बढ़ रहा है नाटो का कुनबा, फिनलैंड और स्वीडन जल्द ही जुड़ेंगे
१२ मई २०२२फिनलैंड के राष्ट्रपति साउली निनिस्तो और प्रधानमंत्री सना मरीन ने गुरुवार को फिनलैंड के नाटो में "बिना देर किए" शामिल होने को समर्थन देने की घोषणा कर दी है. रूस के साथ 1300 किलोमीटर लंबी सीमा वाला फिनलैंड पश्चिमी देशों के सैन्य संगठन के साथ जुड़ने के लिए आवेदन करेगा इसके कई संकेत पहले से ही मिल रहे थे, खासतौर से यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद.
फिनलैंड की तरफ से जारी बयान में कहा गया है, "नाटो की सदस्यता फिनलैंड की सुरक्षा को मजबूत करेगी. नाटो के सदस्य के रूप में फिनलैंड इस सुरक्षा गठबंधन को मजबूत करेगा. फिनलैंड को बिना देरी किये नाटो की सदस्यता के लिए जरूर आवेदन करना चाहिए."
फिनलैंड के राष्ट्रप्रमुख और सरकार के मुखिया की रजामंदी मिल जाने के बाद ऐसा लग रहा है कि कई दशकों तक तटस्थ रहने के बाद फिनलैंड नाटो की सदस्यता के लिए अब कदम उठायेगा. यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद आम लोगों की नाटो के बारे में राय बड़ी तेजी से बदली है. फिनलैंड में हाल ही में कराये एक सर्वे में देश के 76 फीसदी लोग इस कदम के पक्ष में थे. कई राजनीतिक दलों ने भी इसका समर्थन करने के संकेत दिए हैं.
नॉर्डिक देशों में डेनमार्क, नॉर्वे और आइसलैंड तो 1949 में नाटो का गठन होने के समय से ही इसके सदस्य हैं. फिनलैंड की तरह स्वीडन भी इसमें शामिल नहीं है लेकिन अब इसकी उम्मीद बढ़ गई है कि वह भी जल्दी ही फिनलैंड की राह पर चल कर नाटो की सदस्यता के लिए आगे आएगा.
क्या है नाटो
नाटो यानी नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन दुनिया का सबसे बड़ा सैन्य गठबंधन है, इसमें 30 यूरोपीय और उत्तर अमेरिकी देश शामिल हैं जिन्होंने हमला होने पर एक दूसरे की रक्षा करने की शपथ ली है.
यह गठबंधन शीत युद्ध की शुरुआत में पश्चिमी देशों को सोवियत आक्रमण से बचाने के लिए बनाया गया था. हालांकि समय बीतने के साथ इसकी पहुंच बढ़ती गई. इसका मुख्यालय ब्रसेल्स में है. बीते सालों में इसका महत्व कम हो गया था लेकिन यूक्रेन युद्ध ने अचानक इसे मुख्यधारा में वापस ला दिया है. फिलहाल नाटो के सदस्य देशों के बीच एकता की भावना मजबूत हो गई है और अमेरिका के साथ यूरोप का सहयोग भी काफी ज्यादा बढ़ गया है.
नाटो की शुरुआत
पूर्वी यूरोप में कम्युनिस्ट सरकारों की स्थापना करने की सोवियत संघ की कोशिशों से चिंतित 12 देशों ने 4 अप्रैल, 1949 को नाटो का गठन किया था. तब नाटो के गठन के लिए वॉशिंगटन ट्रीटी पर बेल्जियम, ब्रिटेन, कनाडा, डेनमार्क, फ्रांस, आइसलैंड, इटली, लग्जेमबर्ग, नीदरलैंड्स, नॉर्वे, पुर्तगाल, और अमेरिका ने दस्तखत किये थे.
इसके बाद 1952 में इसमें ग्रीस और तुर्की, 1955 में पश्चिमी जर्मनी और 1982 में स्पेन भी शामिल हो गया.
इस ट्रीटी में सबसे अहम है आर्टिकल 5 जिसमें लिखा है, "यूरोप या अमेरिका में किसी एक या ज्यादा सदस्यों पर सशस्त्र हमले को सभी देशों पर हमला माना जायेगा." इस परिस्थिति में सदस्य देशों के लिए ,"कदम उठाना जरूरी होगा जिनमें हथियारों का इस्तेमाल भी शामिल है."
नाटो के जवाब में सोवियत संघ ने भी वारसॉ की संधि की और इसके प्रतिद्वंद्वी के रूप में 12 कम्युनिस्ट देशों का संगठन बनाया.
1991 में सोवियत संघ के पतन के बाद नाटो ने पूर्वी यूरोप के विरोधी देशों के साथ भी संबंध जोड़े और बाल्कन के युद्ध को खत्म करने में मदद दी.
नाटो का पहला संयुक्त अभियान
1994 में गठबंधन ने अपना पहला संयुक्त युद्धक अभियान शुरू किया जब बोस्निया हर्जेगोविना में नो फ्लाई जोन को लागू कराने के लिए लड़ाकू विमान भेजे गये. नाटो की तरफ से पहले हमले में अमेरिकी विमानों ने चार सर्बियाई विमानों को मार गिराया.
