प्राकृतिक कीटनाशक क्या हैं?
१ मार्च २०२४प्राचीन फारस (आज का ईरान) में खाने योग्य पौधों पर हमला करने वाले कीड़ों को खत्म करने के लिए, गुलदाउदी के सूखे फूलों से तैयार प्राकृतिक कीटनाशक पाइरेथ्रम का उपयोग किया जाता था. आगे चलकर उसका उपयोग जुं मारने के लिए हुआ.
लेकिन 20वीं सदी के आरंभ से फलों, अनाजों और सब्जियों को कीड़ों से बचाने के लिए बड़े पैमाने पर एकल खेती आर्सेनिक, सल्फर या तांबा-युक्त रसायनों पर निर्भर होने लगी थी.
धरती और किसानों को भी मार रहे हैं कीटनाशक
उन तमाम रासायनिक कीटनाशकों का जैव प्रणालियों और मानव स्वास्थ्य पर काफी गंभीर प्रभाव पड़ा. इसीलिए कुछ देशों ने उन पर रोक लगा दी. यूरोपीय संघ भी लंबे समय से चेतावनी देता आ रहा है लेकिन ग्लाइफोसेट को गैरकानूनी बनाने में नाकाम ही रहा है. ये रासायनिक कीटनाशक जैवविविधता के लिए खतरा है और कैंसर के पनपने का कारण भी. लेकिन विकल्प क्या है?
कीटनाशकों का प्राकृतिक उत्पादन
पौधे से मिलने वाले पाइरेथ्रम जैसे उत्पादों से तैयार जैव कीटनाशक हो या नीम से निर्मिंत तेल(एसेन्शियल ऑयल) या रोगाणुओं के खिलाफ बचाव करने वाली फफूंद (फंगस) की किस्में, ये तमाम चीजें दुनिया भर में लोकप्रिय होती जा रही हैं. किसान रासायनिक कीटनाशकों से तौबा कर रहे हैं.
भारत में बहुतायत में पाए जाने वाले नीम के पेड़ में बड़ी संख्या में लीमोनॉयड पाए जाते हैं. ये अक्सर सीट्रस पौधों में मिलते हैं और अपनी कीटनाशक खूबियों के लिए विख्यात हैं. तेल के रूप में प्रयोग करने से कीड़े पास नहीं फटकते.
उदाहरण के लिए कुदरती कीटनाशक, टिड्डियों को काबू करने और फसल को बर्बाद कर देने वाले टिड्डी दल को बनने से रोकने में असरदार होता है.
कीटनाशकों का मंडराता संकट और घिसापिटा कानून
रोजमेरी का तेल भी विविध अनाज और सब्जी प्रजातियों की वृद्धि रोकने और उन्हें खराब करने वाले एफिडों के खिलाफ आला दर्जे का प्रतिरोधक साबित हुआ है.
इस बीच, दक्षिण भारत के तमिलनाडु में एक किसान ने रासायनिक कीटनाशकों से छुटकारा पा लिया जिनकी वजह से उनकी सेहत पर असर पड़ा था. अब वो गौमूत्र और घर पर उगाई लीकों (प्याज के प्रकार की एक वनस्पति) से तैयार दवा का छिड़काव करते हैं. उनकी जैविक फसलें लहलहा रही हैं.
प्राकृतिक कीटनाशक कैसे काम करते हैं
दिसंबर में प्रकाशित एक अध्ययन में ऑस्ट्रेलियाई शोधकर्ताओं ने दिखाया कि कैसे नीले-हरे एफिड, रासायनिक कीटनाशकों के खिलाफ प्रतिरोध विकसित कर चुके हैं. ये रुझान पूरी दुनिया में देखा गया.
इस प्रतिरोध को तोड़ने के लिए शोधकर्ताओं ने गैर-रासायनिक कीट नियंत्रण विकल्पों की सिफारिश की. जिनमें सोनपंखी यानी एक किस्म के गुबरैले और पैरासिटॉइड ततैये जैसे "स्वाभाविक शत्रुओं" को प्रोत्साहन भी शामिल था.
अध्ययन के मुताबिक मच्छर जनित बीमारी की सफल रोकथाम के लिए बैक्टीरिया के नये रूपों का इस्तेमाल, दूसरा विकल्प है. कीट नियंत्रण के लिए रासायनिक कीटनाशकों पर निर्भर रहने की अपेक्षा क्षेत्र-विशेष समाधान लागू किए जाने चाहिए.
सोया के सबसे बड़े निर्यातक देश ब्राजील ने जैविक फफूंद और जीवाणुओं से प्राकृतिक कीटनाशक बनाने में काफी प्रगति की है.
इन सूक्ष्मजीवियों का इस्तेमाल फायदेमंद साबित हुआ, उनकी बदौलत कीड़ों और बीमारियों से निपटते हुए सोया की फसल अच्छी होने लगी है.
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन के मुताबिक ब्राजील मक्का और कपास का भी एक प्रमुख निर्यातक है और रासायनिक कीटनाशक का नंबर एक उपभोक्ता भी.
रासायनिक कीटनाशकों के इस्तेमाल में बढ़ोतरी के बावजूद, ब्राजील में जैवकीटनाशकों की बिक्री, तमाम कीटनाशकों में दोगुना से ज्यादा रही है. 2020 में 4 प्रतिशत से बढ़कर 2022 में 9 प्रतिशत रही.
जैव कीटनाशकों के लाभ
अमेरिका के पर्यावरण रक्षा प्राधिकरण (ईपीए) का कहना है कि बैक्टीरिया या फंगस जैसे सूक्ष्मजीवियों से बने कीटनाशक अलग अलग किस्म के बहुत सारे कीड़ों को काबू में कर सकते हैं.
सबसे ज्यादा इस्तेमाल में आने वाला ऐसा ही कीटनाशक, बैसिलस थुरिंगियनसिस बैक्टीरिया का एक प्रकार है. वो कीड़ों के लार्वा की बहुत सी संबद्ध प्रजातियों को खत्म करने में सक्षम प्रोटीनों का मिश्रण पैदा करता है.
ईपीए का कहना है कि ऐसे जैवकीटनाशक, आम कीटनाशकों की तुलना में ना सिर्फ कम विषैले होते हैं बल्कि वे "लक्षित कीटों और उनके करीबी जीवों" पर अपने असर को सीमित रखते हैं.
ये स्थानीय इस्तेमाल के लिए तैयार उन पारंपरिक कीटनाशकों से बिल्कुल उलट हैं जो पक्षियों, कीटों और स्तनधारियों जैसे विविध जीवों को प्रभावित कर सकते हैं.
ईपीए के मुताबिक जैव कीटनाशक बहुत कम मात्रा में भी असरदार होते हैं. इसके अलावा, वे जल्दी विघटित हो जाते हैं. पारंपरिक कीटनाशकों की तरह पर्यावरण में ज्यादा देर नहीं रहते और प्रदूषण भी नहीं फैलाते.
प्राकृतिक कीटनाशकों की बदौलत पैदावार में भारी वृद्धि हो सकती है. हालांकि एक समस्या यही है कि बदलती जलवायु और वायुमंडल में बढ़ती सीओटू, कुछ विशेष पौधों और कीटों के बीच डाइनैमिक को बदल सकती हैं.