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बिहार में शुरू हो गई चुनावी नूरा-कुश्ती

मनीष कुमार, पटना
२० अगस्त २०२०

कोविड-19 के खौफ के बीच बिहार में चुनावी गतिविधियां परवान चढ़ रहीं हैं. जहां राजनीतिक पार्टियों ने एक-दूसरे पर पासा फेंकना शुरू कर दिया है वहीं दूसरी तरफ नेता-कार्यकर्ता भी अपना-अपना नफा-नुकसान आंकने में जुट गए हैं.

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Patna, Bihar, Indien
तस्वीर: IANS

चुनाव की सरगर्मियां शुरू होते ही बिहार में पाला बदलने का खेल शुरू हो गया है. गठबंधन बचाने की चाहत भी है लेकिन साथ ही सीट शेयरिंग को लेकर जिच भी. हर दल स्वयं को अक्टूबर-नवंबर में संभावित विधानसभा चुनाव के लिए तैयार करने में जुट गया है. वर्तमान विधानसभा का कार्यकाल 29 नवंबर को समाप्त हो रहा है. कुछ दिन पहले तक भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और जनता दल यूनाइटेड (जदयू) को छोड़ कर लगभग सभी पार्टियों ने राज्य में विधानसभा चुनाव कराए जाने का विरोध किया था. यहां तक कि सरकार में शामिल लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) ने भी. जन अधिकार पार्टी (जाप) के मुखिया पप्पू यादव ने तो चुनाव रोकने के लिए हाईकोर्ट की शरण लेने की घोषणा कर दी थी. ये सभी कोरोना की आड़ में विरोध तो कर रहे थे लेकिन चुनाव आयोग की गतिविधियों व राज्य सरकार की अति सक्रियता से जैसे ही चुनाव होना मुमकिन लगने लगा वैसे ही सभी पार्टियां चुनावी मोड में आ गईं.

हालांकि लोजपा अभी भी चुनाव टालने की मांग कर रही है. जाहिर है अंदरखाने सब ने अपनी तैयारी शुरू कर दी थी. अमित शाह ने तो सात जून को ही वर्चुअल रैली का आयोजन कर बकायदा चुनाव का बिगुल फूंक दिया था. इनके साथ-साथ जदयू व सरकार के मुखिया नीतीश कुमार ने भी सांगठनिक चर्चा के नाम पर ताबड़तोड़ वर्चुअल बैठकें कीं. महागठबंधन में शामिल दलों को देखें तो बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव भी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) को वर्चुअल मोड में ले आए और अपनी विभिन्न यात्राओं के जरिए वोटरों से कनेक्ट करने की कवायद तेज कर दी. राहुल गांधी ने वर्चुअल बैठक कर कांग्रेस को सक्रिय करने की कोशिश की. महागठबंधन के अन्य घटक विकासशील इंसान पार्टी (वीआइपी), राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) व हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) की गतिविधियां तेज हो गईं हैं.

Indien Bahir | Virtueller Wahlkampf und Proteste
बीजेपी नेता अमित शाहतस्वीर: DW/M. Kumar

पाला बदलने की कवायद हुई तेज

राजनीतिक नुमाइंदों के संवाद की तल्खी बढ़ गई, वहीं दूसरी ओर दलों के अंदर दबाव की राजनीति भी तेज हो गई है. जो जहां है, वहां अपनी जगह सुरक्षित देखना चाह रहा है. इसमें शक-सुबहा होने पर उन्हें उस पार्टी का दामन थामने से भी गुरेज नहीं जिन्हें वह सुबह-शाम कोस रहे थे. इसी कड़ी में भाजपा-जदयू गठबंधन की सरकार ने रविवार को एक मंत्री को बर्खास्त कर पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित कर दिया. ये थे उद्योग मंत्री श्याम रजक, जो कभी लालू प्रसाद के काफी करीबी थे और राजद का दामन छोड़ 2009 में जदयू में शामिल हो गए थे. इन्हें पार्टी में तवज्जो नहीं मिलने की शिकायत थी और पार्टी को नाराजगी थी कि वे आरक्षण के मुद्दे पर यदा-कदा नीतीश सरकार को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश करते रहे थे. चर्चा है कि उद्योग मंत्रालय में एक अधिकारी की नियुक्ति से भी वे नाराज थे. उन्होंने काफी दिनों से दफ्तर आना बंद कर दिया था.

