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पोप बना 'गरीबों का फादर'

१४ मार्च २०१३

खोर्खे मारियो बैर्गोलियो पोप चुने जाने के बाद बालकनी में आए. कुछ देर लोगों को देखते रहे और फिर कहा, "आप सब लोग मेरे लिए प्रार्थना करें." लैटिन अमेरिका से आए पहले पोप को कैथोलिक चर्च के लिए ताजा हवा कहा जा रहा है.

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तस्वीर: Getty Images

76 साल के खोर्खे मारियो बैर्गोलियो अर्जेंटीना से आते हैं. पोप चुने जाने के बाद उन्होंने अपना नाम पोप फ्रांसिस प्रथम चुना. करीब 24 घंटे की लंबी प्रक्रिया के बाद बुधवार देर शाम वेटिकन की चिमनी से सफेद धुआं उठा. मतलब साफ था कि दुनिया भर के 115 कार्डिनलों ने नया पोप चुन लिया है. बैर्गोलियो ब्यूनस आयर्स में आर्चबिशप रहे हैं.

अब उन्हें पोप फ्रांसिस कह कर पुकारा जाएगा. पोप फ्रांसिस का व्यक्तित्व यूरोप के आर्चबिशपों से काफी अलग है. वह महंगी कारों में सवारी करने के बजाए सार्वजनिक बस से इधर उधर जाते हैं. खुद अपने हाथ से खाना बनाना और गरीबों की सेवा करना, लंबे वक्त बाद वैटिकन की शीर्ष कुर्सी पर ऐसा करने वाला कोई व्यक्ति बैठा है.

Papst Franziskus / Petersplatz / Vatikan
सेंट पीटर्स बासिलिका की बालकनी में पोप फ्रांसिस प्रथमतस्वीर: Reuters

उन्हें जानने वाले कहते हैं कि वे आर्थिक असमानता, जलवायु परिवर्तन और विश्व के कई इलाकों में चल रहे संघर्ष के खिलाफ आवाज उठाते रहें हैं और आगे भी उठाते रहेंगे. लेकिन कुछ मामलों में उन्हें रुढ़िवादी भी कहा जा रहा है. वह समलैंगिक को शादी करने का अधिकार देने और गर्भनिरोधक का इस्तेमाल करने के खिलाफ हैं.

Argentinen / Papst / Jubel
अर्जेंटीना में जश्नतस्वीर: Reuters

यह पहला मौका है जब दक्षिण अमेरिकी महाद्वीप से कोई पोप चुना गया है. ईसाई गिरजे के 2,000 साल के इतिहास में अब तक ज्यादातर बार कैथोलिक समुदाय का पोप यूरोप से ही चुना गया. लैटिन अमेरिका में दुनिया के सबसे ज्यादा कैथोलिक ईसाई रहते हैं. दुनिया में 1.2 अरब कैथोलिक ईसाई हैं. इनमें से आधे लैटिन अमेरिका में हैं.

ओएसजे/एएम (एएफपी, एपी)