बढ़ती गर्मी के कारण इस तरह गायब हो जाएगी कोयल
९ मार्च २०२२पर्यावरण से जुड़े फाउंडेशन 'वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर' (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) ने कहा है कि ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण पूरी दुनिया में जीवों और पौधों पर असर पड़ा है. 9 मार्च को जारी अपनी एक रिपोर्ट 'फीलिंग द हीट' में संगठन ने बताया कि मौसम की अतिरेकता से जुड़ी घटनाएं, मसलन- गरम हवा के थपेड़े, सूखा और बाढ़ के कारण जानवरों और पौधों की दुनिया बहुत प्रभावित हो रही है. बढ़ते तापमान के मुताबिक ढलना अभी से ही उनके लिए बहुत मुश्किल साबित हो रहा है.
क्या बताया गया है रिपोर्ट में?
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ में प्रकृति संरक्षण के निदेशक क्रिस्टोफ हेनरिक ने बताया, "जलवायु परिवर्तन के कारण पैदा होने वाला संकट सुदूर भविष्य से जुड़ी कोई अवधारणा नहीं है. यह हमारे वर्तमान में पहुंच चुका है, हमारे दरवाजे पर खड़ा है. जैसे-जैसे जलवायु गर्म होता जाएगा, हमपर पड़ने वाला दबाव भी बढ़ता जाएगा."
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की इस ताजा रिपोर्ट में जीवों और पौधों की 13 चुनी हुई प्रजातियों पर जलवायु संकट के असर का ब्योरा है.
इन प्रजातियों में यूरोप की कुछ मूल प्रजातियां भी शामिल हैं, मसलन- कोयल, बंबल बी और बीच लाइलाक. ये सभी संरक्षित प्रजातियों में आते हैं. तेजी से गरम हो रही धरती और ध्रुवों के बढ़ते तापमान के कारण समुद्र के जलस्तर में हो रही वृद्धि से इन जीवों के अस्तित्व पर खतरा है.
इस तरह गायब होने लगेगी कोयल
कोयलों की कुछ किस्में तो पहले ही खत्म होने की कगार पर पहुंच चुकी हैं. इसका मुख्य कारण है, प्रजनन का उनका खास तरीका. कोयल दूसरी प्रजातियों के पक्षियों के घोंसले में अपने अंडे देती है और उन पक्षियों को अपने अंडे सेने देती है. इसके लिए कोयल सर्दियों के अपने आवास तक पहुंचने के लिए करीब सात हजार किलोमीटर की यात्रा करती है.
उसे जिन पक्षियों के घोंसले में अंडे देने हैं, अगर वे मेजबान पक्षी बढ़ते तापमान के कारण सर्दियों के अपने ठिकाने से जल्दी लौट आए, तो वे भी जल्दी प्रजनन शुरू कर देंगे. ऐसे में अगर कोयल को वहां पहुंचने में देर हुई, तो उसे अंडे देने के लिए कोई घोंसला नहीं मिलेगा. उसे उन पक्षियों के दोबारा अंडे देने का इंतजार करना होगा. अंडे देने का यह अगला चक्र अमूमन मई के दूसरे पखवाड़े में शुरू होता है. इसका मतलब होगा कि कोयल कम अंडे देंगी. उनके बच्चे कम होंगे. साल-दर-साल उनकी संख्या घटती जाएगी और वे दुर्लभ हो जाएंगी.
दूसरी तरफ बंबल बी के आगे ज्यादा गर्म होने का जोखिम है. फिलहाल मेक्सिको और स्पेन जैसे गरम देशों में बंबल बी सबसे ज्यादा प्रभावित हो रही हैं. हालांकि खतरा गरम इलाकों तक सीमित नहीं है. कमोबेश ठंडे क्षेत्रों में भी उनकी संख्या घटती जा रही है. अल्पाइन क्षेत्र में बंबल बी ऊपर के इलाकों की तरफ बढ़ती जा रही है. यह इलाका उसके लिए बहुत उपयुक्त नहीं है. इसके अलावा यहां सघन खेती जैसे कई कारकों से भी उसे खतरा है.
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की रिपोर्ट का एक हिस्सा 'इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज' (आईपीसीसी) की एक रिपोर्ट पर भी आधारित है. इसमें डब्ल्यूडब्ल्यूएफ ने बताया है कि ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण तापमान में डेढ़ से दो डिग्री सेल्सियस तक की वृद्धि का क्या असर होगा. इसके मुताबिक, डेढ़ डिग्री तक की वृद्धि से आठ प्रतिशत पौधे अपनी आधी से ज्यादा किस्में खो देंगे. अगर तापमान में दो डिग्री तक का इजाफा हुआ, तो यह आंकड़ा 16 प्रतिशत तक पहुंच जाएगा. कशेरुकियों में यह आंकड़ा चार से आठ प्रतिशत तक रहने की आशंका है.
एसएम/एनआर (डीपीए)