बांग्लादेश की आजादी के 50 साल
पचास साल पहले बांग्लादेश के रूप में एक नए देश का जन्म एक अद्भुत घटना थी. देखिए इन तस्वीरों में बांग्लादेश के बनने की कहानी.
आजादी की हुंकार
ढाका के रेस कोर्स मैदान में सात मार्च 1971 को बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान द्वारा दिया गया यह भाषण ऐतिहासिक माना जाता है. करोड़ों लोगों की उपस्थिति में इसी भाषण में रहमान ने आजादी की मांग की थी.
सशस्त्र लड़ाके
दो अप्रैल 1971 की इस तस्वीर में तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान के जेस्सोर में हथियारबंद लड़ाकों को रिक्शा पर जाते हुए देखा जा सकता है. भारत की सीमा के पास स्थित इस शहर में रहमान के समर्थकों और पाकिस्तानी सेना के सैनिकों के बीच घमासान लड़ाई हुई थी.
आजादी की सेना
यह भी दो अप्रैल, 1971 की ही तस्वीर है जिसमें पूर्वी पाकिस्तान को पाकिस्तान से आजाद करने के लिए बनाई गई सेना मुक्ति-बाहिनी के सैनिकों को भी जेस्सोर में पाकिस्तानी सेना के सैनिकों के खिलाफ लड़ाई करने के लिए जाते हुए देखा जा सकता है.
'जय बांग्ला'
आठ अप्रैल की इस तस्वीर में मुक्ति-बहिनी के सैनिक पूर्वी पाकिस्तान के कुश्तिया में 'जय बांग्ला' के नारे लगा रहे हैं.
लोगों का जज्बा
नौ अप्रैल की इस तस्वीर में पूर्वी पाकिस्तान के पंगसा गांव में रहमान और मुक्ति-बाहिनी के समर्थन में आम लोग भी 'जय बांग्ला' के नारे लगा रहा हैं.
ढाका से पलायन
11 अप्रैल की तस्वीर. ढाका छोड़ कर जा रहे बंगाली शरणार्थियों से भरी एक बस निकलने को तैयार है. कई और शरणार्थी दूसरी बस का इंतजार कर रहे हैं.
भारत से उम्मीद
पूर्वी पाकिस्तानी के महरपुर से देश छोड़ कर जाते शरणार्थियों का एक परिवार. पाकिस्तानी सेना द्वारा बांग्लादेशी लड़ाकों को खदेड़ दिए जाने के बाद, ये शरणार्थी अपनी सुरक्षा के लिए भारत की तरफ जा रहे थे.
भारतीय सेना मैदान में
दिसंबर 1971 में भारत भी युद्ध में शामिल हो गया था. सात दिसंबर की इस तस्वीर में भारतीय सेना के फॉरवर्ड आर्टिलरी के कर्मियों को मोर्चे पर तैनात देखा जा सकता है.
भारत की भूमिका
जेस्सोर को अपने कब्जे में ले लेने के बाद भारतीय सैनिक इस तस्वीर में ढाका की तरफ जाने वाली एक सड़क पर तैनात खड़े दिख रहे हैं.
मुजीबुर रहमान की सरकार
11 दिसंबर की यह तस्वीर जेस्सोर में हुई एक जनसभा की है जिसमें लोग रहमान के नेतृत्व में बनी बांग्लादेश की कार्यकारी सरकार की जय के नारे लगा रहे हैं. बंदूक लिए मुक्ति-बाहिनी का एक सैनिक लोगों को शांत करने की कोशिश कर रहा है. पीछे सिटी हॉल दिख रहा है जिसकी छत पर भारतीय सैनिक पहरा दे रहे हैं.
विदेशी नागरिकों की सुरक्षा
12 दिसंबर को ब्रिटेन के एक जहाज में विदेशी नागरिकों को ढाका से निकाल लिया गया. यह मिशन इसके पहले गोलीबारी की वजह से तीन बार असफल हो चुका था. अंत में जब छह घंटों के युद्ध-विराम पर सहमति हुई, तब जा कर यह मिशन सफल हो पाया.
भारतीय सेना का स्वागत
14 दिसंबर की इस तस्वीर में पूर्वी पाकिस्तान के बोगरा की तरफ बढ़ते भारतीय सेना के एक टैंक को देख कर गांव-वाले सैनिकों का स्वागत कर रहे हैं. भारतीय सेना ने इन्हीं टैंकों की मदद से दुश्मन की घेराबंदी को तोड़ दिया था.
आत्मसमर्पण
16 दिसंबर को पाकिस्तान के जनरल नियाजी ने भारतीय सेना के आगे आत्मसमर्पण कर दिया. तस्वीर में बाएं से दूसरे शख्स हैं जनरल नियाजी जो भारतीय सेना की पूर्वी कमांड के प्रमुख जनरल अरोड़ा और दूसरे कमांडरों की उपस्थिति में हस्ताक्षर कर रहे हैं.
मौत की सजा
18 दिसंबर की इस तस्वीर में मौत की सजा मिलने से पहले 'राजाकार' हाथ उठा कर दुआ कर रहे हैं. मुक्ति-बाहिनी के सैनिक पीछे खड़े हैं. इन चारों को पांच हजार लोगों के सामने सरेआम मौत की सजा दे दी गई थी.
बिहारी शरणार्थियों का शिविर
22 दिसंबर की यह तस्वीर ढाका के मोहम्मदपुर बिहारी शरणार्थी शिविर की है. उर्दू बोलने वाले कई बिहारी 1947 के बंटवारे के दौरान और उसके बाद भी बिहार से पूर्वी पाकिस्तान चले गए थे. इन्होंने इस युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना का साथ दिया. इनमें से कई परिवारों के सदस्य मुक्ति-बाहिनी के सैनिकों के हाथों मारे गए थे.
'बंगबंधु' की वापसी
प्यार से 'बंगबंधु' कहलाए जाने वाले मुजीबुर रहमान को जनवरी 1972 में पाकिस्तान ने रिहा कर दिया. इस तस्वीर में रहमान ढाका के रेस कोर्स मैदान में इकठ्ठा हुए करीब 10 लाख लोगों को संबोधित करने के लिए बढ़ रहे हैं.
इंदिरा गांधी से मुलाकात
छह फरवरी की इस तस्वीर में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी कलकत्ता हवाई अड्डे पर रहमान का स्वागत कर रही हैं. रहमान तब बांग्लादेश की आजादी के बाद पहली बार दो दिन की यात्रा पर भारत आए थे.