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बारकोड से प्रोस्टेट कैंसर की जांच

१३ अक्टूबर २०१२

एक जेनेटिक बारकोड ब्लड टेस्ट के जरिए डॉक्टर जल्द ही इस बात का पता कर सकेंगे कि मरीज का प्रोस्टेट कैंसर कितना गंभीर है और कितनी जल्दी उसका इलाज होना चाहिए.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

ब्रिटेन में शोधकर्ताओं का कहना है कि इस समय किए जाने वाले पीएसए स्क्रीनिंग के साथ ही ब्लड टेस्ट कर इस बात का पता लगाया जा सकता है कि किस मरीज को फौरन इलाज की जरूरत है. अधिकांश मामलों में स्क्रीनिंग के बाद बायोप्सी करनी पड़ती है जो इस समय यह पता करने का एकमात्र रास्ता है कि प्रोस्टेट कैंसर कितना आक्रामक है. लंदन के कैंसर रिसर्च इंस्टीट्यूट में प्रोस्टेट कैंसर टीम के प्रमुख जोहान दे बोनो का कहना है कि बायोप्सी में जटिलता की संभावना होती है.

बोनो का कहना है कि खून की जांच मरीजों के लिए बहुत आसान और सटीक होगी और पूरे इलाज के दौरान कैंसर के आंकलन की संभावना देगी. "यह ऐसी जानकारी भी दे सकता है जो बायोप्सी में नहीं मिलती, जैसे कि मरीज का इम्यून सिस्टम कैसा है." प्रोस्टेट का कैंसर पुरुषों में लंग कैंसर के बाद सबसे ज्यादा होने वाला कैंसर है.

विभिन्न प्रकार

खून के जांच की नई विधि से कैंसर के विभिन्न प्रकारों में अंतर करने में भी मदद करेगी और डॉक्टर उसके अनुसार इलाज में बदलाव कर पाएंगे. दे बोनो की टीम ने प्रोस्टेट कैंसर के 100 मरीजों के ब्लड सैंपल में जीन को स्कैन किया है. मरीजों के इस ग्रुप में 69 मरीज कैंसर की विकसित अवस्था में थे जबकि 31 मरीज आरंभिक स्तर के कैंसर का शिकार थे.

Kolumbien Präsident Juan Manuel Santos im Krankenhaus
राष्ट्रपति सांतोसतस्वीर: Reuters

प्रोस्टेट का कैंसर पुरुषों में आम होता जा रहा है. कोलंबिया के राष्ट्रपति खुआन मानुएल सांतोस ने हाल ही में पोस्टेट ट्यूमर हटाने के लिए ऑपरेशन कराया है. जटिल गणितीय आंकड़ों का इस्तेमाल कर शोधकर्ताओं ने मरीजों को उनकी जीन सक्रियता यानि बारकोड के आधार पर चार दलों में रखा. उन्होंने आरएनए के स्तर का विश्लेषण कर जीन सक्रियता का पता किया. आरएनए वह जेनेटिक पदार्थ है जो डीएनए को प्रोटीन बनाने में मदद करता है.

ढाई साल बाद मरीजों की हालत की जांच करने के बाद शोधकर्ताओं ने पाया कि दूसरे दलों की अपेक्षा एक दल के मरीज अत्यंत कम समय तक जी पाए. और जांच से उन 9 प्रमुख सक्रिय जीनों का पता चला जो उस दल के सभी मरीजों में पाए गए.

समान शोध

ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने उसके बाद अमेरिका में कैंसर के विकसित स्तर वाले 70 मरीजों का टेस्ट किया और इस बात की पुष्टि हुई कि उन 9 जीनों का इस्तेमाल उन मरीजों की शिनाख्त के लिए किया जा सकता है जो अंत में अपेक्षाकृत कम समय तक जीवित रहे. 9 जीन पैटर्न वाले मरीज 9.2 महीना जीवित रहे जबकि जिन मरीजों में यह नहीं था वे 21.6 महीना जीवित रहे. शोध टीम का कहना है कि उनके जीन पैटर्न में कई ऐसे जीन थे जिसका इस्तेमाल शरीर का इम्यून सिस्टम करता है. इसका मतलब है कि जिन लोगों के शरीर में कैंसर फैल रहा होता है उनका इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है.

Prostata Funktionsweise
प्रोस्टेट कैंसरतस्वीर: AP

माउंट सिनाई मेडिकल कॉलेज में एक दूसरी परियोजना में टिश कैंसर इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर विलियम ओह की टीम ने 62 मरीजों का परीक्षण किया. परीक्षण में उन्हें छह जीनों के एक सेट का पता लगा जो प्रोस्टेट कैंसर के अधिक आक्रमक रूप के साथ जुड़े थे.अमेरिकी टीम के जीन सिग्नेचर ने मरीजों को दे दलों में बांटा. एक का औसत जीवन 7.8 महीने रहा जबकि दूसरे दल का 34.9 महीने.

दोनों स्टडी का प्रकाशन लांसेट ओंकोलॉडी के ताजा अंक में किया गया है. कार्डिफ विश्वविद्यालय के डीन माल्कॉम मेसन कहते हैं, "यदि परीक्षण मरीजों के बड़े ग्रुप में सही साबित होते हैं तो तुरंत मरीजों और डॉक्टरों के लिए यह बताने के लिए फायदेमंद होंगे कि कौन मरीज कितने दिन बचेगा."

आसान और किफायती

लेकिन मेसन का यह भी कहना है कि ब्लड टेस्ट से इलाज से संबंधित कई नए सवाल भी खड़े होंगे. वे पूछते हैं, "खराब संभावना वाले मरीजों को क्या शुरुआती दौर में केमोथेरापी जैसे गहन इलाज से फायदा होगा और कि क्या बेहतर संभावना वाले मरीजों में हॉरमोन थेरापी को जारी रखना बेहतर होगा? "

मालकोम मेसन का कहना है कि इन सवालों के जवाब और क्लीनिकल ट्रायल के बिना नहीं दिए जा सकते. दे बोनो अपनी टीम के ब्लड टेस्ट तरीके को साधारण और किफायती बताते हैं और कहते हैं कि अगले पांच साल में यह विधि रोजमर्रा के इस्तेमाल के लिए उपलब्ध होगी. मेसन को भी इसका इंतजार है. लेकिन वे यह भी कहते हैं कि हो सकता है कि उससे पहले पहेली का कोई और टुकड़ा उसकी जगह ले लेगा.

रिपोर्ट: जॉन ब्लाउ/एमजे

संपादन: ओंकार सिंह जनौटी

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