बच्चों की महंगी देखभाल से ब्रिटिश महिलाओं के करियर का नुकसान
१४ मार्च २०२३ऑर्गनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक कॉपरेशन एंड डेवलपमेंट यानी ओईसीडी के 38 देशों में सबसे ज्यादा ब्रिटेन में बच्चों को पालने पर पैसा खर्च हो रहा है. आमतौर पर यह परिवारों की कुल कमाई का लगभग एक तिहाई हिस्सा यानी 29 फीसदी है. फ्रांस में यह खर्च केवल 9 फीसदी है.
इसकी वजह से बहुत से मां-बाप या तो कामकाज पूरी तरह से या फिर उसका बहुत बड़ा हिस्सा छोड़ने पर विवश हो रहे हैं. ऐसी स्थिति का सबसे ज्यादा नुकसान महिलाओं को होता आया है और ब्रिटेन में अब भी वही हो रहा है. ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को भी इससे काफी नुकसान हो रहा है. ब्रिटेन में रहने वाली नैटेली फोर्ड बताती हैं कि बेटा पैदा होने के बाद उनके सामने दूसरा कोई विकल्प ही नहीं था. फोर्ड कहती हैं, "मुझे तो यह अंदाजा भी नहीं था कि नर्सरी का कितना खर्च आयेगा. वह किसी सदमे जैसा था."
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बच्चों की देखभाल का खर्च
नैटेली और उनके पति ने कुछ दिनों तक 900 पाउंड प्रति हफ्ते के हिसाब से अपने 19 महीने के बेटे की देखभाल पर खर्च किया. पूरे देश में 2 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए नर्सरी का औसत बिल 285 पाउंड प्रति हफ्ते है. लंदन में यह खर्च और ज्यादा है. 39 साल की फोर्ड पूर्वी लंदन में एसेक्स के ब्रेंटवुड में रहती हैं. उन्होंने अपनी कंपनी के साथ काम के घंटों को ज्यादा से ज्यादा लचीला बनाने की कोशिश की लेकिन जब उन्हें इसके लिए मना कर दिया गया तो उनके पास काम छोड़ने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था. अब वह निजी सहायक के तौर पर घर से काम करती हैं जबकि बीमा एजेंट का काम करने वाले उनके पति भी अपना कुछ काम रिमोट-ऑफिस यानी घर से करते हैं.
दंपतियों को बच्चे की देखभाल के लिए तीन साल तक की उम्र तक ब्रिटिश सरकार से मदद मिलती है लेकिन वह बहुत कम है. इसके बाद सरकार हर हफ्ते 15 घंटे के हिसाब से बच्चों की देखभाल के लिए भुगतान करती है. कम आय वाले परिवारों के लिए यह इसका दोगुना है. हालांकि नर्सरियों को दी जाने वाली रकम से उनके खर्चे पूरे नहीं पड़ते. खासतौर से बीते महीनों में महंगाई बढ़ने के कारण और ज्यादा दिक्कत है. फोर्ड कहती हैं, "मेरा पति बहुत अच्छा सहयोगी पिता है, वह बच्चे को नर्सरी ले जाता और वहां से लाता है लेकिन हमारी स्थिति में ज्यादा पैसा कमाने के बावजूद मां होने के कारण मुझे ज्यादा कुर्बानी देनी पड़ रही है."
ब्रिटेन की औरतें बच्चा पालने में और सरकारी मदद पाने के लिए आंदोलन कर रही हैं. राष्ट्रीय बजट में इस पर कोई फैसला लिये जाने की उम्मीद की जा रही है.
औरतों के काम की कुर्बानी
अभिनेत्री लूसी मिल्नेस 40 साल की हैं और दो साल पहले दूसरा बेटा पैदा होने के बाद उन्होंने बमुश्किल कोई जॉब किया है. उनका कहा है कि यह स्थिति ज्यादा समय तक नहीं चल सकती. यही वजह है कि उन्होंने और उनके पति ने बेटे को हफ्ते में तीन दिन डे केयर सेंटर में रखने का फैसला किया. इससे कम पर संस्थान तैयार नहीं था. मिल्नेस को उम्मीद है कि इससे उन्हें पेशेवर काम के लिए समय निकालने में मदद मिलेगी.
सरकारी आंकड़े बताते हैं कि कम से कम पिछले 30 सालों में पहली बार यह स्थिति आई है कि परिवार की देखभाल के लिए काम छोड़ने वाली महिलाओं की संख्या पांच फीसदी से ज्यादा बढ़ी है. 25 से 34 साल की महिलाओं के लिए यह आंकड़ा 13 फीसदी है. नौकरी नहीं करने वाली 28.5 फीसदी महिलाओं का कहना है कि वो परिवार की देखभाल के लिए दूसरा कोई काम नहीं कर पा रही हैं. उनकी तुलना में पुरुषों के लिए यह तादाद केवल 6.9 फीसदी है.
हाल ही में प्राइसवाटर हाउस कूपर की बनाई एक रिपोर्ट में बताया गया कि बच्चों की देखभाल पर होने वाले खर्च का महिलाओं के रोजगार पर बुरा असर होता है और दोनों की आय में अंतर का यह एक प्रमुख कारण है. रिटायर होने के बाद कई महिलाएं गरीबी में गुजारा कर रही हैं क्योंकि उन्हें मर्दों जितनी पेंशन नहीं मिल पाती और इसका कारण बच्चों की देखभाल के लिए उनके अपने जॉब से दूर होना है.
ब्रिटेन में नौकरी देने वाली कंपनियां इस हालत में सुधार लाने की मांग कर रही हैं ताकि देश में श्रमिकों की कमी का हल निकाला जा सके. 39 साल की फैशन डिजायनर राहेल हेर ने बच्चों की देखभाल पर खर्च बचाने के लिए सोमवार को काम करना बंद कर दिया. इसके चलते उन्हें शनिवार को घर से काम करना पड़ता. इससे परेशान होकर उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर एक कड़ा फैसला लिया और वे लोग अपने देश आयरलैंड वापस लौट गये.
ब्रिटेन में सिर्फ चाइल्डकेयर ही कारण नहीं बल्कि मकान का किराया और दूसरे खर्चे भी आसमान छू रहे हैं. हेर कहती हैं, "हमने हिसाब लगाया तो देखा कि अक्टूबर से हम कर्ज में आ जाएंगे क्योंकि खर्च हमारी आय से ज्यादा होगा. और तब हम अपना मकान बेचने पर मजबूर हो गये और आयरलैंड आ गये. मुझे ऐसा लगा कि मैं पीछे जा रही हूं और अपना करियर सीमित कर रही हूं क्योंकि आयरलैंड में करियर के उतने विकल्प नहीं हैं."
एनआर/आरपी (एएफपी)