बढ़ती उम्र में दिमाग चुस्त रख सकते हैं वीडियो गेम्स!
२१ नवम्बर २०१७एक अध्ययन बताता है कि उम्रदराज लोग, जो खास कम्प्यूटर प्रशिक्षणों का अभ्यास करते हैं उनमें डिमेन्शिया होने की संभावना 29 प्रतिशत कम होती है. इस अध्ययन में कम्प्यूटर ट्रेनिंग्स के ऐसे टेस्ट थे, जहां लोगों को दृश्यों को देखकर तेजी से जवाब देने थे.
2,800 लोगों पर किये गये इस अध्ययन में मस्तिष्क को ट्रेनिंग देने वाले टेस्ट "डबल डिसीजन" का इस्तेमाल किया गया था, जिसमें शामिल हुए प्रतिभागियों की उम्र औसतन 74 वर्ष थी. यह एक अमेरिकी कंपनी पॉजिट साइंस का पेटेंट प्रोग्राम है, जो BrainHQ.com पर भी उपलब्ध है. विशेषज्ञों के हिसाब से इसके नतीजे आशाजनक हैं.
इस ट्रेनिंग प्रोग्राम में इंसान के कंप्यूटर स्क्रीन के बीचों बीच देखने की क्षमता को जांचा. इसमें स्क्रीन के बीचों बीच कोई एक चीज रखी थी, जैसे कि एक ट्रक. टेस्ट दे रहे व्यक्ति को ट्रक के आसपास अचानक पॉप अप होने वाली चीजों पर माउस से क्लिक करना था. जैसे कोई कार, बाइक या साइकल. जैसे जैसे व्यक्ति बेहतर होता जाता, वैसे वैसे चीजें तेजी से सामने आतीं और टेस्ट का लेवल और बढ़ता जाता. यह मस्तिष्क के बदलने की क्षमता का प्रयोग और अनुभव, निर्णय लेने, सोच और याद रखने के कौशल का परीक्षण था.
अध्ययन के लेखक कहते हैं कि यह प्रक्रिया एक बाइक की सवारी करना सीखने की तरह है, यह एक ऐसा कौशल है जो सीखने में ज्यादा समय नहीं लेता है, लेकिन यह मस्तिष्क के एक दीर्घकालिक परिवर्तन को शुरू करता है.
इस अध्ययन में प्रतिभागियों के 4 समूह थे. एक ने कंप्यूटर ट्रेनिंग का अभ्यास किया, दूसरे ने याद्दाश्त बेहतर करने की पारंपरिक अभ्यासों को चुना, तीसरे ने तर्क वितर्क से जुड़े अलग अभ्यास किये और चौथे समूह ने किसी तरह की कोई ट्रेनिंग नहीं ली. कंप्यूटर टेस्ट में हिस्सा लेने वाले लोगों को प्रोग्राम के पहले पांच सप्ताह में कम से कम 10 घंटे प्रशिक्षण दिया था. इनमें से कुछ को अगले तीन सालों तक और अधिक कंप्यूटर ट्रेनिंग दी गई.
हावर्ड यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में बुढ़ापे में मनोचिकित्सा के प्रोफेसर रॉब कहते हैं कि यह अध्ययन संकेत देता है कि एक विशेष प्रकार का मस्तिष्क प्रशिक्षण लोगों को डिमेन्शिया को बाधित करने में मदद कर सकता है, लेकिन सीमित रिसर्च के कारण, हम आत्मविश्वास से इस बात का दावा नहीं कर सकते हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि और अधिक अध्ययन होने चाहिए ताकि देखा जा सके कि क्या अगली बार भी इसके परिणाम ऐसे ही होंगे. इससे इस अध्ययन को और अधिक बेहतर तरीके से समझने में मदद मिलेगी.
एसएस/ओएसजे (एएफपी)