पर्यावरण का ध्यान रखते जर्मन
२७ अप्रैल २०१३किसी से भी पूछिए जर्मनों का खास क्या है, वो तुरंत कहेंगे, बीयर, सॉसेज, लेदरपैंट्स. लेकिन हाल ही में मेरे एक फ्रांसीसी मित्र ने इसमें कुछ और जोड़ा, 'कचरा अलग करना'. उन्हें लगता है कि यह बहुत अजीब है कि जर्मन लोग अलग अलग कचरा अलग अलग डब्बे में फेंकते हैं. इतना नहीं उसके लिए जर्मन में खास शब्द है म्युलट्रेनुंग यानी कचरे का विभाजन.
और जब बात कचरा अलग करने की हो जर्मन निश्चित ही विश्व चैंपियन हैं. आप उन्हें कचरा डालते हुए जाते देखिए आप आश्चर्य में पड़ जाएंगे. और ध्यान देने वाली बात यह है कि ये काम हमेशा घर के पुरुष ही करते हैं. महिलाएं कभी कभार करती हैं. लेकिन मामला चूंकि बहुत टेकनिकल है इसलिए पुरुष महिलाओं को इसकी जिम्मेदारी देने में आनाकानी करते हैं. यही कारण है कि आपको घर के मर्द अक्सर नीचे कचरे के डब्बे के पास मिलेंगे जहां वो कचरा, पीले, हरे, ग्रे और नीले रंग के डब्बे में अलग कर रहे होंगे.
ये काफी जटिल काम है. जर्मनी के जाने माने व्यंगकार रॉबर्ट गैर्नहाड्ट इस बारे में एक मजेदार कहानी सुनाते हैं. जिसमें एक दंपत्ति तय ही नहीं कर पाते कि वह टी बैग्स कैसे रिसाइकल करें. अब चाय तो जैविक कचरा है इसलिए इसे भूरे कचरे के डिब्बे में डाला जाना चाहिए. लेकिन इस पर लगा पेपर नीले डब्बे का माल है. जबकि स्टेपलर पीले में डाला जाना चाहिए. और धागे का क्या. तो क्या यह रिसाइकल नहीं किए जा सकने वाला कचरा है या हानिकारक कचरा. क्या धागे के लिए अलग से कचरे का डिब्बा होना चाहिए.
लेकिन जर्मन चुनौतियों से डरने वाले लोगों में नहीं है. एक बार जब हम किसी मुद्दे पर प्रतिबद्ध होते हैं तो हम पूरी तरह होते हैं. पर्यावरण को बचाने की जिम्मेदारी जर्मनों ने अपने दिल पर ले ली है. अब यह उनके डीएनए में बस गई है.जर्मन प्रकृति से इतने जुड़े होते हैं कि आपको लगेगा कि वही पहले थे जिन्होंने इसे देखा. उन्हें अपने जंगलों से बहुत मुहब्बत है. दुनिया के किसी और देश ने अपने जंगलों के लिए इतनी काव्यात्मक और कलात्मक बातें नहीं कहीं होंगी. 19वीं सदी में यह रोमांटिक कवियों, कलाकारों का खास विषय था. प्रकृति उनके लिए मां, दोस्त, भाई, साथी, इंसान सभी कुछ थी. यह जुड़ाव जर्मनों में अभी भी बना हुआ है.
उनकी नदियां, खेत, हवा जिसमें वो सांस लेते हैं, जर्मन अपने पर्यावरण बिलकुल अपने मूल रूप में ही रखना चाहते हैं, हालांकि हमेशा से ऐसा नहीं था.
युद्ध के बाद के सालों में जर्मनी की आर्थिक उड़ान पर्यावरण की कीमत पर ही आई थी. लेकिन जर्मन अब बेहतर जानते हैं. औद्योगिक इलाके रूर घाटी का आसमान बिलकुल उतना ही नीला है जैसी एसपीडी पार्टी के विली ब्रांड ने मांग की थी. 1961 के भाषण में उन्होंने जर्मनी की राजनीति को पर्यावरण के लिए जागरूक बनाने की पहल शुरू की थी. राइन नदी में मछलियां हैं और कोई आत्मसम्मान से भरपूर जर्मन तट पर पिकनिक के बाद कचरा छोड़ कर नहीं जाएगा. हां अगर हाईवे के रेस्तरां में आपको कचरे से लबालब डिब्बा दिखे तो मान लीजिएगा कि किसी डच ने ये किया होगा.
इससे नफरत करने वाले तो शिकायत करते ही हैं कि जर्मनी ने ग्रीन कार्ड का बहुत ज्यादा इस्तेमाल कर लिया. उनका कहना है कि जर्मन हर मुद्दे के चरम पर जाते हैं. चाहे वो साफ बिजली हो, बायोगैस हो या फिर पुराने बल्ब पर रोक लगाने का मुद्दा हो. इस सब में हाइवे के नीचे बनाए गए टोड टनल को नहीं भूला जा सकता जो उन्होंने मेंढकों को रास्ता क्रॉस करने के लिए खास तौर पर बनाई थी. उनका मानना है कि जर्मन इको तानाशाही में रह रहे हैं.
एक अमेरिकी कहावत के मुताबिक, 'जब तक आखिरी पेड़ नहीं कट जाता, आखिरी मछली नहीं पकड़ ली जाती, आखिरी नदी जहरीली नहीं बना दी जाती तब तक हमें समझ नहीं आएगा कि हम पैसे नहीं खा सकते.' शायद यह भविष्यवाणी ग्रीनपीस संगठन के साथ पैदा हुई होगी. लेकिन यह निश्चित इस बात को दिखाती है कि जर्मन क्यों कचरा अलग करने के बारे में इतने कट्टर हैं.
रिपोर्टः पेटर जोडेइक
संपादनः एएम