं किया.

फाइनेंसशियल टाइम्स के सुनील जैन ने मजबूती से कहा कि आचार संहिता और सिद्धांतों की बात करने की जगह ऐसे पत्रकारों को बेनकाब किया जाना चाहिए और उनकी खिल्ली उड़ाई जानी चाहिए.

रिपोर्टः पीटीआई/ए जमाल

संपादनः महेश झा