बर्डफ्लू को रोकने के लिए मुर्गे की जीन में बदलाव
४ जून २०१९बर्डफ्लू का वायरस जंगली चिड़ियों और मुर्गियों में बहुत तेजी से फैलता है और यहां से यह कई बार इंसानों तक पहुंच जाता है. दुनिया में इस तरह फैलने वाली संक्रामक बीमारियों के विशेषज्ञ बर्डफ्लू के इंसानों तक पहुंचने के खतरे से बहुत चिंतित हैं क्योंकि यह बहुत आसानी से हवा पर सवार हो कर इंसानों तक पहुंच जाता है और फिर एक इंसान से दूसरे इंसान में फैलने लगता है.
इंपीरियल कॉलेज ऑफ लंदन के रिसर्चरों ने मुर्गे के डीएनए के एक हिस्से में बदलाव कर बर्डफ्लू के वायरस को कोशिकाओं में रहने और फैलने से रोकने में सफलता पाई है.
रिसर्च का नेतृत्व करने वाले वैज्ञानिकों में एक मार्क मैकग्र्यू ने बताया कि इसके बाद अब अगला कदम ऐसे जेनेटिक बदलाव के साथ मुर्गे पैदा करना होगा. मैकग्र्यू ने बयान जारी कर कहा है, "यह एक अहम प्रगति है जो बताती है कि हम जीन एडिटिंग तकनीक के जरिए ऐसे मुर्गे पैदा करने में कामयाब होंगे जो बर्डफ्लू प्रतिरोधी होंगे. हमने अब तक कोई मुर्गा पैदा नहीं किया है और अगला कदम उठाने से पहले हमें यह देखना होगा कि डीएनए में बदलाव का मुर्गे की कोशिका पर क्या कोई और असर भी होता है."
रिसर्चरों की इस टीम को उम्मीद है कि इसके बाद जीन एडिटिंग तकनीक का इस्तेमाल कर वे मुर्गों के डीएनए से एक हिस्से को निकाल पाने में सफल होंगे. यह हिस्सा एनपी32 नाम के प्रोटीन को पैदा करने के लिए जिम्मेदार है और बर्डफ्लू का वायरस अपने परपोषी में संक्रमण के लिए इसी प्रोटीन पर निर्भर है. इस तकनीक को सीआरआईएसपीआर कहते हैं.
इन कोशिकाओं के लैब परीक्षणों में देखा गया कि इस जीन की कमी फ्लू के वायरस का प्रवेश रोक देती है और इसके साथ ही इनका बढ़ना और फैलाव भी रुक जाता है.
पिछली बार 2009 और 2010 में बर्डफ्लू की महामारी फैली थी जिसके लिए एच1एन1 वायरस जिम्मेदार था और उसे तुलनात्मक रूप से कम खतरनाक माना जाता है. तब भी दुनिया भर में करीब 5 लाख लोग इसकी चपेट में आए. 1918 में ऐतिहासिक स्पैनिश फ्लू ने करीब 5 करोड़ लोगों की जान ली थी.
वेन्डी बार्क्ले इंपीरियल कॉलेज में प्रोफेसर और इंफ्लुएंजा वायरोलॉजी की चेयरमैन हैं और मैकग्र्यू के साथ ही काम करती हैं. उनका कहना है कि जीन परिवर्तित फ्लू प्रतिरोधी मुर्गे विकसित करने के पीछे विचार यह है कि "अगली फ्लू की महामारी को उसके स्रोत पर ही रोक दिया जाए."
एनआर/आईबी (रॉयटर्स)
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