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बड़ी चुनौतियों के साथ मैर्केल की चीन यात्रा

१ फ़रवरी २०१२

ईरान और यूरो मुद्रा, दो बड़े संकटों के साथ जर्मन चांसलर अंगेला मैर्कैल चीन पहुंच रही हैं. बेशक यह साल की उनकी पहली बड़ी यात्रा है लेकिन दोनों ही मुद्दों को लेकर बड़ी चुनौतियां भी साथ होंगी.

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तस्वीर: Reuters

यूरो संकट और ईरान

दो दिन की यात्रा पर जर्मन चांसलर मैर्केल प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ और राष्ट्रपति हू जिंताओ से मिलेंगी. बातचीत के केंद्र में यूरो मुद्रा संकट जरूर होगा. बहस होगी कि किस तरह चीन जर्मनी और यूरोप को इस मामले में मदद कर सकता है.

साथ में ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर भी बातचीत होगी. 23 जनवरी को यूरोपीय संघ ने फैसला किया है कि ईरान पर और कड़े प्रतिबंध लगाए जाएंगे. जुलाई से यूरोपीय संघ के 27 देश ईरान से तेल लेना बंद कर देंगे. अभी से ही ईरान के यूरोप में सभी खातों को फ्रीज कर दिया गया है. यूरोपीय संघ उम्मीद करता है कि दुनिया के कई दूसरे देश भी ईरान से तेल न आयात करने में मदद करेंगे. लेकिन चीन ने साफ कर दिया है कि वह ईरान पर और प्रतिबंध लगाने के खिलाफ है. उसने कहा कि नए प्रतिबंध मतभेद का हल ढूंढने में मददगार नहीं हैं.

ईरान के तेल निर्यात में से 20 प्रतिशत चीन को मिलता है. ईरान और चीन के बीच व्यापार तेजी से बढ़ रहा है. ईरानी विदेश मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक 2011 में द्विपक्षीय व्यापार में 55 प्रतिशत वृद्धि हुई है. बॉन विश्वविद्यालय के राजनीति शास्त्री गू शूएवू के मुताबिक ईरान के मुद्दे पर दोनों देशों का नजरिया बिलकुल अलग है. शुएवू कहते हैं, " चीन आर्थिक और राजनीतिक कारणों से ईरान पर प्रतिबंधों का समर्थन नहीं करेगा."

Foto: Axel Schmidt/dapd
वेन जियाबाओ के साथ मैर्केलतस्वीर: dapd

कितने पुराने रिश्ते

2012 चीन और जर्मनी के लिए अहम साल है. 40 साल पहले 1972 में दोनों देशों ने कूटनीतिक रिश्तों की शुरुआत की थी. हालांकि भारत के साथ जर्मनी के कूटनीतिक रिश्तों की शुरुआत 1951 में ही हो चुकी थी. सियासी समस्याओं के बावजूद चीन समाजवादी और जर्मनी लोकतांत्रिक देश है. जर्मनी चीन का यूरोप में सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक साझेदार है और जर्मन कंपनियों के लिए चीन का विशाल बाजार हमेशा से अहम रहा है. चीन ने भारत से कई साल पहले ही अपने बाजार खोल दिए थे.

जर्मनी और चीन को उम्मीद है कि पांच साल के अंदर उनका व्यापार 200 अरब यूरो तक हो जाएगा. इस वक्त यह व्यापार लगभग 130 अरब यूरो का है. जबकि अभी भारत और जर्मनी में हर साल सिर्फ 20 अरब यूरो का कारोबार होता है.

जिस तरह पिछले साल भारत और जर्मनी के बीच द्विपक्षीय कैबिनेट वार्ता आयोजित हुई, उसी तरह जर्मनी और चीन के बीच भी पिछले साल पहली बार खास वार्ता की शुरुआत हुई. जर्मनी सिर्फ तीन देशों को इस तरह की अहमियत दे रहा है. भारत और चीन के अलावा इस्राएल.

मानवाधिकारों का मामला

जर्मनी ने अकसर इस बात पर जोर दिया है कि वह चीन में मानवाधिकारों की स्थिति से चिंतित है. चांसलर मैर्केल ने जब कुछ समय पहले तिब्बतियों के धार्मिक नेता दलाई लामा को जर्मनी में बातचीत के लिए बुलाया, तब चीन ने इसका विरोध किया था. चीन तिब्बत को अपने देश का हिस्सा मानता है और वह तिब्बत संघर्ष को अपना आतंरिक मामला मानता है. हाल के दिनों में तिब्बतियों का प्रदर्शन जोर पकड़ रहा है और चीन सरकार ने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया है.

सैनिकों और प्रदर्शनकारियों के बीच लड़ाई में कई लोगों की मौत की भी रिपोर्टें हैं. चीनी मामलों के जानकार एबर्हार्ड सांदश्नाइडर का कहना है कि जर्मनी या कोई दूसरा देश अगर चीन सरकार से इस मु्द्दे पर बात करे तब भी "मानवाधिकारों की स्थिति पर चीन में कोई बदलाव नहीं आने वाला है". विडंबना है कि जब पिछले साल चीन के राष्ट्रपति वेन जिआबाओ जर्मनी आए तब प्रेस कांफ्रेस में अनुवाद के लिए हेडफोन तब आचानक खराब हो गए जब उनसे एक पत्रकार ने चीन में मानवाधिकार उल्लंघन पर सवाल पूछ लिया.

रिपोर्ट: क्रिस्तोफ रिकिंग /प्रिया एसेलबॉर्न

संपादन: ए जमाल

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