बच्चा पैदा करने को मजबूर हैं पाकिस्तान की औरतें
१९ फ़रवरी २०१९पाकिस्तान में रहने वाली जमीना का परिवार गरीब और बेहद जरूरतमंद हैं. लेकिन गरीबी इनके लिए शायद सबसे बड़ी समस्या नहीं है. अगर कोई मुश्किल है तो वह है बच्चे पैदा करना. जमीना के सामने मजबूरी अपनी जान पर खेलकर अपने पति के छठे बच्चे को जन्म देने की थी. अगर बच्चा नहीं करती तो कहीं चुपचाप, चोरी-छुपे, गैरकानूनी ढंग से एबॉर्शन कराती. दोनों ही सूरतों में उसकी जान को बड़ा खतरा था. अंत में जमीना ने गर्भपात करा लिया.
लेकिन यह कोई इक्का दुक्का मामला नहीं है. पाकिस्तान में हर साल आधे से अधिक प्रेगनेंसी बिना प्लानिंग के होती हैं. अमेरिकी रिसर्च एजेंसी गुटमाखर इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट बताती है, "देश की तकरीबन 42 लाख महिलाएं बिना किसी तैयारी और सोच-विचार के गर्भधारण करती हैं. साथ ही पाकिस्तान की 54 फीसदी महिलाएं गर्भपात के लिए जाती है."
जमीना अपनी आपबीती सुनाते हुए कहती हैं, "तीन साल पहले जब मेरी बेटी पैदा हुई तो डॉक्टर ने मुझसे कहा कि मुझे अब बच्चे पैदा नहीं करना चाहिए. बच्चा पैदा करना मेरी जान के लिए खतरा हो सकता है."
परिवार नियोजन से दूरी
पाकिस्तान में परिवार नियोजन हमेशा से ही एक विवादित मुद्दा रहा है. देश में सक्रिय धार्मिक नेता परिवार नियोजन के खिलाफ आलोचनात्मक रुख रखते हैं. साथ ही देश में सेक्स एजुकेशन और गर्भ-निरोधकों के इस्तेमाल को लेकर कोई खास जागरुकता भी नहीं है.
जमीना बताती है कि डॉक्टर की सलाह जब उसने अपने 35 साल के पति को बताई तो उसके पति ने जवाब में कहा, "खुदा पर भरोसा रखो." जमीना कहती है, "मेरा पति एक धार्मिक इंसान है और वह कई सारे बेटे चाहता है."
तकरीबन एक दशक पहले पाकिस्तान में परिवार नियोजन अभियान चलाया गया था. नारा दिया गया, "दो बच्चे ही अच्छे". लेकिन देश में सक्रिय कट्टर धार्मिक नेताओं ने इस पूरे कदम को सिरे से नकार दिया. देश के राष्ट्रवादी नेता ज्यादा से ज्यादा आबादी की वकालत करते हैं.
आबादी का बोझ
पाकिस्तान की कुल आबादी 20.7 करोड़ के करीब है. अधिक बच्चे पैदा करने की चाहत देश के संसाधनों पर भी भारी पड़ रही है. विशेषज्ञ कहते हैं कि अगर बढ़ती जनसंख्या पर लगाम नहीं कसी गई तो देश के लिए मुश्किलें पैदा हो जाएगी. जमीना बताती हैं, "मेरी सास के नौ बच्चे हैं, जब मैं अपने पति से कहती हूं कि मुझे और बच्चे नहीं करने तो वह कहता है कि जब मेरी मां नहीं मरी तो तुम भी जिंदा रहोगी."
हो सकता है एबॉर्शन
अगर प्रेगनेंसी से मां की हालत को खतरा है तो एबॉर्शन हो सकता है. लेकिन अब भी कई डॉक्टर धर्म के चलते एबॉर्शन से मना कर देते हैं. इसी के चलते कुछ महिलाएं गैरकानूनी ढंग से एबॉर्शन कराती हैं. कुछ महिलाएं अल्सर के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवा का सहारा गर्भपात के लिए लेती हैं तो कुछ गैरकानूनी तरीको से एबॉर्शन के लिए जाती हैं.
हालांकि इस बीच अब कुछ गैरसरकारी संस्थाएं सामने आई हैं जो ऐसी महिलाओं की मदद कर रही हैं.
महिलाओं की मदद
गैरसरकारी संस्था अवेयर गर्ल्स अब महिलाओं को गर्भनिरोधक दवाओं के बारे में सही जानकारी दे रही है. संस्था की सह संस्थापक गुलालाई इस्माइल कहती हैं, "हम में से अधिकतर ऐसी महिलाओं को जानते थे जिनकी एबॉर्शन के चलते मौत हुई है." संस्था में काम करने वाली 26 साल की आयशा कहती हैं, "हॉटलाइन पर आने वाले कॉल पर हम लोगों को दवा की सही खुराक की जानकारी देते हैं."
परिवार नियोजन के लिए काम करने वाले एनजीओ ग्रीनस्टार से जुड़े डॉ हारुन इब्राहिम कहते हैं, "प्रशासन कभी इस विषय को जरूरी नहीं बना सका है. सारी बातें महज बयानबाजी और बेमतलब हैं." कुछ विशेषज्ञ इन हालातों को प्रशासनिक असफलता से भी नहीं चूकते हैं.
सरकार का रुख
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने दिसंबर 2018 में माना था कि इस मुद्दे पर राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी रही है. प्रधानमंत्री ने वादा भी किया था कि वह मीडिया, मोबाइल फोन, स्कूल और मस्जिदों के जरिए सेक्स एजुकेशन और गर्भनिरोधक अभियानों को शुरू करेंगे.
खान ने जोर देकर कहा था कि इस पूरे अभियान में मौलवियों की भूमिका अहम होगी. वहीं इस्लामिक विचारधारा को मानने वाली धार्मिक संस्था काउंसिल ऑफ पाकिस्तान ने सरकार को दिए अपने मशविरे में कहा कि परिवार नियोजन इस्लाम के खिलाफ है. काउंसिल ने समाचार एजेंसी से कहा, "सरकार की ओर से जन्म नियंत्रण अभियान को तुरंत रोका जाना चाहिए और इस कार्यक्रम को इकोनॉमिक प्लानिंग से हटा दिया जाना चाहिए."
एए/आरपी (एएफपी)