फुटबॉल के बदले बम
२५ जुलाई २०१३कलेजे थामे कलेजे के टुकड़े को याद करती उम्मे इब्राहीम कहती हैं, "वे आखिर हमारे बच्चों को क्यों मार रहे हैं."
बगदाद में शुआला इलाके के एक फुटबॉल ग्राउंड पर फरवरी में एक खुदकुश हमलावर ने खुद को विस्फोट से उड़ा लिया, जिसमें उम्मे इब्राहीम के बेटे सहित 18 लोगों की मौत हो गई. इसके फौरन बाद पास में कार धमाका हुआ.
इन लोगों की याद में फुटबॉल ग्राउंड में विस्फोट की जगह 18 कब्र के पत्थर रखे गए. इनके पास ही इराक का राष्ट्रीय ध्वज भी लगाया गया.
रिटायर सार्जेंट अबु अमीर के भतीजे 11, 12 और 15 साल के थे. तीनों इस विस्फोट में मारे गए. अमीर का हाल कोई अलग नहीं, "वे तो मासूम थे, उन्होंने कौन सा गुनाह किया था." अब तो फुटबॉल के मैदानों में विस्फोट होने लगे हैं, अमीर पूछते हैं कि उनके बच्चे कहां खेलें.
पिछले पांच साल में इराक हिंसा का सबसे बुरा साल देख रहा है. अब तक 2013 में 2,900 लोग मारे जा चुके हैं. फुटबॉल खेलने और मैच दिखाने वाले कैफे को निशाना बनाया जा रहा है. इराक के लोग फुटबॉल से वैसा ही प्यार करते हैं, जैसे भारत में क्रिकेट.
हिंसा की वजह से फीफा ने इराक में अंतरराष्ट्रीय मैचों पर पाबंदी लगाई थी, जो पिछले महीनों में ही हटाई गई है. हिंसा की वजह से इराक के लोकप्रिय स्थानीय टीम के मैनेजर ने भी इस्तीफा दे दिया क्योंकि वह डर से अपनी टीम के साथ बगदाद नहीं जाना चाहते थे.
यूं तो इराक पिछले 10 साल से दरक रहा है, कभी तेल की वजह से, कभी अमेरिकी हमलों से, तो कभी शिया सुन्नी झगड़ों से. इन भटकाव के बीच फुटबॉल जोड़ने वाली चीज साबित होती है. जब हिंसा चरम पर थी, तो इराक ने 2007 में एशियाई फुटबॉल चैंपियनशिप जीती. इस साल अंडर 20 फुटबॉल वर्ल्ड कप में वह चौथे नंबर पर रहा.
अब्दुल अमीर अबूद शुआला में रहते हैं और इराक की ओलंपिक समिति में काम करते हैं. उनका कहना है कि बच्चे तो राजनीति और विवाद से दूर हैं, "लोगों को, खास तौर पर बच्चों को निशाना बनाना इंसानियत के खिलाफ जुर्म है." उनका कहना है कि हमलों के बाद उनके इलाके में अब फुटबॉल देखने वालों की तादाद भी घट गई और कभी कभी तो मैच देखने भी कोई नहीं जाता.
बगदाद के जफरानियाह इलाके में खिलाड़ी उस जगह पर लौटे हैं, जहां 10 जून के हमले में पांच लोगों की जान चली गई थी. इलाके के नगर पालिका सदस्य बासेम सकरन कहते हैं, "यह विस्फोट जिंदगी रोकने की नाकाम कोशिश थी." वह कहते हैं कि उनकी टीम कभी ट्रेनिंग नहीं रोकेगी. हालांकि यहां 12 साल से कम उम्र के बच्चों की ट्रेनिंग बुरी तरह प्रभावित हुई है क्योंकि बच्चों के मां बाप ने उनकी हिफाजत को ध्यान में रखते हुए उन्हें मैदान पर न भेजने का फैसला किया है. स्थानीय टीम के कप्तान सैफ अब्दुलहुसैन का कहना है, "आतंकवाद हमारा रास्ता रोकना चाहता है, लेकिन हम फुटबॉल नहीं रोकेंगे."
एजेए/एएम (एएफपी)