इसके एक साल बाद ही बोस्निया में शांति सेना की तैनाती के साथ नाटो ने पहली बार जमीन पर अपने कदम रखे. 1999 में सर्बिया में इसने 78 दिनों तक बमबारी की. यह कोसोवो में सर्बिया की तरफ से किये हिंसक कार्रवाइयों को रोकने के लिए किया गया था. आखिरकार सर्बियाई सेना कोसोवा से बाहर निकली और उसे संयुक्त राष्ट्र प्रशासन के अधीन कर दिया गया.
रूस के साथ नाटो का करार
1990 के दशक में नाटो ने रूस के साथ भी रिश्तों में जमी बर्फ पिघलाने की कोशिश की. 1997 में इस गठबंधन ने राजनीतिक रूप से रूस के साथ फाउंडिंग एक्ट पर दस्तखत किया. इसमें दोनों पक्षों ने " शांत और अविभाजित यूरोप"का निर्माण करने की शपथ के साथ ही इस बात पर भी जोर दिया था कि "एक दूसरे को विरोधी नहीं मानेंगे." 1999 में पहली बार पूर्व कम्युनिस्ट देशों चेक रिपब्लिक, हंगरी और पोलैंड ने भी नाटो की सदस्यता ले ली.
आतंकवाद के खिलाफ जंग
नाटो के "एक के लिए सब और सबके लिए एक" शपथ का आह्वान पहली बार अमेरिका पर 9/11 के हमले के बाद किया गया.
अमेरिकी नेतृत्व में "आतंकवाद के खिलाफ जंग" में 2003 में नाटो भी शामिल हो गया और अफगानिस्तान में अल कायदा और दूसरे इस्लामी संगठनों को खत्म करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा सहयोग बल आईएसएफ का नेतृत्व करने लगा.
इसके बाद यूरोपीय संघ का विस्तार होने के साथ गठबंधन का भी विस्तार हुआ. 2004 में बुल्गारिया, रोमानिया, स्लोवाकिया और स्लोवेनिया भी इसमें शामिल हो गये. इसी साल तीन पूर्व सोवियत देशों एस्तोनिया, लातविया और लिथुआनिया ने भी नाटो का हाथ पकड़ा. इस घटना ने रूस को खासतौर से नाराज किया. इसके बाद 2010 में अल्बानिया और क्रोएशिया और 2017 में मोंटनेग्रो भी नाटो का सदस्य बन गये.
2011 में नाटो को संयुक्त राष्ट्र से लीबिया में तानाशाह मुअम्मर गद्दाफी के जुल्मों से आम लोगों को बचाने के लिए "सारे जरूरी उपाय" करने का अधिकार मिला. सात महीने तक चले नाटो के हवाई हमलों के अभियान के नतीजे में आखिरकार गद्दाफी को उनके विरोधियों ने सत्ता से हटा दिया.
पाइरेसी, मानव तस्करी और साइबर अपराध से लड़ा नाटो
नाटो ने अफ्रीका में पाइरेसी, भूमध्यसागर में मानव तस्करी और साइबर हमलों से लड़ने में भी बड़ी भूमिका निभाई है. अफगानिस्तान में नाटो का युद्धक अभियान 2014 में मोटे तौर पर खत्म हो गया. हालांकि इसके साथ साल बाद अफगानिस्तान से पूरी तरह नाटो की विदाई हुई जिसके बाद पश्चिमी देशों के ट्रेन किये अफगान सुरक्षा बलों की ताकत बिखर गई और तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया.
नाटो और रूस के बीच रिश्तों को सबसे ज्यादा चोट तब पहुंची जब रूस ने क्राइमिया को अपने साथ मिला लिया और पूर्वी यूक्रेन में अलगाववादियों को समर्थन देने लगा.
2016 में नाटो ने चार बहुराष्ट्रीय बटालियन पोलैंड और बाल्टिक देशों में तैनात किये. शीतयुद्ध के बाद पहली बार इतने बड़े स्तर पर संयुक्त फौज की तैनाती हुई. इसके साथ ही इस गठबंधन की प्रासंगिकता को लेकर सवाल उठने लगे. पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने इसे "बेकार" कहा तो फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने इसके "दिमागी मौत" की घोषणा कर दी. हालांकि इसी बीच मार्च 2020 में उत्तरी मैसेडोनिया नाटो का 30वां सदस्य बना.
24 फरवरी 2022 को रूस ने पड़ोसी देश यूक्रेन पर हमला बोल दिया. यूक्रेन नाटो का सहयोगी देश है और कई सालों से इस गठबंधन में शामिल होने की कोशिश कर रहा है. नाटो ने रूसी राष्ट्रपति से युद्ध खत्म करने का अनुरोध किया लेकिन इसके साथ ही यूक्रेन में फौज भेजने से इनकार कर दिया. नाटो यूक्रेन की नो फ्लाई जोन लागू करने की मांग भी नहीं मानी. नाटो को डर है कि ऐसा करने से वह परमाणु ताकत वाले रूस के साथ सीधे लड़ाई की स्थिति में आ सकता है. हालांकि नाटो ने यूक्रेन को हथियार की भरपूर मदद दी है.
15 मार्च को यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने कहा कि वह नाटो की सदस्यता पाने की कोशिश छोड़ने को तैयार हैं. इस बीच दशकों से तटस्थ रहे फिनलैंड और स्वीडन ने कहा कि वो नाटो में शामिल होने के बारे में विचार कर रहे हैं. फिनलैंड की तरफ से जल्दी ही पहल होगी अब इसमें कोई संदेह नहीं है और स्वीडन भी इसी राह पर चलने का मन बना चुका है.
एनआर/आरपी (डीपीए, एएफपी)