बाढ़पीड़ितों के राहत शिविर में भी जातपात
१० सितम्बर २०१०हैदराबाद के सब्जी बाजार में बाढ़ से विस्थापित 60,000 से अधिक लोग रह रहे हैं. इनमें लगभग एक हजार दलित हिंदू शामिल हैं, जिन्हें एक कोने में धकेल दिया गया है, जहां उन्हें खुले आसमान के नीचे जीना पड़ रहा है.
बेगी रसिया उनमें से एक हैं. बाढ़ में उनका मकान बह गया है, किसी तरह चार बच्चों के साथ जान बच गई है. वह बताती है कि सारे हिंदुओं को अलग शिविर में रखा गया. उनके कागजात ले लिए गए. वह कहती है, “हमें नहीं मालूम कि यहां से कहां जाएंगे. हम गरीब हिंदू हैं. इसलिए पुलिस हमें पीटती है. कैंप के अधिकारी भी हमारा ख्याल नहीं रखते.”
सिंध प्रांत में सामंतवाद का बोलबाला है. गरीब दलित ऊंची जात के हिंदुओं और मुसलमानों के सामने दबे रहते हैं. 30 साल की गंगा भी तीन हफ्तों से खुले आसमान के नीचे जी रही हैं. उनके दो बच्चों को पेचिश हो गया है. वह कहती हैं, “हम पाकिस्तानी हैं, और पाकिस्तान में रहना चाहते हैं. हमें अनाज या पानी नहीं मिलता है. कौन सी गलती की है हमने?“
अमीर अली शाह कैंप के अधिकारी हैं. उनका कहना है कि इन दलितों में से बहुतेरे इस इलाके के नहीं हैं. वे बाढ़ पीड़ित भी नहीं हैं. फिर भी उन्हें खाना पानी दिया जा रहा है.
मोहित कोहली भी बाढ़ पीड़ित हैं. सवर्ण हैं. उन्हें सरकार की ओर से एक टेंट मिला है, जहां वे अपने परिवार के साथ रह रहे हैं. उनका कहना है कि हमेशा शिकायत करना कोई अच्छी बात नहीं. सरकार की ओर से काफी कुछ किया जा रहा है और आम आदमी की मदद के लिए भरसक कोशिश की जा रही है. आखिर कुछ तो मिल रहा है. यह एक अच्छी बात है.
मोहित के टेंट में कीर्तन हो रहा है, उनके मित्र भी वहां आए हुए हैं. इनमें से कोई दलित नहीं है. हां, 45 साल के यादव आए हैं, उन्हें भक्त माना जाता है. उनका घर बाढ़ में बह गया है. वे रोज कीर्तन में भाग लेते हैं. कहते हैं कि यह बाढ़ पापों का फल है. गंगा मैया पापों को बहा ले जा रही है.
पूरे शिविर में यही दो हिंदू हैं, जो संतुष्ट दिखते हैं. कोहली के लिए सरकार ने व्यवस्था की है, और यादव को भगवान पर भरोसा है.
रिपोर्ट: मुदस्सर शाह, सिंध
संपादन: उज्ज्वल भट्टाचार्य