फर्जी मुकदमा चलाकर सजा दी जाती है उइगुर मुसलमानों को
८ जून २०२०चीन की सरकार के शिनजियांग प्रांत में रिएजुकेशन कैंपों के विशाल नेटवर्क में हर दिन की नजरबंदी उबाऊ और बोरियत से भरी होती है. हिरासत में रखे गए लोगों को असंख्य घंटों तक उपदेशों और भाषा की कक्षा में छोटी छोटी मेजों पर बैठना होता है. कुछ जगहों पर इन्हें टीवी पर राष्ट्रपति शी जिनपिंग की तारीफों वाले प्रसारणों को घंटों देखने के लिए बाध्य किया जाता है. इस दौरान कानाफूसी या इस तरह के मामूली उल्लंघन का नतीजा तुरंत और कठोर सजा के रूप में सामने आता है.
कई महीने ऐसे सेंटरों में गुजारने के बाद बाहर आए कुछ लोगों का कहना है कि एक दिन थोड़ा अलग था. यह वो दिन था जब उन्हें उल्लंघनों की एक सूची थमा कर उनमें से एक या कई उल्लंघनों को चुनने के लिए कहा गया. दरअसल कैंप में रखे गए लोगों को ऐसे अपराध को चुनना था जिनके लिए उन्हें महीनों के लिए कैद में रखा गया. ज्यादातर मामलों में उन्हें यह भी नहीं बताया गया कि पहली बार उन्हें क्यों पकड़ा गया था. अपराध चुनने के बाद उनका दिखावटी मुकदमा शुरू होता है. ऐसे मुकदमों में उनका कोई कानूनी पैरवीकार नहीं होता और बिना सबूत या पर्याप्त कानूनी प्रक्रिया के ही उन्हें दोषी ठहरा दिया जाता है. डीडब्ल्यू ने शिनजियांग के ऐसे चार लोगों से बात की है जो इन शिविरों में रह चुके हैं. इनमें दो पुरुष और दो महिलाएं हैं.
शिनजियांग उत्तर पश्चिमी चीन का एक सुदूर इलाका है जहां की मुख्य रूप से मुस्लिम आबादी को चीनी अधिकारियों के हाथों लंबे समय से प्रताड़ित किया जाता रहा है. हाल के वर्षों में इसमें रिएजुकेशन कैंपों में लंबे समय के लिए नजरबंदी भी शामिल हो गई है. इन चारों लोगों को 2017 और 2018 में शिनिजियांग में कई महीने के लिए नजरबंद किया गया था. इनलोगों से अलग अलग कई हफ्तों में बातचीत की गई.
खुद से अपराध का चुनाव
इन चारों लोगों को वो दिन याद है जब इन्हें एक कागज पर 70 से ज्यादा अपराधों की सूची सौंपी गई और उनसे एक या ज्यादा अपराधों को चुनने के लिए कहा गया. इनमें से कुछ अपराध तो विदेश यात्रा करना या देश के बाहर किसी इंसान से संपर्क करने जैसे थे. ज्यादातर अपराध हालांकि धार्मिक प्रवृत्ति से जुड़े थे जैसे कि नमाज पढ़ना या फिर सिर को ढंकना. इसके बाद ये चारों लोग पड़ोसी देश कजाखस्तान चले गए. यह सब वहां रहने वाले परिवारों के दबाव और पर्दे के पीछे कजाखस्तान की सरकार की राजनयिक कोशिशों के कारण संभव हुआ. इसके नतीजे में चीन की सरकार ने उन लोगों को छोड़ दिया जिनके पास कजाखस्तान का रेसीडेंस परमिट, पासपोर्ट और वहां रहने वाले परिवार के सदस्य थे. कजाखस्तान में उईगुर समुदाय के लोगों की एक अच्छी खासी तादाद है.
