क्या गठबंधन से मजबूत होंगे कांग्रेस और लेफ्ट
२५ दिसम्बर २०२०इस गठजोड़ के औपचारिक एलान के बाद बंगाल के राजनीतिक हलकों में यही सवाल पूछा जा रहा है. वैसे, इन दोनों दलों ने वर्ष 2016 के विधान सभा चुनाव में भी तालमेल किया था. तब लेफ्ट को नुकसान ही सहना पड़ा था. बीते साल हुए लोकसभा चुनावों में स्थानीय स्तर पर अनौपचारिक तालमेल के बावजूद कांग्रेस जहां छह से घट कर दो सीटों पर आ गई थी वहीं लेफ्ट का खाता तक नहीं खुल सका था. ऐसे में सत्ता के दावेदार के तौर पर उभरती बीजेपी और सत्तारुढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की टक्कर में इन दोनों को अपना वजूद साफ होने का खतरा महसूस हो रहा है. सीपीएम की केंद्रीय समिति तो पहले ही इस गठजोड़ पर सहमति दे चुकी है. अब गुरुवार को कांग्रेस आलाकमान ने भी इस पर अपनी मुहर लगा दी.
बीते महीने बिहार विधानसभा चुनावों में लेफ्ट को मिली कामयाबी के बाद महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने बंगाल के लेफ्ट नेताओं को बीजेपी को सबसे बड़ा दुश्मन मानते हुए तृणमूल कांग्रेस के साथ हाथ मिलाने की सलाह दी थी. हालांकि प्रदेश नेतृत्व ने उनका प्रस्ताव फौरन खारिज कर दिया था. उसकी दलील थी कि पार्टी की निगाहों में बीजेपी और टीएमसी एक जैसे दुश्मन हैं. दूसरी ओर, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अधीर चौधरी की गिनती पहले से ही मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के कट्टर विरोधियों में होती रही है. वर्ष 2011 में कांग्रेस ने जब टीएमसी के साथ चुनावी तालमेल किया था तब भी अधीर ने उसका कड़ा विरोध किया था. हालांकि पार्टी आलाकमान के सामने उनकी एक नहीं चली थी. अब लेफ्ट के साथ तालमेल की बात तो महीनों से चल रही थी, लेकिन इसे औपचारिक जामा गुरुवार को दिल्ली में पहनाया गया.
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अधीर चौधरी कहते हैं, "सीटों के बंटवारे का फार्मूला अभी तय नहीं हुआ है, लेकिन टीएमसी और बीजेपी से मुकाबले के लिए कांग्रेस समुचित सीटें लेने पर जोर देगी. लोकसभा और विधानसभा चुनावों में बहुत फर्क होता है. बीजेपी अगर सोचती है कि वह लोकसभा चुनावों की कामयाबी को दोहरा सकती है तो यह उसकी भूल है. बंगाल में कांग्रेस-लेफ्ट गठजोड़ ही टीएमसी और बीजेपी का विकल्प साबित होगा.”
सीपीएम ने भी कांग्रेस के इस फैसले का स्वागत किया है. सीपीएम के प्रदेश सचिव सूर्यकांत मिश्र कहते हैं, "हम कांग्रेस के साथ मिल कर राज्य में सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ लड़ेंगे. इस गठजोड़ से टीएमसी और बीजेपी के खिलाफ लोकतांत्रिक व धर्मनिरपेक्ष लोगों को एकजुट करने की प्रक्रिया मजबूत होगी. हम इन दोनों दलों के खिलाफ पूरी ताकत से लड़ेंगे.”
जानकारों का कहना है कि सीटों के बंटवारे के मुद्दे पर पेंच फंस सकता है. कांग्रेस अध्यक्ष अधीर चौधरी ने पहले ही ज्यादा सीटों पर लड़ने का संकेत दिया है. उधर सीपीएम का कहना है कि सीटों का बंटवारा दोनों दलों की ताकत और जीतने की क्षमता के आकलन के आधार पर किया जाना चाहिए. कांग्रेस विधायक नेपाल महतो ने तो अधीर चौधरी को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाने की मांग उठाई है. विधानसभा में विपक्ष के वरिष्ठ नेता और कांग्रेस विधायक अब्दुल मन्नान कहते हैं कि इसका फैसला आलाकमान करेगा.
कांग्रेस और लेफ्ट के नेता बंगाल में बीजेपी के उभार के लिए ममता बनर्जी और उनकी पार्टी को ही जिम्मेदार ठहराते हैं. अधीर चौधरी कहते हैं, "धर्मनिरपेक्ष विपक्षी दलों को ताकत से आतंकित कर उनमें बगावत की ममता की रणनीति ही बंगाल में बीजेपी के बढ़ते असर के लिए जिम्मेदार है. बंगाल के लोग अब टीएमसी और बीजेपी से मुक्ति चाहते हैं. हम इन दोनों को पराजित कर सत्ता में आएंगे.”
बीजेपी कांग्रेस और लेफ्ट पर केंद्र में कुश्ती और बंगाल में दोस्ती के आरोप लगा रही है? इस पर अधीर कहते हैं, "राजनीति में यह कोई असामान्य बात नहीं है. ऐसा हो सकता है.”
वैसे, वर्ष 2016 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने 294 में से 90 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 44 सीटें जीत कर दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी थी. उसके बाद पार्टी के कई विधायक टीएमसी में शामिल हो चुके हैं. वर्ष 2016 के चुनावों में टीएमसी को जहां 44.9 फीसदी वोट मिले थे वहीं कांग्रेस-लेफ्ट को 37.7 फीसदी. गठजोड़ को मिली 76 सीटों में से 44 अकेले कांग्रेस को मिली थी और बाकी लेफ्ट को.
टीएमसी ने इस गठजोड़ को कोई अहमियत देने से इंकार कर दिया है. पार्टी के प्रवक्ता सौगत राय कहते हैं, "बंगाल में टीएमसी सत्ता की हैट्रिक बनाएगी. लेफ्ट और कांग्रेस तो पहले ही साइनबोर्ड में बदल चुके हैं. उनके जनाधार में बीजेपी ने जबरदस्त सेंध लगा दी है. ऐसे में गठजोड़ से उन दोनों दलों की चुनावी किस्मत पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा.”
बीजेपी के प्रवक्ता गौरव भाटिया दावा करते हैं, "बंगाल में दो-तिहाई बहुमत के साथ बीजेपी ही सत्ता में आएगी. जहां तक कांग्रेस व लेफ्ट गठजोड़ का सवाल है, शून्य में शून्य जोड़ने पर नतीजा शून्य ही रहता है.”
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि वर्ष 2011 के बाद हुए तमाम चुनावों में कांग्रेस और लेफ्ट अपने वजूद की रक्षा के लिए जूझते रहे हैं और हर बार उनके वोट कम होते जाते हैं. बीते लोकसभा चुनावों में तो बीजेपी ने इन दोनों दलों के वोटों में जबरदस्त सेंध लगाई थी. राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर सुनील कुमार पाल कहते हैं, "कांग्रेस और लेफ्ट दोनों के लिए अगला चुनाव बेहद अहम है. यह दोनों राजनीति के हाशिए पर पहुंच चुके हैं. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि एक बार फिर हाथ मिलाने से क्या इनकी किस्मत भी बदलेगी.”
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