पाकिस्तान के पिघलते ग्लेशियरों में सबकुछ बह गया
१० अगस्त २०१८बर्फ से ढंके हिंदुकुश पहाड़ की तलहटी में बसे इशकोमान घाटी के बादस्वात गांव के लोगों की जिंदगी बाढ़ की दया पर निर्भर करती है. अचानक आने वाली बाढ़ उनके घर, सड़कें, पुल यहां तक कि फसल और जंगल भी बहा कर अपने साथ ले जाती है. 30 साल के शेरबाज चार बच्चों के पिता हैं, वो बताते हैं, "खुदा का शुक्र है कि हम जिंदा हैं लेकिन जो कुछ हमारे पास था वो ग्लेशियर पिघलने से आई बाढ़ अपने साथ बहा कर ले गई." हालांकि बादस्वात गांव के पास कई ग्लेशियर हैं लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि उन्होंने अपनी जिंदगी में पहली बार इस तरह का सैलाब देखा. अधिकारियों का कहना है कि सही वक्त पर लोगों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचा देने के कारण उनकी जान बच गई. शेरबाज कहते हैं कि इस घटना के बाद उन्हें एक तरह से जकड़े होने का अहसास होता है.
ध्रुवीय प्रदेशों से बाहर के इलाकों में पाकिस्तान में सबसे ज्यादा ग्लेशियर हैं. पाकिस्तानी मौसम विभाग पीएमडी के मुताबिक हिमालय, हिंदुकुश और काराकोरम रेंज में 7200 से ज्यादा ग्लेशियर हैं. इन सब से सिंधु नदी को पानी मिलता है और यही पानी देश की जीवनरेखा है. हालांकि बीते 50 सालों के आंकड़े बता रहे हैं कि तापमान बढ़ने के कारण 120 से ज्यादा ग्लेशियरों के पिघलने के संकेत दिखाई पड़े हैं. जब ग्लेशियर जम जाते हैं तो वे अपने पीछे चट्टान मिट्टी और बर्फीले बांधों से बनी झीलें छोड़ जाते हैं. ये बांध स्थिर नहीं होते और जब टूट कर बिखरते हैं तो नतीजा अचानक पानी के तेज बहाव के रूप में आता है और नीचे के गांव बहा ले जाता है.
इसी गांव के एक और निवासी शकूर बेग कहते हैं, "ग्लेशियरों के पहले की तुलना में तेजी से पिघलने के कारण हम खुद को ज्यादा असुरक्षित महसूस कर रहे हैं. ऐसा लगता है कि जैसे हम निरंतर किसी प्राकृतिक आपदा के खतरे में जी रहे हों." 45 साल के शकूर यहां रहते हुए बाढ़ से निपटना जानते हैं लेकिन इतनी तेज और भयानक बाढ़ उन्होंने पहले कभी नहीं देखी.
बेग का घर, फसल और खेत सब खत्म हो गया. अब वो उन करीब 1000 लोगों के समूह में हैं जिन्हें बाढ़ के बाद अधिकारी निकाल कर ऊंची जगहों पर ले गए हैं. यहां वे अस्थायी कैंपों में रह रहे हैं. पहाड़ों के बीच पानी में डूबी और टूटी फूटी सड़कों से इन लोगों तक खाना, टेंट और दूसरी चीजें पहुंचाना बेहद मुश्किल है.
जंगल का नुकसान
ग्लेशियर विशेषज्ञ और पीएमडी के प्रमुख गुलाम रसूल का कहना है कि इस तरह की घटनाएं तो महज शुरुआत हैं. उन्होंने रॉयटर्स से बातचीत में कहा, "ग्लेशियर विस्फोट के कारण इन इलाकों में जो आपदा आई है वह यही नहीं रुकेगी. ऐसे बहुत से ग्लेशियर हैं जिनमें विस्फोट होने की आशंका है." कई सालों से जंगलों की कटाई और जलवायु परिवर्तन के कारण इलाके का तापमान काफी ज्यादा बढ़ गया है जिसके कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं. बीते 80 सालों में गिलगित बल्तिस्तान का तापमान औसतन 1.4 डिग्री बढ़ गया जबकि सिंध, पंजाब और खैबर पख्तूनख्वाह के निचले इलाकों में यह इजाफा 0.6 डिग्री सेल्सियस का रहा.
स्थानीय अधिकारी कहते हैं कि जंगलों को फिर उगाना उनकी प्राथमिकता है लेकिन इलाके को हरा भरा बनाने में वक्त लगेगा. संयुक्त राष्ट्र के सहयोग से कुछ अभियान शुरू किए गए हैं लेकिन सिर्फ इतने भर से नहीं होगा. रसूल बताते हैं कि पीएमडी ने तीन इलाकों में अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाए हैं ताकि खतरे से लोगों को बचाया जाए, हालांकि अभी और ऐसे सिस्टम लगाने की जरूरत है. इस बीच शेरबाज और उनके जैसे दूसरे गांववाले बस ईश्वर से प्रार्थना कर रहे हैं कि वो उन्हें इस प्राकृतिक आपदा से बचाए.
एनआर/एमजे (रॉयटर्स)