जिन लोगों के पास बाहर से कोई मदद या फिर नागरिकता जैसी चीजें नहीं हैं उनके लिए चीन की निरंतर निगरानी और दमन के नेटवर्क से निकल पाना लगभग नामुमकिन है. डीडब्ल्यू स्वतंत्र रूप से चारों लोगों की कहानी की पुष्टि तो नहीं कर सका लेकिन लेकिन उनकी कहानियां मुख्य तौर पर आपस में मिलती जुलती हैं. इनमें से एक कैदी को कैंप के भीतर अस्पताल में रखा गया था. उसे कैंप में रहने के दौरान ही टीबी की बीमारी हो गई थी. वह चीनी भाषा ज्यादा अच्छे से लिखना बोलना नहीं जानता था, उसके साथी कैदियों ने उसे अपराधों की सूची का उइगुर में अनुवाद कर उसे पढ़ने में मदद दी. दूसरे कैदी को यह सूची एक टीचर ने कैंप के क्लासरूम में दी. क्लासरूम में टीचर और छात्रों के बीच लोहे के सींखचे लगे होते थे और वहां हथियारबंद गार्डों का पहरा रहता.
मार्च 2018 में कैद की गई एक महिला ने डीडब्ल्यू को बताया, "उन्होंने हमें धमकी दी अगर तुमने कोई अपराध नहीं चुना तो इसका मतलब है कि तुम अपना अपराध कबूल नहीं कर रही हो. अगर तुम अपराध नहीं स्वीकारोगे तो तुम्हें हमेशा यहीं रहना होगा, यही वजह थी कि हमने एक अपराध चुन लिया." दूसरी महिला कैदी ने बताया कि जब उसे सूची थमा कर अपराध चुनने और उस कागज पर दस्तखत करने को कहा गया तो वह बहुत डर गई. कई दिनों तक वह सो नहीं सकी. उसे यही लग रहा था कि वो अब कभी अपने घर वापस नहीं लौट सकेगी. एक महिला कैदी ने यह भी कहा कि यह एक बड़ी राहत थी, "ईमानदारी से कहूं तो हम खुश थे- कम से कम हम उस समय के बारे में जानते थे जो हमें कैंप में बिताना होगा. इसके पहले हमें किसी ने नहीं बताया कि हमें कितने समय वहां रहना होगा." कैदियों से कहा गया कि अगर वो सहयोग करेंगे तो कैंप में बीतने वाला समय घट सकता है.
बहादुरी का इनाम
सारे कैदियों का कहना है कि उन पर दस्तखत करने के लिए दबाव डाला गया. एक इंसान ने ऐसा करने से इनकार कर दिया. ऊंची दीवारों से घिरे वाच टावरों और हथियारबंद गार्डों और अधिकारियों वाले कैंप में यह बड़ी बहादुरी का काम था. उसका कहना था कि वह निर्दोष था और उसने कुछ गलत नहीं किया था. तीन दिन तक वरिष्ठ अधिकारी उसे धमकाते रहे और उस पर दस्तखत करने का दबाव डालते रहे. हालांकि बाद में कई महीनों तक उसे घर में सख्ती से नजरबंद करने के बाद रिहा कर दिया गया. उस वक्त उसने बताया कि वह अकेला है जिसे रिहा किया गया. बाकी लोग शिविर में ही रहे. डीडब्ल्यू के सामने यह अकेला ऐसा मामला आया जिसमें कैदी ने दबाव का विरोध किया. उसके पास कजाखस्तान का रेसीडेंस परमिट था और शायद यही वजह थी कि दूसरे से उलट उसे "मुकदमे" से बचने में कामयाबी मिली.
डीडब्ल्यू ने जिन कैदियों से बात की उन सबने यही कहा कि उनके सामने कथित 70 अपराधों की सूची थी जिस पर उन्हें दस्तखत करने के लिए बाध्य किया गया. यह सूची 75 दूसरी गतिविधियों की सूची पर ही आधारित है. ये वो गतिविधियां हैं जिन्हें चीनी अधिकारी "चरम धार्मिक गतिविधि" मानते हैं. यह सूची शिनजियांग में 2014 में बांटी गई थी. माना जाता है कि इसका मकसद लोगों को ऐसी संदिग्ध गतिविधियों की पहचान करना और पुलिस को इसकी जानकारी देना था. इनमें "जिहाद भड़काना," "शरिया कानूनों की वकालत करना," और "महिलाओं को सिर ढंकने पर मजबूर करना" या "धार्मिक प्रचार सामग्री बांटना" जैसे कामों को शामिल किया गया था. इसके अलावा इनमें कुछ और गैरहानिकारक काम भी शामिल थे जैसे कि अचानक धूम्रपान या फिर शराब पीना छोड़ देना.
