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बिहार में क्यों टूटे पार्टियों के गठबंधन

मनीष कुमार, पटना
६ अक्टूबर २०२०

बिहार पिछले कई सालों से गठबंधन की राजनीति का बेहतर प्रयोग स्थल साबित हुआ है. यहां क्षेत्रीय दल बड़े तो राष्ट्रीय दल छोटे भाई की भूमिका में रहे हैं. इस साल हो रहे चुनावों से पहले गठबंधनों में हलचल दिख रही है.

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Indien | Wahlen | Virtual Campaign | Nitish Kumar
तस्वीर: Manish Kumar

बिहार में 28 अक्टूबर, तीन व सात नवंबर को तीन चरणों में होने वाले विधानसभा चुनाव में एक बार फिर कई पार्टियों के गठबंधन एक-दूसरे के सामने हैं. कुछ ने पुराने साथियों को छोड़ दूसरे का दामन थामा है तो कुछ नए गठबंधन भी अस्तित्व में आए हैं. ऐसा तकरीबन पिछले चुनावों में भी होता रहा है लेकिन इस बार गठबंधन के घटक दल भी एक-दूसरे के खिलाफ ताल ठोंकते नजर आएंगे. दरअसल, इस बार चुनाव के बाद के परिदृश्य पर सियासत की नजर है जिसने चुनाव को कुछ ज्यादा ही दिलचस्प बना दिया है.

राज्य में एक तरफ महागठबंधन में राष्ट्रीय जनता दल (राजद), कांग्रेस व वामपंथी पार्टियां हैं तो दूसरी तरफ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), जनता दल यूनाइटेड (जदयू) व लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) हैं. सत्तारूढ़ एनडीए में जदयू बड़े भाई की भूमिका में है तो महागठबंधन में राजद बड़े भाई की भूमिका निभा रहा है. चुनाव की घोषणा होने के पहले तक महागठबंधन के साथ पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा), पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) व मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी (वीआइपी) थी. किंतु विधानसभा चुनाव के लिए कोर्डिनेशन कमिटी नहीं बनाए जाने के नाम पर हम और रालोसपा महागठबंधन से अलग हो गई. एक भी सीट नहीं दिए जाने के कारण वीआइपी ने भी साथ छोड़ दिया. उपेंद्र कुशवाहा ने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के साथ गठबंधन बना लिया तो मांझी अपने पुराने साथी एनडीए के साथ जा मिले वहीं मुकेश सहनी अपना ठिकाना तलाशने में जुटे हैं.

यह टूट-फूट तो सामान्य थी जो हर बार चुनाव के मौके पर देखने को मिलती है. सबसे अप्रत्याशित तो एनडीए में हुआ. जैसे ही मांझी आए, उन्होंने कहा कि हमारा गठबंधन जदयू से है. उसी तरह लोजपा ने कहा, हम जदयू नहीं भाजपा के साथ हैं. यानी गठबंधन के अंदर गठबंधन. सीटों के बंटवारे पर तो स्थिति ऐसी बिगड़ी कि लोजपा ने एनडीए के साथ रहते हुए जदयू के खिलाफ लड़ने का एलान कर दिया.

Indien Bahir | Virtueller Wahlkampf und Proteste
भाजपा के सुशील मोदी पार्टी की एक सभा मेंतस्वीर: DW/M. Kumar

मणिपुर फार्मूले पर लड़ेगी लोजपा

लोजपा बिहार में भाजपा के साथ तो रहेगी लेकिन गठबंधन में उसके घटक दल जदयू के खिलाफ प्रत्याशी खड़े करेगी. मणिपुर फार्मूला यानि कि जैसे दिल्ली विधानसभा का चुनाव भाजपा-लोजपा ने मिलकर लड़ा, लेकिन झारखंड व मणिपुर में उनमें गठबंधन नहीं था. हालांकि चुनाव परिणाम के बाद भाजपा ने लोजपा के साथ मिलकर मणिपुर में सरकार बनाई. इसी फार्मूले के तहत भाजपा के साथ मिलकर लोजपा चुनाव बाद बिहार में सरकार बनाएगी. संसदीय बोर्ड की बैठक के बाद लोजपा प्रमुख चिराग पासवान ने यह कहकर एनडीए से नाता तोड़ा कि लोजपा बिहार फर्स्ट-बिहारी फर्स्ट के नारे के तहत अपने विजन डाक्यूमेंट के साथ चुनाव मैदान में उतरेगी. उसका गठबंधन भाजपा से है न कि जदयू या हम से. वैचारिक मतभेद के कारण जदयू के साथ चल पाना संभव नहीं है. चुनाव के बाद भाजपा के साथ मिलकर लोजपा सरकार बनाएगी.

