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पृथ्वी से कुछ दूर एक नए सौरमंडल की अजब कहानी

२७ सितम्बर २०१९

वैज्ञानिकों को हमारी पृथ्वी से करीब 30 प्रकाश वर्ष दूर एक और सौरमंडल मिला है. इसमें बृहस्पति जैसा एक बड़ा ग्रह अपने से छोटे तारे के चारों ओर चक्कर लगा रहा है. इससे ग्रहों के बनने की हमारी परिभाषा बदल सकती है.

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Künstlerischer Eindruck des Gasriesenplaneten GJ 3512b
तस्वीर: Reuters/G. Anglada-Escude

आमतौर पर ग्रह जिन तारों की परिक्रमा करते हैं वह सबसे बड़े ग्रह से भी काफी बड़े होते हैं. हालांकि रिसर्चरों के मुताबिक इस नए सौरमंडल में तारे और ग्रहों के आकार में कोई ज्यादा अंतर नहीं दिख रहा है. इस सौर मंडल का सितारा जिसे जीजे 3512 नाम दिया गया है. उसका आकार हमारे सौरमंडल के सूर्य के आकार का 12 फीसदी है जबकि जो ग्रह इसकी परिक्रमा कर रहा है. उसका वजन हमारे सबसे बड़े ग्रह बृहस्पति के कम से कम आधे आकार का है.

कैटेलोनिया के इंस्टीट्यूट ऑफ स्पेस स्टडीज के एस्ट्रोफिजिसिस्ट युआन कार्लोस मोराल्स इस रिसर्च का नेतृत्व कर रहे हैं. उन्होंने कहा, "यह अत्यंत अचरज की बात है. इस खोज ने हमें हैरत में डाला है क्योंकि सैद्धांतिक निर्माण के मॉडल बताते हैं कि कम वजन वाले तारे के पास छोटे ग्रह होते हैं जैसे कि पृथ्वी या फिर इससे भी छोटे वरुण जैसे ग्रह, लेकिन हमने बृहस्पति जैसा एक ग्रह देखा है जो अपने से छोटे ग्रह की परिक्रमा कर रहा है."

Jupiter Bilder der NASA-Sonde Juno
बृहस्पति ग्रहतस्वीर: NASA

बृहस्पति जैसा यह बड़ा ग्रह मुख्य रूप से गैसों से बना है जिसे स्पेन की कालार अल्टो ऑब्जरवेटरी ने टेलिस्कोप के सहारे देखा. यह अपने सितारे के चारों ओर एक दीर्घवृत्ताकार पथ पर परिक्रमा कर रहा है जो 204 दिनों में पूरी होती है. जीजे 3512 एक लाल छुद्र जैसा है जिनके सतह का तापमान तुलनात्मक रूप से थोड़ा कम होता है. यह हमारे सूर्य से ना सिर्फ बहुत छोटा है बल्कि इसके आकार की किसी बड़े ग्रह से तुलना की जा सकती है. यह बृहस्पति से आकार में 35 फीसदी बड़ा है. मोराल्स ने बताया, "ये तारे कम ऊर्जा उत्सर्जित करते हैं इसलिए यह सूर्य की तुलना में हल्के होते हैं और इनके सतह का तापमान भी बहुत ठंडा है, यह 3800 केल्विन ही हैं. यही वजह है कि इनका रंग लाल है. "

वैज्ञानिकों के पास इस बात के सबूत हैं कि एक दूसरा ग्रह भी इस तारे की परिक्रमा कर रहा है जबकि एक तीसरा ग्रह शायद सौरमंडल से पहले कभी बाहर जा चुका है. मोराल्स ने बताया कि इसकी पुष्टि बृहस्पति जैसे ग्रह के दीर्घ वृत्ताकार परिक्रमा पथ से होती है.

ग्रहों का जन्म उस तारे के इर्द गिर्द की धूल और तारों के बीच की गैसों से होता है. ग्रहों के बनने का सबसे प्रचलित मॉडल है "कोर एक्रेशन" जिसके मुताबिक कोई भी पिंड पहले ठोस कणों से बनता है और फिर इस पिंड के गुरुत्वीय सिरे के आस पास की गैसों से वातावरण का निर्माण करता है. हालांकि "ग्रैविटेशनल इनस्टेबिलिटी" मॉडल कहलाने वाला एक और मॉडल शायद इस अनोखे सौर मंडल को बेहतर परिभाषित कर सके. मोराल्स बताते हैं, "इस मॉडल में युवा तारे के चारों और घूमता नया ग्रह उम्मीद से ज्यादा बड़ा और ठंडा हो सकता है. इसकी वजह से यह डिस्क ज्यादा अस्थिर हो जाता है और इसके घने इलाके गायब हो सकते हैं. इन पिंडों का इस तरह से विकास हो सकता है जब तक कि ये खत्म ना हो जाएं और इनसे एक ग्रह ना बन जाए. "

एनआर/आरपी (रॉयटर्स)

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