निशाने पर मुस्लिम संस्कृति
कैदियों ने इस बात की पुष्टि की है कि 2014 में जो अपराधों की सूची बनाई गई थी वह बिल्कुल वैसी ही थी जैसी कि कैंपों में दी जा रही है. हालांकि इसमें विदेश यात्रा और पासपोर्ट रखने जैसी चीजों को जोड़ा गया है. डीडब्ल्यू के पास ऐसे दस्तावेज की तस्वीर भी है जिसमें "26 गैर कानूनी धार्मिक गतिविधियों" का जिक्र है. यह सूची शिनजियांग में होतान के निया में लगाई गई थी. यह भी 2014 में ही तैयार हुई थी और इसमें नमाज का नेतृत्व करने, दूसरों को नमाज के लिए मजबूर करने और सिर को ढंकने जैसे कामों का जिक्र है. इनमें से बहुत सी गतिविधियां वैसी ही हैं जैसी कि कैदियों को सौंपी गई सूची में.
ऐसे कामों को आम तौर पर गैरकानूनी करार दिया गया है जो धार्मिक हैं. इससे यह साफ संकेत मिलता है कि चीनी प्रशासन मुस्लिम अल्पसंख्यकों की धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों को निशाना बना रहा है ताकि उन्हें खत्म किया जा सके. सामाजिक कार्यकर्ता लंबे समय से यह बात कहते आ रहे हैं. जिन धार्मिक गतिविधियों को गैरकानूनी बताया जा रहा है उन्हें अकसर "सामाजिक व्यवस्था बिगाड़ने" जैसे अस्पष्ट ढांचे में रखा जाता है. इंडियाना के रोज हुल्मन इंस्टीट्यूट में शिनजियांग के विशेषज्ञ टिमोथी ग्रोज ने डीडब्ल्यू से कहा, "अधिकारी जिस तरह चाहें उनकी व्याख्या कर सकते हैं. पूरा (न्याय) तंत्र ही मूर्खतापूर्ण और निरंकुश है."
2016 के बाद से ही चीन सरकार उइगुरों और कजाख लोगों को कैद कर रही है. आधिकारिक रूप से "उन्हें वोकेशनल एजुकेशन ट्रेनिंग सेंटर" कहा जाता है और पश्चिमी देशों में इसे ही रिएजुकेशन सेंटर कहा जा रहा है. ठीक ठीक यह बता पाना मुश्किल है कि कितने लोगों को कैद किया गया है. एक आकलन के मुताबिक कम से कम 10 लाख उइगुर और कजाख जेल और शिविरों के इस नेटवर्क में गुम हो गए हैं.
उइगुर पहचान को मिटाने की कोशिश
चीनी अधिकारियों का दावा है कि इन शिविरों को चरमपंथी विचारों से लड़ने के लिए तैयार किया गया है और यहां उइगुर लोगों को "कौशल" सिखाया जाता है. उइगुर चरमपंथ के बारे में चिंतित होने के लिए चीनी अधिकारियों के पास वैध कारण मौजूद हैं. कई दशकों के सांस्कृतिक और राजनीतिक भेदभाव का सामना करने और सरकार प्रायोजित हान जाति के चीनी लोगों की शिनजियांग में बसाने के कारण वहां भारी असंतोष है और यह अकसर हिंसक हो जाता है. 2009 में शिनजियांग की राजधानी उरुमची में जातीय दंगों ने 140 लोगों की जान ले ली और सैकड़ों लोग घायल हो गए. प्रदर्शनकारियों ने हान बस्तियों पर हमला किया और बसों को जलाया. 2014 में एक उरुमची के एक बाजार में हुए आतंकवादी हमले में 31 लोग मारे गए. इसके नतीजे में चीनी सरकार ने उइगुरों की निगरानी और उन पर अपना नियंत्रण बढ़ा दिया.