बिहार राजनीति के जानकार बताते हैं कि जिस तरह पिछले कुछ दिनों से चिराग सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा होते हुए नीतीश सरकार पर कोरोना के खिलाफ लड़ाई या फिर लॉक डाउन के दौरान मजूदरों की वापसी जैसे मुद्दे पर हमलावर थे, उससे यह आभास हो रहा था कि वे गठबंधन धर्म का निर्वहन अब शायद ही कर पाएंगे. नीतीश को तो वे घेरते रहे किंतु भाजपा पर कभी कुछ नहीं बोला. चिराग ने एनडीए से नाता तोड़ने के दो दिन पहले पीएम मोदी की तस्वीर के साथ एक ट्वीट किया था जिसमें उन्होंने कहा था कि नरेंद्र मोदी के कुशल नेतृत्व पर मुझे गर्व है. नरेंद्र मोदी से प्रेरणा लेकर ही लोजपा ने बिहार के चार लाख लोगों के सुझाव पर बिहार फर्स्ट-बिहारी फर्स्ट विजन डॉक्यूमेंट 2020 तैयार किया है.

Chirag Paswan
लोजपा नेता चिराग पासवानतस्वीर: Imago/Hindustan Times

लोजपा के बहाने जदयू को सबक सिखाने की कोशिश

एनडीए के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं, "भाजपा के शह के बिना चिराग इस कदर एक सोची-समझी रणनीति के तहत हमलावर नहीं हो सकते. कहीं न कहीं भाजपा बड़े भाई की भूमिका में आने के लिए जदयू को सबक सिखाना चाहती है." ऐसा नहीं है कि यह पहली बार हो रहा है. इससे पहले 2005 के चुनाव में कांग्रेस ने तटस्थ रहकर लोजपा के बहाने राजद को सबक सिखाया था ठीक उसी तरह इस बार भाजपा कर रही है. तभी तो जदयू के कार्यकारी अध्यक्ष अशोक चौधरी कहते हैं, "लोकसभा चुनाव के दौरान प्रचार के लिए मुख्यमंत्री को ले गए तब मतभेद नहीं था तो क्या एससी-एसटी समुदाय के व्यक्ति की हत्या पर परिवार के सदस्य को नौकरी दिए जाने पर मतभेद है या फिर दलितों के उत्थान का बजट चालीस गुणा बढ़ाने पर मतभेद है."

जदयू का कहना है, "भाजपा ने मुख्यमंत्री के कार्यों को समझते हुए उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ने की घोषणा की है. उन्हें भाजपा पर पूरा भरोसा है. दरअसल बिहार में दलितों की आबादी 17 प्रतिशत के करीब है और इनमें दुसाध जाति का करीब पांच फीसद वोट है. यही पांच फीसद वोट लोजपा का अपना वोट बैंक है, जो लगभग हर चुनाव में लोजपा के साथ रहा है. पत्रकार एस पांडेय कहते हैं, "लोजपा के अलग होने से जदयू को पांच प्रतिशत वोट का नुकसान उठाना पड़ सकता है. जबकि भाजपा को अपनी सीट पर जदयू व लोजपा, दोनों का ही सहयोग मिलेगा. यह स्थिति भाजपा के लिए तो फायदेमंद हो सकती है किंतु नुकसान तो अंतत: एनडीए को ही पहुंचाएगी." इधर, लोजपा प्रमुख चिराग पासवान ने प्रदेश की जनता के नाम एक पत्र जारी कर खुलेआम नीतीश कुमार को वोट नहीं देने की अपील की है. कहा है, "जदयू के खिलाफ लड़ने का फैसला बिहार पर राज करने नहीं, बल्कि नाज करने के लिए लिया गया है. वे पीएम मोदी के सपनों को साकार करने के लिए बिहार में अकेले चुनाव लड़ रहे हैं. यदि आपने जदयू को वोट दिया तो आपके बच्चे पलायन को मजबूर होंगे."