इसी तरह जदयू में जाने की जुगत में लगे अपने तीन विधायकों को राजद ने भी रविवार को बाहर का रास्ता दिखा दिया. ये तीनों हैं, महेश्वर प्रसाद यादव, प्रेमा चौधरी व फराज फातमी. इन सबों पर पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त रहने का आरोप लगाया गया है. जदयू से निकाले गए व सरकार से बर्खास्त किए श्याम रजक राजद में तथा राजद से निकाले गए महेश्वर प्रसाद यादव व प्रेमा चौधरी जदयू में सोमवार को शामिल हो गए. फराज फातमी को भी जदयू में शामिल होना था लेकिन उन्होंने जनता से मशविरा करने के बाद शामिल होने की बात कही. वहीं सोमवार को राजद के एक अन्य विधायक अशोक कुशवाहा भी जदयू में शामिल हुए. कुशवाहा ने स्वयं ही पार्टी छोड़ी थी. कल तक सरकार में मंत्री रहे श्याम रजक ने तो खुद को सामाजिक न्याय का सिपाही बताया और नीतीश सरकार पर तंज कसते हुए कहा, "जब तक यह सरकार रहेगी तब तक पिछड़ों-अतिपिछड़ों व अनुसूचित जाति-जनजाति का भला नहीं हो सकता. आरक्षण की लड़ाई शुरू करते ही सरकार की नजर मुझ पर टेढ़ी हो गई. कोई दिन ऐसा नहीं बीता जब गरीबों-पिछड़ों पर अत्याचार नहीं हुआ."

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आरजेडी नेता तेजस्वी यादवतस्वीर: IANS

चुनाव से पहले ध्रुवीकरण

दरअसल पार्टियों के अंदर भी समीकरण-ध्रुवीकरण का खेल रफ्तार में है. सभी दल उनकी पहचान करने में जुटे हैं जो दुविधा के दरवाजे पर खड़े हैं. सौदेबाजी होते ही वे बाहर वाले का दामन थाम लेते हैं. चर्चा है कि कुछ ऐसा ही हुआ है श्याम रजक के साथ. लालू राज के समय राम (रामकृपाल यादव जो अब भाजपा में हैं) और श्याम (श्याम रजक) की जोड़ी बड़ी मशहूर थी. राजद के शासन काल में श्याम रजक काफी दिनों तक मंत्री रहे और फिर 2009 में वे जदयू में शामिल हो गए. 2010 में नीतीश सरकार में मंत्री बने लेकिन 2015 में उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया किंतु जब राजद का साथ छोड़ जदयू ने एकबार फिर भाजपा से गठबंधन कर सरकार बनाई तो 2019 में कैबिनेट विस्तार के दौरान उन्हें पुन: मंत्री बनाया गया. वे पटना की फुलवारीशरीफ विधानसभा सीट से चुनाव लड़ते रहे हैं. सियासी अंदरखाने में यह चर्चा है कि श्याम रजक से छत्तीस का आंकड़ा रखने वाले जदयू के राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) आरसीपी सिंह ने इस बार अरुण मांझी को फुलवारीशरीफ से चुनाव लड़ने की हरी झंडी दे दी है.

