60 लड़कियां चंगुल से भागी
८ जुलाई २०१४नाइजीरिया की सेना ने बोको हराम के लड़ाकों के खिलाफ अभियान छेड़ा हुआ है. प्रीमियम टाइम्स अखबार ने लिखा है कि दाम्बोआ में सरकारी सेना से संघर्ष के लिए जैसे ही लड़ाके गए, ये महिलाएं वहां से भाग निकलीं. उन्होंने लिखा है, "हमारे पास विस्तृत जानकारी नहीं है, लेकिन हमें लगता है कि उन्हें ईश्वर ने तब भागने का मौका दिया जब लड़ाके बड़ी संख्या में दाम्बोआ हमले के लिए आए."
इस्लामी कट्टरपंथी संगठन बोको हराम ने नाइजीरिया के पूर्वोत्तर में लगभग सारे गांवों पर हमला किया है और बहुत सारे लोगों को मारा है. दो महीने पहले संगठन के आतंकवादियों ने 300 स्कूली बच्चियों को अगवा कर लिया था, जिनका अब तक पता नहीं चला है..
बर्बरता
बोको हराम के हमलों से बचने के लिए इलाके के लोग घरबार छोड़कर भाग गए हैं. अबूजा के पास कस्बे में पूर्वोत्तर से भागा एक किसान कहता है, "यह बिना किसी कायदे कानून के लोग हैं. सब इनसे डरते हैं, इसलिए मैं वहां से भाग निकला." यह आदमी ईसाई है. उसके परिवार में बाकी सारे लोग मुसलमान हैं. कई दशकों तक बिना किसी परेशानी के वह अपने गांव में रहा लेकिन बोको हराम के आतंकवादियों ने ईसाइयों पर निशाना साधना शुरू किया. किसान बताता है, "कई लोग बोको हराम के साथ मिल जाते हैं क्योंकि उन्हें डर है कि वह मार दिए जाएंगे. मैंने अपने भाई को दोबारा कभी नहीं देखा, जब से वह उनके गुट में शामिल हुआ."
नाइजीरिया में ईसाई ही नहीं, बाकी धर्मों के लोग भी परेशान हैं. 2009 से 5,000 से ज्यादा लोग बोको हराम का निशाना बने हैं. इनमें से ज्यादातर मुस्लिम हैं. पत्रकार और दो बच्चों की मां हफसत मैना मुहम्मद कहती हैं, "इनका धर्म से कोई वास्ता नहीं, ये सिर्फ बर्बर हैं." दो साल पहले इन्हें बोर्नो छोड़ना पड़ा. बोको हराम के हमले में उनकी जान पर बन आई थी. अब वह अबूजा से तीन घंटे दूर कदूना नाम के शहर में रहती हैं. आए दिन उनके रिश्तेदार पूर्वोत्तर से उनके पास शरण लेने आते हैं.
दो लाख से ज्यादा लोग
नाइजीरिया में दो लाख से ज्यादा लोग पूर्वोत्तर के माइदूगुरी शहर से पलायन कर रहे हैं. इनमें से 60,000 लोग कैमरून, चैड और नाइजर की तरफ भाग गए हैं. इनके लिए मदद की कोई गुंजाइश नहीं है. इनका जीवन कब सामान्य होगा, इसका किसी को पता नहीं. सरकार और बोको हराम के बीच कोई बात नहीं हुई है और नाइजीरिया की सेना को बोको हराम से लड़ने में अब तक कोई सफलता हासिल नहीं हुई है.
इस बीच हफसत मैना कदूना में एक नया जीवन शुरू करना चाहती हैं और ईसाई और मुसलमानों के बीच बातचीत की पहल करना चाहती हैं, लेकिन बोर्नो में उनका परिवार और उनका अतीत उनका पीछा नहीं छोड़ता. "मेरा दिल टूट गया है. मेरी बहन के बेटे को बोको हराम के लड़ाके ले गए और क्योंकि वह उनके साथ नहीं लड़ना चाहता था, उन्होंने उसकी जान ले ली. आप ऐसी बात भूल नहीं सकते." अबूजा का बूढ़ा किसान हर रोज अपने गांव में लोगों की हालत के बारे में सोचता है. वापस जाने के सपने उसने अब भी अपने दिल में संजोकर रखे हैं.
रिपोर्टः आड्रियान क्रीश/एमजी
संपादनः आभा मोंढे