परिवार ने ठुकराया, संस्था ने दी मदद
९ जून २०१७परेशान और अस्त व्यस्त हदीजा उत्तरी नाइजीरिया के योला शहर की सड़कों पर भटक रही थी, जब उसके भाई ने उसे देखा और उसे एक नारी निकेतन में ले गया. वहां मुश्किल में पड़ी लड़कियां और औरतें रहती हैं. उनमें से ज्यादातर बाल मजदूरी, यौन हिंसा, बचपन में शादी या किशोरावस्था में गर्भवती होने की शिकार हैं. हदीजा कहती हैं, "वे मुझे अंदर ले गये और मुझे सबकुछ दिया. खाना-पीना और रहने से लेकर कपड़े और शिक्षा तक, यूनिवर्सिटी की डिग्री करने तक." हदीजा अब 32 साल की है और आईटी इंजीनियर है.
हदीजा उन हजारों लड़कियों में एक है जिसे गैर सरकारी संगठन सेंटर फॉर वीमन एंड एडॉलसेंट इम्पॉवरमेंट की मदद मिली है. 1990 में शुरू हुई इस संस्था को अक्सर इस्लामी मूल्यों का विरोधी होने के आरोप में हमलों का सामना करना पड़ा है. लड़कियों की मदद करने के साथ यह संगठन उनके माता पिताओं की भी मदद करता है. वह उन्हें आर्थिक मदद भी देता है ताकि वे अपनी बेटियों से फुटपाथ पर सामान बेचने का काम कराने या उनकी शादी कर देने के बदले उन्हें स्कूल में भेजें.
नाइजीरिया में उन बच्चों की तादाद दुनिया में सबसे ज्यादा है जो स्कूल नहीं जाते. संयुक्त राष्ट्र की बाल संस्था यूनीसेफ के अनुसार ऐसे 1 करोड़ से ज्यादा बच्चों में 60 फीसदी लड़कियां हैं. सेंटर फॉर वीमन एंड एडॉलसेंट इम्पॉवरमेंट की कॉर्डिनेटर तुरई कादिर कहती हैं, "मां-बाप को लगता है कि उनके बचने की एकमात्र रास्ता यही है कि उन्हें सिर पर सामान रखकर बेचने के लिए भेजा जाए. यदि हम उनकी मदद न करें तो वे अपनी बेटियों को स्कूल नहीं भेजेंगे." ये संस्था उन लड़कियों को भी शिक्षा मुहैया करा रही है जो जिहादी संगठन बोको हराम के विद्रोह के कारण बेघर हो गयी हैं.
बुजुर्गों की मदद
जरूरत पड़ने पर सेंटर फॉर वीमन एंड एडॉलसेंट इम्पॉवरमेंट संस्था समाज के बुजुर्गों की भी मदद लेती है. जब उन्हें लगता है कि वे माता-पिता को बेटी की शादी करने से रोक नहीं पायेंगे तो वे सामुदायिक नेताओं से हस्तक्षेप करने को कहती हैं ताकि वे भावी पतियों से सीधे बात कर सकें. कादिर कहती हैं, "हम लड़कियों के बच्चों की देखभाल के लिए नैनी रखते हैं ताकि वे स्कूल जा सकें." वे बताती हैं कि सेंटर को धनी लोगों से चंदा मिलता है. वे स्कूलों में क्रेच और गर्भवती मांओ के लिए क्लीनिक बनाने के लिए चंदा इकट्ठा कर रही हैं.
नाइजीरिया में करीब 40 फीसदी लड़कियों की शादी 18 साल की उम्र से पहले ही कर दी जाती है, जबकि 20 फीसदी लड़िकयों को 15 का होने से पहले ही ब्याह दिया जाता है. हालांकि 2003 में अवैध घोषित किये जाने के बाद से बाल विवाह के मामलों में 9 प्रतिशत की कमी हुई है. कादिर बताती हैं कि जबरन शादियों के मामलों में भारी कमी आई है. उनका केंद्र मौजूदा और पूर्व बाल दुल्हनों की मदद करता है ताकि वे फिर से स्कूल जा सकें और कोई हुनर सीख सकें. लेकिन योला के बहुत से लोग नागरिक समाज के प्रयासों का विरोध करते हैं और कहते हैं कि महिला अधिकारों को बढ़ावा देना इस्लाम की शिक्षा और मूल्यों के खिलाफ है.
एमजे/एके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)