प्रवासियों पर जनमत संग्रह
७ फ़रवरी २०१४यूरोप के सबसे खूबसूरत देशों में से एक है स्विट्जरलैंड जहां हर कोई छुट्टी मनाना या फिर बसना चाहता है. हाल के सालों में इस छोटे से देश में मकानों की कीमतों में तेजी से उछाल आया है और ट्रेनों में भीड़ का दोष अमीर स्विट्जरलैंड में प्रवासियों पर दिया जाता है. रविवार को देश की जनता तय करेगी कि क्या प्रवासियों की संख्या कोटा के तहत तय की जाए. स्विट्जरलैंड की दक्षिणपंथी स्विस पीपुल्स पार्टी (एसवीपी) इस जनमत संग्रह को करा रही है. हालांकि बाकी सभी राजनीतिक दल इसका विरोध कर रहे हैं. साथ ही मतदाताओं से यह भी पूछा जाएगा कि क्या एक देश से दूसरे देश जाने की आजादी पर यूरोपीय संघ के साथ स्विस समझौतों पर दोबारा बातचीत होनी चाहिए. साल 2002 में समझौते के प्रभाव में आने के बाद से हर साल करीब 80 हजार विदेशी कामगार स्विट्जरलैंड आ चुके हैं. यहां आने वाले तीन चौथाई प्रवासी यूरोपीय संघ के देशों से हैं. जनमत संग्रह के विरोध में अधिकांश राजनीतिक दल और व्यापार समूह हैं.
बाहरी आबादी के कारण बोझ
कई राजनीतिक पार्टियों और व्यापारियों का तर्क है कि ईयू के कामगार और उसके साथ रिश्ते अर्थव्यस्था के लिए अहम है. ताजा ओपिनियन पोल के मुताबिक 43 फीसदी लोग जनमत संग्रह के पक्ष में हैं. स्विस पीपुल्स पार्टी की दलील है कि आठ लाख लोगों की आबादी वाले देश में प्रवासियों के कारण रियल एस्टेट के क्षेत्र में कीमतों में तेजी आई है. साथ ही वे कम वेतन में नौकरी कर स्विस लोगों को अवसरों से वंचित करते हैं. पार्टी देश में ट्रैफिक जाम का कारण भी विदेशियों को बताती है. पार्टी का तर्क है कि देश में नए आने वालों लोगों के लिए महंगे स्कूल और अस्पताल बनाने होंगे. एसवीपी के सांसद क्रिस्टॉफ ब्लॉखर के मुताबिक, "अत्यधिक आप्रवासन को रोकने के लिए हम जितना इंतजार करेंगे हमारी स्थिति उतनी खराब होगी." आर्थिक दलीलों के अलावा एसवीपी प्रवासियों को अपराध और स्विस संस्कृति के लिए खतरा बताने से भी नहीं पीछे हटती. चुनाव अभियान में एसवीपी के प्रचारकों ने विदेशी मुसलमानों को निशाना बनाते हुए पोस्टर लगाए थे. पोस्टर में बुर्का पहने एक महिला को दिखाया गया था और पोस्टर पर लिखा था "जल्द ही दस लाख मुसलमान."
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के मुताबिक स्विट्जरलैंड में फिलहाल चार लाख 90 हजार मुसलमान हैं. एक अनुमान के मुताबिक 2030 तक मुसलमानों की संख्या बढ़कर छह लाख 63 हजार हो जाएगी. ओपिनियन पोल कराने वाली संस्था जीएफएस बर्न के मुताबिक आधे से ज्यादा लोगों का मानना है कि यूरोपीय संघ के साथ समझौते के कारण उनके जीवन की गुणवत्ता खराब हुई है जबकि 50 फीसदी मौजूदा अपराधों के लिए प्रवासियों को जिम्मेदार मानते हैं. यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष जोसे मानुएल बारोसो ने साफ कर दिया है अगर स्विट्जरलैंड नौकरी की चाह रखने वालों की आजादी को सीमित करता है तो वह उसके साथ रिश्तों पर दोबारा विचार करेगा. बारोसो के मुताबिक, "सदस्य देश आने जाने की आजादी को अन्य आजादी से अलग करने को कभी मंजूर नहीं करेंगे. मुझे उम्मीद है स्विट्जरलैंड इस बात को समझेगा."
एए/एमजी (डीपीए)