हालांकि आतंकवाद से लड़ाई के नाम पर चीन की नीति ऐसा लगता है कि पूरी आबादी को ही सजा देने की है. इसी के तहत स्थानीय भाषा, धर्म और संस्कृति को मिटाने के कथित प्रयास किए जा रहे हैं. डीडब्ल्यू और उसके सहयोगी मीडिया संस्थानों की हाल की रिपोर्टिंग से पता चलता है कि ज्यादातर मामलों में उइगुरों को उनके धार्मिक और सांस्कृतिक कामों की वजह से कैद किया जा रहा है ना कि उनके चरमपंथी रवैये का कारण. शिनजियांग के निवासियों की निगरानी और गिरफ्तारी के लिए क्रूर तरीके अपनाए जाते हैं. हाई टेक सर्विलांस कैमरों की मदद से इनके चेहरों की पहचान की जाती है. उइगुर परिवारों पर जासूसों का नेटवर्क लगातार नजर रखता है, बार बार उनके घरों पर दबिश दी जाती है, और सामूहिक रूप से पूछताछ होती है. हल्की सी धार्मिकता भी इनके कैद का कारण बन सकती है.
डीडब्ल्यू को पता चला कि इन्हें दी जाने वाली सामूहिक सजा में उइगुरों और कजाख लोगों पर कैंप में ही दिखावटी मुकदमा चलाना भी शामिल है जिसके लिए उचित कानूनी प्रक्रिया का भी पालन नहीं होता. एक महिला कैदी ने डीडब्ल्यू को बाताया कि अपराध चुनने और सूची पर दस्तखत करने के बाद अधिकारी एक के बाद एक लोगों का नाम लेकर बुलाने लगे. वह इतनी डर गई थी कि बेहोश हो गई. उसे कमरे में ले वापस ले जाया गया. उसे गैरमौजूदगी में कैद की सजा मिली. महिला कैदी ने बताया, "मुझे विदेश जाने के लिए दो साल की सजा मिली. मैं बहुत उदास हो गई लेकिन फिर भी दूसरे लोगों की तुलना में मेरी सजा सबसे हल्की थी. कुछ लोगों को छह साल तो कुछ को 10 साल की सजा मिली." उसने बताया कि सबसे लंबी सजा रोज नमाज पढ़ने जैसी धार्मिक गतिविधियों के लिए मिलती थी.
"दो साल में, मैं मर जाउंगी"
इस महिला कैदी ने बताया, जिन कैदियों को लंबी सजा मिली, "वो रोने लगीं, मुझे उनके लिए बहुत अफसोस हुआ." हालांकि छोटी सजा के बावजूद उन्हें अपने लिए भी सारी उम्मीदें खत्म होती दिखीं, "मैंने सोचा दो साल में मैं मर जाउंगी." उन पर तो दिखावटी मुकदमा नहीं चला लेकिन दूसरे कैदियों ने बताया, "वहां कोई वकील या बचाव पक्ष का नहीं था." एक बार में पांच या छह कैदियों को सजा सुनाई जाती. सजा सुनाए जाने के बाद कैदियों को अपने अपराध कबूलने के लिए मजबूर किया जाता, "उन्हें कहना होता: 'मैं वादा करता हूं कि मैं अपनी गलतियों को नहीं दोहराऊंगा." सजा सुनाने की प्रक्रिया कुछ कैंपों में थोड़ी अलग है. एक कैंप में कैदी के परिवार वाले भी मौजूद थे और उन्हें सजा पर दस्तखत करने के लिए मजबूर किया गया. एक दूसरे कैंप में कैदियों को एक एक कर सजा सुनाई गई और फिर सजा के ब्यौरे वाले दस्तावेज पर उनसे दस्तखत लिया गया.