सभी पार्टियों को घात-प्रतिघात का अंदेशा

महागठबंधन की अगुवाई कर रहे राजद के कर्ता-धर्ता तेजस्वी यादव ने चुनाव के बाद के परिदृश्य का गंभीरता से आकलन किया. तभी तो छोटे दलों की बजाय उन्होंने अपने पुराने साथियों पर भरोसा किया. परिणाम यह हुआ कि रालोसपा व वीआइपी जैसी छोटी पार्टी उनका साथ छोड़ गई. वीआइपी प्रमुख मुकेश सहनी का तो कहना है कि तेजस्वी यादव ने उनके साथ धोखा किया जबकि सबकुछ तय हो चुका था. राजनीतिक विश्लेषक प्रो. वाईके सिंह कहते हैं, "चुनाव बाद विधायकों को तोड़फोड़ से बचाने की रणनीति ने ही वीआइपी व रालोसपा को बाहर का रास्ता दिखाया. एक तो ये दोनों पार्टी बमुश्किल दो अंक का आंकड़ा पातीं और अगर पा भी जातीं तो एनडीए के लिए इन्हें तोड़ना ज्यादा कठिन नहीं होता. इनके विधायक हमेशा सॉफ्ट टारगेट ही बने रहते."

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बिहार में कांग्रेस को बचाने की कोशिशतस्वीर: IANS

शायद यही वजह रही कि राजद ने बड़ा दिल दिखाते हुए अपने पास 144 सीटें रखीं तो कांग्रेस को 70 और वामपंथी दलों को 29 सीटें (माले-19, सीपीआई-6, सीपीएम-4) दे दीं. सीट बंटवारे के बाद तेजस्वी ने कहा भी कि हम ठेठ बिहारी हैं, जो वादा करते हैं उसे निभाते हैं. जबकि कांग्रेस की स्क्रीनिंग कमेटी के अध्यक्ष अविनाश पांडेय का कहना था, "कुछ मुद्दों पर हममें मतांतर हो सकता है, परंतु बिहार को बचाने के मुद्दे पर हम पूरी तरह से एकजुट हैं." राजद ने प्रथम चरण के 32 सीटों पर प्रत्याशी तय कर लिए हैं और सिंबल देना भी शुरू कर दिया है. दिलचस्प यह कि राजद के घोर विरोधी रहे बाहुबली विधायक अनंत सिंह को पार्टी ने मोकामा से अपना उम्मीदवार घोषित किया है. वामदलों ने भी अपने प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं.

जवाहर लाल नेहरू (जेएनयू) विश्वविद्यालय छात्र संघ के पूर्व महासचिव संदीप सौरभ को माले ने पटना के पालीगंज विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया है. कांग्रेस ने भी प्रत्याशी तय कर लिए हैं किंतु घोषणा नहीं की गई है. जदयू द्वारा पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को एनडीए में शामिल कराए जाने व लोजपा के निकल जाने के बाद भाजपा वीआइपी प्रमुख मुकेश सहनी पर डोरे डाल रही है. सूत्रों के अनुसार भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से उनकी मुलाकात हो चुकी है और शायद बात बन भी गई है. वैसे अभी कोई औपचारिक बयान नहीं आया है.

