बीमारियों को बुलाता स्मार्टफोन
१७ अक्टूबर २०१३मोबाइल बनाने वाली कंपनी नोकिया के एक शोध के मुताबिक, 20 से 45 साल की उम्र वाले ज्यादातर लोग पूरे दिन में कम से कम डेढ़ सौ बार मोबाइल पर बात करते हैं. ऐसे लोग औसतन हर साढ़े छह मिनट पर अपने मोबाइल पर मेल और मैसेज चेक करते हैं. मोबाइल युवा तबके के जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गया है. इस दीवानगी की वजह से स्वास्थ्य संबंधी खतरे लगातार बढ़ रहे हैं. मोबाइल के नशे के शिकार व्यक्ति को इसका अहसास नहीं हो रहा है. कोलकाता के एक बड़े अस्पताल में कान, नाक और गले (ईएनटी) के विशेषज्ञ डा. जीवन दत्ता बताते हैं, "मोबाइल पर लगातार बात करने की वजह से आवाज की नली प्रभावित होती है. उसे आराम नहीं मिल पाता. इसके अलावा लगातार कान में ईयरफोन लगाए रखने की वजह से कम उम्र के युवकों में बहरेपन के मामले बढ़ रहे हैं." उनके पास रोजाना कम से कम 10 ऐसे युवा आते हैं जो ऊंचा सुनने की बीमारी से पीड़ित हैं. डा. दत्त उनको इलाज शुरू करने से पहले ईयरफोन का इस्तेमाल बंद करने की सलाह देते हैं.
नेत्र रोग विशेषज्ञ डा.देवेन्द्र ठाकुर बताते हैं, "स्मार्टफोनों के बढ़ते इस्तेमाल और लगातार इस पर नजरें गड़ाए रखने की वजह से लोगों को कम उम्र में ही आंखों की बीमारियां हो रही हैं. इनमें क्रॉनिक आई सिन्ड्रोम प्रमुख है." वह कहते हैं कि युवाओं में इसकी इतनी बुरी लत लग गई है कि कई लोग रात में अक्सर बिस्तर से उठ कर मोबाइल चेक करने लगते हैं. इससे उनकी नींद पूरी नहीं होती और आंखों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.
बढ़ते उपभोक्ता
एक ताजा अध्ययन के मुताबिक, 16 से 18 साल की उम्र के ऐसे युवाओं संख्या पिछले साल के मुकाबले चार गुने से भी ज्यादा बढ़ी है और यह 5 से बढ़ कर 22 फीसदी तक पहुंच गया है. उनमें से 23 फीसदी लोग स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते हैं. छोटे शहरों में भी ऐसे फोन का इस्तेमाल करने वालों की तादाद दोगुने से ज्यादा बढ़ी है. भारत स्मार्टफोन का दुनिया का तीसरा सबसे तेजी से बढ़ता बाजार है. इस समय शहरी इलाकों में पांच करोड़ से ज्यादा लोग स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते हैं. पिछले साल यह तादाद महज 2.7 करोड़ थी. यानी महज एक साल के भीतर इसमें 89 फीसदी की वृद्धि हुई है.
सामाजिक समस्या
स्मार्टफोनों की बढ़ती लत युवा तबके को समाज और आसपास के माहौल से काट देती है. इससे उनमें एकाकीपन और अवसाद बढ़ रहा है. इसके अलावा फोन में डूबे होने की वजह से अब सड़क हादसे आम हो गए हैं. सूचना तकनीक के क्षेत्र में काम करने वाली रोशनी बताती है, "मैं अपने नए आईफोन के बिना रोजमर्रा के जीवन की कल्पना तक नहीं कर सकती." उसकी सुबह अपने फोन पर मेल और मैसेज चेक करने से शुरू होती है और दिन उसी से खत्म होता है. बीच में दफ्तर आने-जाने के दौरान भी वह उसी से चिपकी रहती है.
एक मनोचिकित्सक प्रोफेसर जीवानंद गोस्वामी कहते हैं, "स्मार्टफोनों की वजह से युवा पीढ़ी अपने घर-परिवार से कट रही है. यह उनमें अवसाद के घर करने की प्रमुख वजह है. ऐसे लोग अपने आसपास के माहौल से बिल्कुल बेखबर हो जाते हैं." सामाजिक कार्यकर्ता मनोज बर्मन कहते हैं, "स्मार्टफोनों में चैटिंग की सुविधा वाले ऐप ने माहौल और बिगाड़ दिया है. आप ऐसे फोनों में सिनेमा से लेकर वीडियो और क्रिकेट मैच तक देख सकते हैं. इससे आंखों और कान की बीमारियां भी बढ़ रही हैं." वह कहते हैं कि इन फोनों के सस्ते होने और इनमें तमाम सुविधाएं होने की वजह से युवा वर्ग में इनके प्रति दीवानगी तेजी से बढ़ रही है. स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि इन बीमारियों के दूरगामी असर से बचने के लिए स्मार्टफोन के इस्तेमाल के समय में कटौती करनी चाहिए. लोगों को बेडरूम में फोन लेकर नहीं जाना चाहिए, ताकि नींद पूरी हो सके. लेकिन अपने फोन में डूबे युवा तबके को डाक्टरों की सलाह पर ध्यान देने की फुर्सत ही कहां है!
रिपोर्ट: प्रभाकर, कोलकाता
संपादन: निखिल रंजन