बाल यौन उत्पीड़न रोकने के लिए तकनीकी उपायों की सिफारिश
१७ दिसम्बर २०१८डिजिटल युग में बच्चों के यौन शोषण पर कोलकाता में आयोजित पहले अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में शामिल प्रतिनिधियों ने इस मुद्दे पर गहरी चिंता जताते हुए इसकी रोकथाम लिए कई सुझाव पेश किए. सम्मेलन में बताया गया कि भारत में वर्ष 2017 में बच्चों के यौन उत्पीड़न के लगभग 24 लाख मामले सामने आए थे. उक्त सम्मेलन में छह देशों के पुलिस अधिकारियों के अलावा जर्मनी, बांग्लादेश, केन्या और कनाडा समेत 15 देशों के सरकारी प्रतिनिधियों, वकीलों, न्यायाधीशों के अलावा फेसबुक, डेलॉयट व प्राइस वाटरहाउस कूपर्स जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया.
ऑनलाइन दुनिया में बच्चों की चिंता
पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में इस दो-दिवसीय सम्मेलन का आयोजन द वेस्ट बंगाल कमीशन फॉर द प्रोटेक्शन आफ चाइल्ड राइट्स (डब्ल्यूबीसीपीसीआर) ने इंटरनेशनल जस्टिस मिशन (आइजेएम) के साथ मिल कर किया था. सम्मेलन का मकसद दुनिया भर से इस विषय के विशेषज्ञों को एक मंच पर लाकर, विचारों के आदान-प्रदान और परिचर्चा के जरिए एक विस्तृत और प्रभावी समाधान सामने लाना था, ताकि मानव तस्करी में तकनीक की उभरती भूमिका पर बात हो सके. विशेषज्ञों का कहना था कि अपराधियों की ओर से इस्तेमाल की जाने वाली नई तकनीक ने कानून, प्रशासन, पुलिस, न्यायपालिका के साथ-साथ पीड़ितों को सेवा मुहैया कराने वालों के सामने नई चुनौती पेश की है. ज्यादातर देशों में इन अपराधों से निपटने के लिए संसाधनों की भारी कमी है. ऑनलाइन जांच और इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर (आईएसपी) से सबूत हासिल करने और उनको अदालत में पेश करने में समस्याएं सामने आती हैं.
सम्मेलन के दौरान अलग-अलग सत्रों में तकनीक के उभरते चलन, इस संबंध में प्रशासन व कानून लागू करने वाली एजेंसियों के सामने पेश होने वाली चुनौतियों, और इस अपराध का मुकाबला करने के लिए प्रभावी समाधान सामने लाना और अपने बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करना जैसे विषय शामिल थे.
कैमरे पर अश्लील हरकत करने को मजबूर
पश्चिम बंगाल बाल अधिकार संरक्षण आयोग की प्रमुख अनन्या चटर्जी कहती हैं, "बाल पोर्नोग्राफी और नाबालिगों के यौन शोषण का स्वरूप बदल रहा है और यह सबके लिए गहरी चिंता का विषय बन गया है. बाल तस्कर कानून से बचने के लिए तकनीक का सहारा ले रहे हैं.” उन्होंने बताया कि बाल तस्कर ऐसे बच्चों को निशाना बनाते हैं जो ऑनलाइन ज्यादा सक्रिय हों. उनसे दोस्ती कर उनकी निजी तस्वीरें और वीडियो मंगाने के बाद ब्लैकमेल करने का सिलसिला शुरू हो जाता है. चटर्जी ने कहा, "बच्चों के खिलाफ बढ़ते साइबर अपराध पूरी दुनिया के लिए गंभीर मुद्दा बनते जा रहे हैं. इस सम्मेलन का मकसद इस समस्या से निपटने की रणनीति तैयार करना है.