राजनीति के जानकार नीतीश से मोहभंग का तात्कालिक कारण इसे ही बताते हैं. श्याम रजक के जाने पर आरसीपी सिंह कहते हैं, "चुनाव के समय में ऐसा होता है. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता." जबकि जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह कहते हैं, "रजक लगातार पार्टी विरोधी गतिविधियों में संलिप्त रहे हैं इसलिए उन्हें छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया गया." हालांकि श्याम रजक कहते हैं, "99 प्रतिशत मंत्री मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से नाखुश हैं. उनमें कई ने अभी निर्णय नहीं लिया है. कौन कहां जाएगा मैं नहीं जानता, मैं राजद ज्वाइन कर रहा हूं. यहां बड़ी-बड़ी बातें की जातीं हैं, कोई काम नहीं होता. मुझे काम करने से रोका जाता था. मैंने लालू प्रसाद से सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता का पाठ सीखा है. इन दिनों इन दोनों का जदयू में अभाव है." राजद से निकाले गए विधायकों की भी कुछ ऐसी ही कहानी है. ये बात दीगर है कि कोई इसे घर वापसी बता रहा तो कोई नीतीश कुमार को पिछड़ों-दलितों का मसीहा. किंतु इसके पीछे पलायन का असली कारण अपना-अपना गणित व चुनाव जीतने की चिंता ही है.

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पप्पू यादव भी सक्रियातस्वीर: IANS

गठबंधनों में भी जिच

बिहार में एक तरफ सरकार में भाजपा-जदयू-लोजपा का गठबंधन है तो दूसरी तरफ विपक्षी महागठबंधन में राजद-कांग्रेस-हम-रालोसपा-वीआइपी व अन्य शामिल हैं. इन दलों के बीच भी सीट शेयरिंग को लेकर खींचतान जारी है. अधिक से अधिक सीट की ख्वाहिश लिए ये पार्टियां दबाव की रणनीति पर अमल कर रहीं हैं. भाजपा नीत गठबंधन की बात करें तो इसके सभी घटक असहज स्थिति में हैं. 2015 के चुनाव में जदयू राजद के साथ और भाजपा के विरोध में था और अब भाजपा-जदयू साथ-साथ हैं. भाजपा व जदयू के बीच भी उन सीटों पर खींचतान तय है जो उनकी सिटिंग सीट रहीं हैं. इसके लिए किसे कितना बलिदान करना पड़ेगा, इसे तय करना दोनों के लिए आसान नहीं होगा. यही उलझन लोजपा की भी है. शायद यही वजह है कि दबाव बनाने के लिए लोजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान लगातार नीतीश सरकार पर हमलावर रहे हैं. हालांकि वे कहते रहे हैं कि वे जो कुछ भी कहते हैं वह बिहार और सरकार की बेहतरी के लिए.

तल्खी इतनी बढ़ गई कि लोकसभा में जदयू संसदीय दल के नेता राजीव रंजन सिंह ने साफ कह दिया, "ऐसी टिप्पणियों पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ध्यान नहीं देते. वे अपना काम करते हैं." इशारों-इशारों में उन्होंने कह दिया,"अच्छी बात है कि वे विपक्ष की भूमिका निभा रहे हैं. ऐसे लोग भी हैं जो जिस डाल पर बैठते हैं, उसी को काट देते हैं." इस पर चिराग ने ट्वीट कर जवाब दिया, "अगर मेरी बातों को सरकार की आलोचना कहा जा रहा तो मैं इससे सहमत नहीं हूं. मैं किसी को टारगेट नहीं कर रहा." हालांकि चिराग ने इसके बाद भी सरकार की आलोचना की. सोमवार को उन्होंने कहा, "कोरोना जांच में सरकार लोगों की जान से खिलवाड़ कर रही है. कार्यकर्ता इस संबंध में अपने-अपने सिविल सर्जन से बात करें और आमजन को स्थिति से अवगत कराएं." इन बयानों से इतर राजनीति के जानकारों का मानना है कि दरअसल चिराग मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा तवज्जो नहीं दिए जाने से ज्यादा परेशान हैं. सीट की चिंता तो उन्हें अलग सता रही है.