एक कैदी कारोबारी था और चीन से कजाखस्तान सब्जियां भेजा करता था. उसका मानना है कि अधिकारी इस कथित मुकदमे को इसलिए चलाते थे "ताकि उन्हें मुझको अपराधी दिखाने का कोई बहाना मिल जाए." इन चारों लोगों का कहना है कि उन्होंने कोई अपराध नहीं किया. चारों लोगों ने दिखावटी मुकदमे का सामना किया जो शिनजियांग के तीन अलग अलग कैंपों में चलाए गए थे. डीडब्ल्यू ने उपग्रह से ली जाने वाली तस्वीरों और सार्वजनिक रूप से मौजूद टेंडर की सूचना और निर्माण के ठेके जैसे दस्तावेजों से इन दावों में बताए जगहों की पुष्टि की. डीडब्ल्यू यह नहीं पता लगा सका कि दिखावटी मुकदमों का विस्तार कितना है. हालांकि इन शिविरों का नियंत्रण एक जगह केंद्रित है और ऐसे में कहा जा सकता है कि यह पूरे इलाके में हो रहे हैं.
डीडब्ल्यू ने अपनी जानकारियों को बर्लिन में चीनी दूतावास और बीजिंग में विदेश मंत्रालय के दफ्तर से साझा कर उनकी प्रतिक्रिया मांगी. इसके जवाब में डीडब्ल्यू को दूतावास की वेबसाइट पर प्रकाशित एक बयान का लिंक भेजा गया. यह बयान 2019 का है जिसमें कहा गया है कि ये शिविर वोकेशनल ट्रेनिंग के लिए हैं जिन्हें चरमपंथ से लड़ने के लिए चलाया जा रहा है. बयान में यह भी कहा गया है कि ये उपाय "असरदार" हैं. बयान के मुताबिक, "शिनजियांग में बीते तीन सालों में कोई आतंकवादी हमला नहीं हुआ और सभी जातीय समुदाय के लोगों को उनके बुनियादी मानवाधिकार मुहैया कराए जा रहे हैं जिनमें जीवन, स्वास्थ्य और विकास का अधिकार भी शामिल है.
'उइगुरों के लिए कोई तय प्रक्रिया नहीं'
शिनजियांग के कई रिसर्चरों ने डीडब्ल्यू से कहा कि दिखावटी मुकदमों का होना बहुत "मुमकिन" है. ब्रिटेन की नॉटिंघम यूनिवर्सिटी में सीनियर रिसर्च फेलो रियान थुम के मुताबिक, "यह उस बड़े ढांचे का हिस्सा है जिसमें उइगुरों को तय प्रक्रिया से दूर रखा जाता है और उन्हें खुद को बचाने का कोई मौका नहीं मिलता, वे लोग नौकरशाहों और पार्टी सदस्यों की सनक में गायब हो जाते हैं. अगर यह सचमुच हो रहा है तो यह दिखाता है कि जमीन पर मौजूद अधिकारियों को यह पता है कि उन्हें इसमें शामिल लोगों के खिलाफ कुछ अपराध ढूंढने होंगे." डीडब्ल्यू ने उइगुर कैदियों के रिश्तेदारों से भी बात की. इनमें से कईयों को रिएजुकेशन कैंप से ले जाकर जेल में डाल दिया गया है. कुछ मामलों में तो उन्हें शिविर और जेलों के बीच घुमाया जा रहा है.
जर्मनी में रहने वाली एक महिला ने बताया कि उसके रिश्तेदारों को दो बार सजा सुना कर जेल भेजा गया और वहां से वापस शिविर में. उस महिला ने डीडब्ल्यू से कहा, "ऐसे लगता है कि वो कैदियों से खेल रहे हैं." बहुत से लोगों को तो इस इस बारे में पता भी नहीं है कि उनके परिवार के सदस्यों पर शिविरों में मुकदमा चल रहा है. विदेश में रहने वाले परिवार के सदस्यों से संपर्क करना ही शिनजियांग में हिरासत में रखे जाने का जोखिम पैदा कर देता है. ऐसे में उन्हें अपने प्रियजनों के बारे में जानकारी दोस्तों, सहयोगियों से मिलने वाले खबरों की कड़ियां जोड़ कर जुटानी पड़ती है. ये लोग भी निजी तौर पर भारी खतरा उठा कर ये जानकारी निकालते हैं. इनकी कहानियों की कड़ियां जोड़ें तो यह साफ हो जाता है कि दिखावटी मुकदमे एक बड़ी रणनीति का हिस्सा हैं जिनका मकसद अंतरराष्ट्रीय आलोचना के बाद रिएजुकेशन कैंपों को खाली करना है. और इसी बीच जेल भरते जा रहे हैं.