आईजेएम के निदेशक शाजी फिलिप बताते हैं कि बच्चों के अपहरण के बाद उनसे दूसरे देशों में बैठे ग्राहकों के लिए कैमरे के सामने अश्लील हरकतें कराई जाती हैं. फिलिप का कहना था, "तकनीक के गलत इस्तेमाल की वजह से बच्चों को काफी खतरा है. यह जरूरी है कि हम अपनी रणनीति को भी विकसित करें और साथ ही इसका मुकाबला करने के लिए अपने कदम मजबूत करें.”
सम्मेलन में हिस्सा लेने वाले पश्चिम बंगाल पुलिस के खुफिया विभाग के आईजी अजय रानाडे कहते हैं, "इस अपराध के बदलते स्वरूप ने जांचकर्ताओं को भी नई रणनीति पर विचार करने पर मजबूर कर दिया है. इस अपराध का दायरा लगातार बढ़ रहा है और यह दुनिया के कई देशों में फैल गया है. इससे निपटने के लिए नई तकनीक जरूरी है.” यूनिसेफ के साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ नीतीश चंदन ने बताया, "बाल तस्कर कानून पकड़ से बचने के लिए फर्जी आईडी और इनक्रिप्टेड नेटवर्क का इस्तेमाल कर रहे हैं. इसके अलावा वह तमाम सूचनाएं हार्डडिस्क की बजाय क्लाउड में रख रहे हैं.”
वाशिंगटन डीसी पुलिस के पूर्व अधिकारी व वरिष्ठ आपराधिक विश्लेषक एस्तेवाए यिगजा का कहना था, "सोशल नेटवर्क पर फोटो की जियो-टैगिंग से तस्करों को बच्चों की लोकेशन का पता चल जाता है. माता-पिता को बच्चों के मोबाइल फोन में लोकेशन सेवा बंद कर देनी चाहिए. इसके अलावा बच्चों की आनलाइन गतिविधियों पर हमेशा निगाह रखनी चाहिए.”
कैसे होगा मुकाबला
चुनौतियों पर आयोजित सत्र में पुलिस, वकील व न्यायपालिका से जुड़े विशेषज्ञों ने इस आपराधिक गतिविधि का मुकाबला करने में पैदा होने वाली मुश्किलों को रेखांकित किया. विशेषज्ञों ने इस मुद्दे से संबंधित कानूनों की खामियों और उनकी वजह से जांच की राह में पैदा होने वाली चुनौतियों, अधिग्रहण, संरक्षण, डिजीटल सबूतों (वित्तीय लेनदेन की ट्रैकिंग समेत) की जांच, साइबर यौनपीड़ितों के मनोवैज्ञानिक पुनर्वास की चुनौतियों, ऑनलाइन उत्पीड़न की सूचना और कानून लागू करने वाली एजेंसियों के लिए जरूरी तकनीकी ज्ञान पर विस्तार से चर्चा की.
सम्मेलन के अंतिम दिन आयोजित सत्र में इस संभावना पर चर्चा की गई कि कार्पोरेट घराने, डाटा सर्विस प्रोवाइडर, सरकारी आधारभूत ढांचा और नागरिक-सामाजिक संगठन जैसे भागीदार एक साथ मिलकर ऑनलाइन यौन उत्पीड़न को कैसे रोक सकते हैं. विशेषज्ञों ने इस काम में जुटी तमाम एजेंसियों और संस्थाओं के बीच बेहतर तालमेल बनाने और ब्लॉकचेन, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, ड्रोन आदि का इस्तेमाल करने की सलाह दी. डिजीटल उत्पीड़न के खतरे का मुकाबला करने के लिए मौजूदा खामियों को दूर करने में बतौर माध्यम मीडिया की भूमिका (इनवेस्टिगेटिव जर्नलिज्म) और ऑनलाइन यौन अपराध को चिह्नित करने और उन्हें रोकने के लिए अंतर्राष्ट्रीय तालमेल पर भी चर्चा की गई. इसके अलावा संबंधित कानूनों और सरकारी नीतियों में जरूरी संशोधन और समाज में इस मुद्दे पर जागरुकता फैलाने की जरूरत पर भी बल दिया गया.