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मुकेश रालोसपा और पप्पू यादव द्वारा बनाए गए गठबंधन प्रगतिशील डेमोक्रेटिक एलायंस (पीडीए) के भी संपर्क में बताए जाते हैं. जानकार बताते हैं कि महागठबंधन में सीट शेयरिंग मामले का आसानी से सुलझ जाने से एक नया समीकरण बनने से पहले ही समाप्त हो गया. अगर कांग्रेस को मनोनुकूल सीट नहीं मिलती तो वह वीआइपी जैसी छोटी पार्टी को लेकर जदयू के साथ जा सकती थी. कांग्रेस को पता था कि चिराग के कारण जदयू असहज चल रही है. यही वजह है कि लोजपा ने जदयू के खिलाफ लड़ने की घोषणा भी देर से की. इधर, जदयू ने भी प्रथम चरण की अपनी 32 सीटों के लिए प्रत्याशियों की घोषणा करते हुए उन्हे सिंबल देना शुरू कर दिया. पार्टी ने जर्नादन मांझी, सुबोध राय व ददन पहलवान को छोड़ सभी सिटिंग एमएलए को टिकट दे दिया है.

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तेजप्रताप और तेजस्वी पर आरोपतस्वीर: DW/M. Kumar

तेजस्वी-तेजप्रताप पर हत्या का मुकदमा

चुनावी रंजिश में आरोप-प्रत्यारोप आम है, किंतु ऐसा संभवत: पहली बार हुआ है जब किसी राजनेता के खिलाफ चुनाव में टिकट के लिए पैसे नहीं दिए जाने पर हत्या का आरोप लगाया गया हो. ऐसा मामला पूर्णिया में सामने आया है जहां खंजाची हाट थाने में राजद के एससी-एसटी प्रकोष्ठ के पूर्व प्रदेश सचिव शक्ति मलिक की हत्या के आरोप में लालू प्रसाद के दोनों बेटों तेजस्वी यादव व तेजप्रताप यादव समेत छह के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है. शक्ति की पत्नी खुशबू ने पुलिस को बताया कि शक्ति रानीगंज (सुरक्षित) सीट से राजद टिकट के दावेदार थे. राजद नेता तेजस्वी यादव और एससी-एसटी प्रकोष्ठ के अध्यक्ष अनिल कुमार उर्फ साधु यादव ने टिकट देने के लिए 50 लाख रुपये मांगे थे. शक्ति ने करीब दस दिन पहले एक वीडियो वायरल कर आरोप लगाया कि राजद में टिकट के लिए पैसे मांगे जाते हैं. उसने राजद नेताओं द्वारा अपनी हत्या की आशंका भी जताई थी.

इस संबंध में पूर्णिया के एसपी विशाल शर्मा ने कहा है कि जरूरत पड़ने पर इस मामले से जुड़े हर व्यक्ति से पूछताछ की जाएगी. वहीं इस हत्याकांड को लेकर प्रदेश की राजनीति गर्म हो गई है. भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा व संजय मयूख ने कहा है कि तेजस्वी-तेजप्रताप इस मामले पर चुप क्यों हैं. राजद को इसका जवाब देना होगा. दलित नेता की पत्नी ने दोनों पर साफ तौर से उगाही के आरोप लगाए हैं. वहीं राजद ने इसे तेजस्वी से डरे हुए लोगों की साजिश करार दिया है. इसे सत्ता पक्ष की साजिश बताते हुए सांसद मनोज झा ने कहा है कि जिस नंबर से पैसा मांगने का आरोप है वह चार साल से बंद है. तेजस्वी के सीएम उम्मीदवार घोषित होने से विपक्ष बौखला गया है.
दो दिन पहले तक एकतरफा दिख रहा चुनावी परिदृश्य काफी हद तक बदल गया है. ऐसी कई सीटें जहां पिछले चुनावों में सीधा मुकाबला था, वहां त्रिकोणात्मक संघर्ष की स्थिति बन जाएगी. यह तो 10 नवंबर को पता चलेगा कि कितनी सीटों पर लोजपा वोटकटवा की भूमिका में रही या फिर कांग्रेस ने एनडीए की राह आसान की. किंतु इतना तय है कि सोशल इंजीनियरिंग के सिद्धहस्त खिलाड़ी नीतीश कुमार ने जिस तरह से राजद, वामदल या फिर लोजपा के वोट बैंक में लगातार सेंधमारी कर अपना जनाधार तेजी से बढ़ाया, वे इतनी आसानी से बाजी अपने हाथ से जाने नहीं देंगे.

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