रिहाई के बाद मजदूरी
ऑस्ट्रेलियन स्ट्रैटजिक पॉलिसी इंस्टीट्यूट के रिसर्चर नाथन रूजर के मुताबिक रिएजुकेशन कैंप तीन तरह के हैं. सबसे कम सुरक्षा वाले कैंप कैदियों को वापस समाज के साथ मिलाने के लिए तैयार किए गए हैं और इसमें वोकेशनल ट्रेनिंग पर बहुत जोर रहता है. दूसरे मध्यम दर्जे के कैंप हैं. यहां कैदी तीन से पांच साल तक रहते हैं लेकिन इसके बाद उन्हें रिहा कर दिया जाता है. तीसरी तरह के शिविरों में भारी सुरक्षा है और यहां कैदियों को अनिश्चित काल के लिए रखा जाता है, "यहां से कैदियों को वापस समाज में भेजने की मंशा नहीं रहती."
रूजर सेटेलाइट से ली जाने वाले तस्वीरों के विश्लेषण में माहिर हैं. उनका कहना है कि 2018 के आखिर और 2019 में पूरे साल कई कम सुरक्षा वाले कैंपों की सुरक्षा खत्म कर दी गई. वाच टावरों और बाड़ों को हटा दिया गया और बाहर लगे बैरियरों को भी. उनका कहना है कि इसके जरिए कैंप से काम की जगहों पर मजदूरों को ले जाने में आसानी हुई. कई कैदियों को फैक्ट्रियों में काम के लिए मजबूर किया गया. इसके साथ ही रूजर ने यह भी देखा कि अधिकतम सुरक्षा वाले शिविर अब भी चल रहे हैं और 2018 से अब तक उनका काफी विस्तार भी हुआ है. साफ है कि बहुत से कैदियों को रिहा नहीं किया गया है. डीडब्ल्यू यह पता नहीं लगा सका कि दिखावटी मुकदमों के बाद कैदियों को जेल भेजा गया या फिर बहुत सुरक्षा वाले रिएजुकेशन कैंप में. एक पूर्व कैदी ने कहा, "जब कोई गायब हो जाता है तो आप नहीं कह सकते कि वो कहां गया." इस पूर्व कैदी ने कहा रिएजुकेशन कैंप ऐसी जगह नहीं है, "जहां आप सवाल पूछ सकें."
मुकदमे के बाद कैदी गायब
एक बात तो बिल्कुल साफ है कि मुकदमे के बाद कैदियों का गायब होना शुरु हो जाता है. कुछ लोगों को रात में ले जाया जाता उस वक्त उनके हाथों में बेड़ियां होतीं और उनकी आंखों पर पट्टी. कुछ लोगों को क्लासरुम से बुलाया जाता और वो कभी वापस नहीं आते. हालांकि यहां एक और बात देखी गई कि जिन लोगों को लंबी सजा मिलती यानी जैसे कि 10 साल या उससे ज्यादा वो सब गायब हो जाते. इस बात पर चारों पूर्व कैदी एकमत हैं. ये वो लोग हैं जिन्होंने नियमित रूप से धार्मिक क्रिया को करना कबूल किया जैसे कि नमाज पढ़ना या फिर अनाधिकारिक इमाम के तौर पर काम करना. रिसर्चर और एक्टिविस्ट भी बताते हैं कि ऐसे लोगों को माना जाता है कि उन्हें "सुधारा नहीं" जा सकता.
