किसानों को मिला सुप्रीम कोर्ट का समर्थन
१७ दिसम्बर २०२०किसानों को प्रदर्शन स्थल से हटाने के लिए दायर की हुई एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है. बुधवार को इसी सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने एक समिति के गठन का प्रस्ताव दिया था जिसमें किसानों और सरकार दोनों पक्षों की तरफ से प्रतिनिधि हों और कृषि विशेषज्ञ भी हों.
गुरूवार को अदालत ने कहा कि समिति की कार्रवाई और विरोध प्रदर्शन दोनों साथ साथ चल सकते हैं. मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली जजों की पीठ ने कहा कि केंद्र सरकार से पूछा कि क्या यह संभव है कि जब तक इस सुनवाई का फैसला ना हो जाए तब तक नए कृषि कानूनों को लागू नहीं किया जाए?
इस पर सरकार द्वारा असमर्थता जताने पर अदालत ने पूछा कि क्या सरकार कम से कम इतना आश्वासन दे सकती है कि बातचीत को आगे बढ़ाने के लिए सरकार इन कानूनों के तहत कोई शासनात्मक कदम नहीं उठाएगी? इस पर सरकार की तरफ से जिरह कर रहे अटॉर्नी जनरल ने कहा कि वो इस पर सरकार से आदेश ले कर बताएंगे.
मुख्य याचिकाकर्ता के वकील हरीश साल्वे ने कई बार अदालत को कहा कि प्रदर्शनों की वजह से दिल्ली में आम लोगों का जनजीवन बहुत प्रभावित हुआ है लेकिन अदालत ने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कोई भी आदेश देने से मना कर दिया. पीठ ने इसलिए भी कोई आदेश नहीं दिया क्योंकि आठ किसान संगठनों का कोई भी प्रतिनिधि सुनवाई में शामिल नहीं हुआ था.
सिर्फ भारतीय किसान यूनियन (भानु) की तरफ से अधिवक्ता ए पी सिंह शामिल हुए थे. अदालत ने बाकी संघों को नोटिस भेजने के लिए भी कहा ताकि आगे की सुनवाई शुक्रवार को या छुट्टियों के दौरान हो सके. अदालत सोमवार 21 दिसंबर से एक जनवरी 2021 तक क्रिसमस अवकाश के लिए बंद रहेगी. इस दौरान एक विशेष अवकाश पीठ मामले पर सुनवाई जारी रख सकती है.
प्रदर्शनों की वजह से दिल्ली की सीमाएं बंद होने से हो रही असुविधा की दलील पर पीठ ने कहा कि ऐसा नहीं कि सारे रास्ते बंद हो गए हैं. मुख्य न्यायाधीश ने किसानों के विरोध करने के अधिकार का पूरा समर्थन करते हुए कहा कि जब तक कोई हिंसा नहीं होती तब तक विरोध करना किसानों का अधिकार है.
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