बीफ भी खाते थे सिंधु घाटी सभ्यता के लोग
१० दिसम्बर २०२०नए अध्ययन के नतीजे 'जर्नल ऑफ आर्कियोलॉजिकल साइंस' में छपे हैं. इसे अध्ययन का नेतृत्व कैंब्रिज विश्वविद्यालय में पीएचडी स्कॉलर अक्षयेता सूर्यनारायण कर रही थीं. इसके लेखकों में पुणे के डेक्कन कॉलेज के पूर्व उप-कुलपति और जाने-माने पुरातत्वविद प्रोफेसर वसंत शिंडे और बीएचयू के प्रोफेसर रविंद्र एन सिंह भी शामिल हैं.
अध्ययन के लिए हरियाणा और उत्तर प्रदेश में हड़प्पा से जुड़े स्थलों पर मिले मिट्टी के बर्तनों में वसा के अवशेषों का विश्लेषण किया गया. विश्लेषण में सूअरों, गाय-बैलों, भैंसों, भेंड़-बकरियों जैसे पशु उत्पाद और डेरी उत्पादों के अवशेष मिले. अध्ययन के अनुसार अवशेषों में पालतू जानवरों में से 50 से 60 प्रतिशत हड्डियां गाय, बैलों और भैंसों की मिली हैं और केवल 10 प्रतिशत हड्डियां भेड़ों और बकरियों की थीं.
उनके अनुसार यह इस बात का संकेत है कि सिंधु घाटी की सभ्यताओं में सांस्कृतिक तौर पर भोजन में बीफ खाने में पसंद की वस्तु रही होगी. हड़प्पा में 90 प्रतिशत गाय-बैलों को तीन, साढ़े तीन साल तक की उम्र तक जिन्दा रखा जाता था. मादा पशुओं को डेरी उत्पादन के लिए इस्तेमाल किया जाता था और नर पशुओं को सामान खींचने के लिए.
कई स्थानों पर बर्तनों में कम मात्रा में हिरन, खरगोश, पक्षी और जलचरों के भी अवशेष मिले हैं. कुछ विशेष किस्म के मर्तबानों की समीक्षा में वाइन और तेल के भंडारण के भी संकेत मिले हैं. सिंधु घाटी सभ्यता आधुनिक पाकिस्तान, उत्तर-पश्चिमी और पश्चिमी भारत अफगानिस्तान में फैली हुई थी.
इस अध्ययन में पांच गांवों और दो कस्बों पर ध्यान केंद्रित किया गया है. गांवों में आलमगीरपुर (मेरठ, उत्तर प्रदेश), मसूदपुर (हिसार, हरियाणा) में दो गांव, लोहारी राघो (हिसार) और खनक (भिवानी, हरियाणा) शामिल हैं. कस्बों में फरमाना (जिला रोहतक, हरियाणा) और राखीगढ़ी (हिसार) शामिल हैं.
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