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चिराग पासवान: 'बिहार के लिए चिंतित, चुनावों के लिए नहीं'तस्वीर: IANS

दूसरी तरफ चिराग के बयान पर भाजपा की चुप्पी जदयू को असहज कर रही है. अंदरखाने यह भी चर्चा है कि कहीं भाजपा ही तो चिराग को शह नहीं दे रही. हालांकि भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव व बिहार के प्रभारी भूपेंद्र यादव ने यह कहकर कि नीतीश कुमार ही एनडीए के नेता हैं और उन्हीं के नेतृत्व में 2020 का विधानसभा चुनाव लड़ा जाएगा, इस आशंका को निर्मूल साबित कर दिया कि इन दोनों के बीच भी तो कहीं खटपट नहीं चल रहा. लोजपा ने भी अभी ऐसे कोई संकेत नहीं दिए हैं, हालांकि इसके मुखिया का बदला हुआ सियासी व्यवहार बता रहा कि कहीं न कहीं कुछ तो है.

विपक्ष में भी सब ठीक नहीं
इसी तरह महागठबंधन में तेजस्वी यादव का मौन भी उसके सहयोगियों, कांग्रेस व हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) को ज्यादा परेशान कर रहा है. सीट शेयरिंग के मुद्दे पर समन्वय समिति की मांग कर रहे पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी तो अपनी अनदेखी से इस कदर नाराज हुए कि उन्होंने नीतीश कुमार का गुणगान शुरू कर दिया. 20 अगस्त को उन्होंने अपनी पार्टी की कोर कमेटी की बैठक बुलाई है. कहा जा रहा है कि मांझी जल्द ही जदयू में शामिल हो जाएंगे. श्याम रजक के राजद में शामिल होने पर हम ने जो प्रतिक्रिया व्यक्त की है उससे भी प्रतीत होता है कि उनकी जदयू के साथ खिचड़ी पक रही है.

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कांग्रेस भी लगी बैठकों मेंतस्वीर: IANS

इधर, अपनी यात्रा में मगन तेजस्वी यादव कांग्रेस के नेताओं से भी मुलाकात से परहेज कर रहे हैं. पार्टी के बिहार प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल बिहार दौरे पर सीटों के बंटवारे पर चर्चा के लिए आए थे किंतु राजद के साथ मुद्दा सुलझाए बिना वे भी लौट गए. 24 जून को सोनिया गांधी के साथ हुई बैठक से भी तेजस्वी उदासीन ही रहे थे. उनके प्रतिनिधि के तौर पर पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता मनोज झा ने बैठक में शिरकत की थी. रालोसपा, वीआइपी व वामपंथी दलों से भी महागठबंधन में किसी फोरम पर चर्चा न होने से घटक दलों की बेचैनी बढ़ती जा रही है. जानकार बताते हैं कि तेजस्वी के इस व्यवहार का राज भी उस दबाव को टालने की कवायद का हिस्सा है जिसके तहत घटक दल उनसे ज्यादा सीटों की मांग न कर दें. तेजस्वी को पता है कि उनका माय समीकरण उनके लिए पर्याप्त है. अपनी यात्राओं में भी तेजस्वी अपने पिता लालू प्रसाद के सामाजिक न्याय व धर्मरिपेक्षता की ही चर्चा करते हैं और कोरोना व बाढ़ से निपटने के तरीके पर नीतीश कुमार पर जमकर निशाना साधते हैं.
वाकई, चुनाव का वक्त है तो सत्तापक्ष अपनी प्रशंसा के गीत गाएगा और विपक्ष नुक्ताचीनी कर उनकी खामियों को उजागर करने की भरसक कोशिश करेगा. विकास का मुद्दा हावी होगा या परंपरागत जात-पात का, यह तो समय बताएगा. किंतु इतना तो तय है कि चुनाव से पहले घात-प्रतिघात, दावों-प्रतिदावों का दौर चलेगा जिससे प्रतिबद्धता व मर्यादा की धज्जियां उड़ेंगीं. वैसे भी लोकतंत्र में आखिर में चुनावी जीत ही मायने रखती है, कुछ और नहीं.

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