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समाज

फुटबॉल ने बदली गरीब दलित लड़की की जिंदगी

१८ मई २०१८

यह कहानी है हरियाणा के एक गरीब परिवार की ऐसी लड़की की जिसने पहला पुरस्कार ही ऐसा हासिल किया, जो परिवार की साल भर की कमाई से भी ज्यादा था. मिलिए फुटबॉल के उभरते सितारे अन्याबाई से.

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Just a few years after she started playing, Anyabai (Right) has already represented India twice at the international level.
हरियाणा के अलखपुरा की अन्याबाई (दाएं)तस्वीर: IANS

अन्याबाई ने चार साल पहले अपने स्कूल की टीम को प्रदेशस्तरीय फुटबॉल मैच में जीत दिलाकर 54,000 रुपये का पुरस्कार जीता. उसकी उम्र 15 साल थी और पुरस्कार की वह रकम उसकी मां के पूरे साल की कमाई से ज्यादा थी. अन्याबाई हरियाणा के भिवानी जिले से 30 किलोमीटर दूर अलखपुरा के एक गरीब और दलित परिवार की है. वह जब महज दो साल की थी, तभी दिल का दौरा पड़ने से उसके पिता का निधन हो गया था. मां माया देवी को परिवार के चार सदस्यों की परवरिश का भार उठाना पड़ा.

भारत की 16.6 फीसदी आबादी वाले अनुसूचित जाति समुदाय की दशा खासतौर से गांवों में आज भी अत्यंत दयनीय है. अन्याबाई इस समुदाय की एक ऐसी युवती है, जिसने अपने कौशल के बूते पर न सिर्फ अपनी पहचान बनाई, बल्कि समाज में वर्ग भेद और लिंग भेद को भी चुनौती दी.

लाखों की कमाई

फुटबॉल खेलना शुरू करने के कुछ ही साल बाद उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा में भारत का प्रतिनिधित्व किया. स्कूल की कोच सोनिका बिजारनिया ने आईएएनएस से बातचीत में कहा, "उसे राष्ट्रीय स्तर का एक मैच खेलने के लिए करीब 50-60 हजार रुपये मिलते हैं. पिछले साल कुछ ही मैच खेलने पर उसे तकरीबन ढाई लाख रुपये मिले. वह हर साल दो-तीन मैच खेल लेती है."

इस प्रकार फुटबाल से न सिर्फ उसकी जिंदगी को एक मकसद मिला और उसने शिखर स्तर पर देश का प्रतिनिधित्व किया, बल्कि इससे उसे अपने परिवार को गरीबी के दुष्चक्र से उबारने में भी मदद मिली.

Anyabai (Right) with her mother Maya Devi and brother Deepak at their home in Alakhpura.
मां माया देवी और भाई दीपक के साथ अन्याबाई तस्वीर: IANS

मां की परेशानियां

अन्याबाई के परिवार में मां के अलावा एक भाई और एक बहन है. मां माया देवी को बेटी पर गर्व है. वह कहती हैं, "पूरे परिवार में किसी ने अबतक इतनी उपलब्धि हासिल नहीं की है. अन्याबाई को खेलते देख पहले हमें कोई आशा नहीं थी." जब अन्याबाई ने खेलना शुरू नहीं किया था, तब माया देवी के सामने अपने बच्चों का पालन-पोषण करना एक बड़ा संकट था. खेतों में काम मिलने पर उन्हें महज 150 रुपये की रोजाना मजदूरी मिलती थी. खेती का काम मौसमी होता है, इसलिए उन्हें गुजारे के लिए भी संघर्ष करना पड़ता था. उन्होंने कहा, "मैंने अपने बच्चों के पालन-पोषण के लिए कड़ी मेहनत की. अन्याबाई की अब तक की उपलब्धि से मैं खुश हूं और उसके लिए आगे और तरक्की की कामना करती हूं. वह कोई बड़ी उपलब्धि हासिल करेगी, तो मेरा जीवन सफल हो जाएगा." दो साल पहले उन्हें गांव में सफाईकर्मी की नौकरी मिली. पांच सफाईकर्मियों में वे अकेली महिला हैं.

बेंड इट लाइक मेसी

अन्याबाई अर्जेटीना के मशहूर फुटबॉल खिलाड़ी लियोनेल मेसी की तरह खेलना चाहती हैं. लेकिन साथ ही वे स्कूली पढ़ाई भी पूरी करना चाहती हैं. अन्याबाई का कहना है कि 12वीं करने के बाद वह अपना पूरा समय फुटबॉल में ही लगाएगी. इस बीच वह अपनी अंग्रेजी सुधारने पर भी काम कर रही है, "पहले मुझे अंग्रेजी भाषा को लेकर परेशानी आती थी, लेकिन अब मैं अंग्रेजी बोलने की कोशिश करती हूं. हालांकि थोड़ी हिचकिचाहट होती है."

Indien Anyabai (erste rechts) mit Schulteam beim Football Turnier im Ambedkar Stadium, Delhi
अंतरराष्ट्रीय मैच में लिया हिस्सा तस्वीर: IANS

तजाकिस्तान में 2016 में हुए एशियाई फुटबॉल परिसंघ (एफसी) के क्षेत्रीय (दक्षिण मध्य) महिला फुटबॉल चैंपियनशिप के अंडर-14 वर्ग के मैच में हिस्सा लेने के बाद अन्याबाई की जिंदगी बदल गई. अन्याबाई ने बताया, "मुझे जो वजीफा मिला, उससे मैंने गांव में दो कमरे का घर बनाया. जब मैं गांव से बाहर या देश से बाहर जाती थी, तो अनजान जगह को लेकर डर बना रहता था. लेकिन अब यह बिल्कुल अलग अनुभव दिलाता है, क्योंकि देश और दुनिया के अन्य हिस्सों में दोस्त बनाना अच्छा लगता है."

घूंघट नहीं फुटबॉल

बातचीत के दौरान उसने खुशी से अपने गांव के खेल के मैदान का जिक्र किया, जहां 200 से अधिक लड़कियां रोज तीन घंटे फुटबॉल का अभ्यास करती हैं. अन्याबाई की मां मायादेवी पुरानी रीति-रिवाज का पालन करती हैं और लंबे घूंघट में अपने सिर और चेहरे को ढक कर रखती हैं. लेकिन अन्याबाई को घूंघट पसंद नहीं. हंसते हुए वह कहती है, "मैं कभी घूंघट में नहीं रहूंगी."

मुदिता गिरोत्रा (आईएएनएस)

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