बर्लिन चुनाव के नतीजे से बढ़ा मैर्केल पर दबाव
१९ सितम्बर २०१६अगले साल जर्मनी में होने जा रहे राष्ट्रीय चुनाव से पहले यह चांसलर मैर्केल की पार्टी के लिए अच्छे संकेत नहीं. मैर्केल की पार्टी को पिछड़ता दिखाने वाले यह लगातार पांचवे चुनावी नतीजे हैं. साथ ही साथ इन चुनावों में उग्र दक्षिणपंथी पार्टी एएफडी की अभूतपूर्व जीत मिली है. अपनी सांस्कृतिक विविधता और अंतरराष्ट्रीय अपील के लिए मशहूर रहे जर्मनी के सबसे बड़े शहर बर्लिन के चुनाव में पॉपुलिस्ट पार्टी अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी को 14 फीसदी वोट मिलना महत्वपूर्ण घटना है.
2015 में ही करीब 10 लाख शरणार्थी जर्मनी पहुंचे, जिनमें से लगभग 70,000 तो केवल बर्लिन पहुंचे थे. रिफ्यूजियों के लिए जर्मनी के द्वार खोल देने वाली चांसलर मैर्केल की शरणार्थी नीति को लेकर देश के भीतर असंतोष बढ़ा है. मैर्केल की सहयोगी पार्टी सीएसयू के एक मुखर नेता मार्कुस जोएडर ने इन वोटों को "जगाने वाली बड़ी घंटी" कहा है और आप्रवासन को लेकर कड़ी सीमाएं तय करने की मांग की है. जर्मन दैनिक बिल्ड से बातचीत में उन्होंने कहा, "क्रिस्चियन यूनियन अपने कोर वोटरों का भरोसा हमेशा हमेशा के लिए खो सकता है."
राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि इन नतीजों के कारण यूरोप की सबसे प्रभावशाली नेता मानी जाने वाली मैर्केल को यूरोपीय संघ के बजाए जर्मनी के आंतरिक मामलों पर ज्यादा ध्यान देना पड़ेगा. पूरा ईयू इस समय आर्थिक स्थिति और ब्रिटेन के संघ से बाहर निकलने के फैसले को लेकर चिंतित है और शरणार्थियों पर राय को लेकर विभाजित दिख रहा है. हाल के चुनावों में जर्मनी के अलावा फ्रांस, ऑस्ट्रिया, नीदरलैंड्स और अमेरिकी चुनाव प्रचार अभियान में भी दक्षिणपंथी विचारधारा को बढ़त मिलती नजर आ रही है.
बर्लिन की जीत के बाद एएफडी ने देश के कुल 16 राज्यों में से 10 में प्रमुख विपक्षी दल का स्थान पा लिया है. लेकिन अपनी उम्मीद जितना वोट ना मिलने के कारण यह दक्षिणपंथी पार्टी सम्मिलित सूची में पांचवे स्थान पर ही रह गई. जिसे कुछ विश्लेषक उसकी घटती लोकप्रियता का सबूत बता रहे हैं. फिर भी दूसरे विश्व युद्ध के बाद से यह पहला मौका है जब एक उग्र दक्षिणपंथी विचारधारा वाली पार्टी को जर्मन राजनीति में इतना पैर जमाने का मौका मिला है.
मैर्केल की पार्टी को 18 फीसदी वोट मिले जो कि युद्ध के बाद के इतिहास में अब तक का सबसे बुरा नतीजा है. मुख्यधारा की दूसरी प्रमुख पार्टी एसपीडी को 22 फीसदी वोट मिले. वामपंथी डी लिंके को चार प्रतिशत की बढ़त के साथ 16 फीसदी और इको पार्टी ग्रीन को 15 फीसदी वोटों के साथ तीसरा और चौथा स्थान मिला. करीब 35 लाख की आबादी वाले बर्लिन के चुनाव में जन सुविधाओं के बुरे हाल, खस्ताहाल स्कूली इमारतों, लेट चलने वाली ट्रेनों और रिहायशी इमारतों की कमी जैसे घरेलू मुद्दों के अलावा बड़ी संख्या में पहुंचे शरणार्थियों से जुड़ी समस्याएं छाई रहीं.