बाकी लोगों को लेबर कैंपों में भेज दिया जाता. एक पूर्व कैदी ने बताया कि उसे दस्ताने की फैक्ट्री में काम करने पर मजबूर किया गया. ये ऐसी फैक्ट्रियां हैं जो सरकार समर्थित योजनाओं के कारण शुरू हुई हैं और पूरे शिनजियांग के इलाके में काम कर रही हैं. इनमें से कुछ विदेशी कंपनियों और सप्लाई चेन के लिए भी सामान बनाती हैं. रिहा होने वालों को उनके घर में कठोर नजरबंदी में रखा जाता है जहां उनकी हर गतिविधि पर नजर रहती है. उनके कहीं आने जाने पर भी बहुत बंदिशें हैं. एक पूर्व कैदी ने बताया, "आपको कहीं आने जाने की छूट नहीं होती. आप दूसरे लोगों से नहीं मिल सकते, आप भीड़ वाली जगहों पर नहीं जा सकते. आप सिर्फ घर में रह सकते हैं और गांव के प्रशासनिक कार्यालय तक जा सकते हैं." उन्हें और उनकी पत्नी को कई बार सैकड़ों लोगों के सामने अपना "अपराध" कबूलने पर विवश किया गया. उन्हें कम्युनिस्ट पार्टी का गुणगान करने और उस शिक्षा और बदलाव के लिए आभार जताने पर भी मजबूर किया गया. हालांकि उनका कहना है कि उन्होंने कैंप में रहते हुए कुछ नहीं सीखा.
एक पूर्व महिला कैदी ने बताया कि रिहा करने के बाद उसे घर में नजरबंद किया गया और हर हफ्ते पार्टी के सदस्यों की आवभगत करनी पड़ती. उसे रात को रुकने वाले मेहमानों के लिए खाना पकाना होता और उनके साथ सम्मान से व्यवहार करना होता. उसके घर में ऐसे मर्द और औरतें आकर रहते जो उसके रिश्तेदार नहीं थे. उसे ऐसा करने में बहुत तकलीफ होती. इसके अतिरिक्त हर सुबह झंडा फहराने के कार्यक्रम में भी उसे शामिल होना होता और साथ ही राजनीतिक बैठकों और चीनी भाषा की क्लास में भी.
कैदियों की तकलीफ के निशान
आखिरकार इन चारों कैदियों को चीन छोड़ने की अनुमति मिल गई. शायद इसकी वजह ये थी कि इनके रिश्तेदार कजाखस्तान में थे और उनके लिए अभियान चला रहे थे. इनमें से दो के पास कजाखस्तान की रेजीडेंसी या नागरिकता भी थी. इन लोगों ने जो कुछ झेला उसका इनके मन और शरीर पर बुरा असर हुआ है. इन चारों ने डीडब्ल्यू को बताया कि वो तनाव के साथ ही भूलने की बीमारी के शिकार हो गए. इंटरव्यू के दौरान अपने साथ हुए जुल्मों का बात करते बार बार इन्हें कभी गुस्सा तो कभी रोना आया. इनमें पूछताछ और यौन हिंसा भी शामिल है. एक महिला ने बताया कि कई महीनों तक उसे हर रात महिला कैदियों को एक छोटे कमरे से निकाल कर शॉवर तक ले जाना होता. वह इतनी डरी हुई थी कि उनसे बात करने की हिम्मत नहीं हुई लेकिन उसे यकीन है कि गार्डों ने उनके साथ बलात्कार किया था. उइगुर पहले भी ये आरोप लगाते रहे हैं.
दूसरी महिला ने डीडब्ल्यू को बताया कि पूछताछ के दौरान कई बार उसके पेट पर चोट किया गया. वहां से आने के बाद वो गर्भवती नहीं हो सकी है. उसने कहा, „मेरे पति कहते हैं कि मैं बदल गई हूं मैं अब एक अलग औरत बन गई हूं." पहले मैं लोगों से मिलना, पार्टी में जाना पसंद करती थी अब "मैं लोगों से नफरत करने लगी हूं." पुरुष कैदियों का अनुभव भी ऐसा ही है. एक कैदी ने कहा, "अब मेरे बच्चों या रिश्तेदारों के लिए मेरे मन में कोई भाव ही नहीं, मैं अपने बच्चों से पहले बहुत प्यार करता था लेकिन अब मैं कुछ महसूस नहीं करता." थोड़ा रुक कर उसने कहा, "मेरी जीने की सारी इच्छा ही खत्म हो गई है."
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