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ब्रेक्जिट का बवंडर क्या गुजर चुका है?

स्वाति बक्शी
१ जनवरी २०२१

ब्रिटेन-ईयू संबंधों के बदलते परिदृश्य और ब्रिटेन की भूमिका को लेकर सवालों की फेहरिस्त लंबी है और सटीक जवाब किसी के पास नहीं. अहम सवाल यही है कि 2016 में जनमत संग्रह के साथ शुरू हुआ ब्रेक्जिट का बवंडर क्या गुजर चुका है?

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London | Brexit Anhänger Protest
तस्वीर: Daniel Leal-Olivas/AFP/Getty Images

कोविड महामारी से पैदा हुए अभूतपूर्व संकट के बीच आखिरी लम्हों में हुए ब्रेक्जिट के लिए कारोबारी समझौते के साथ ब्रिटेन ने खुद को यूरोपीय संघ से अलग तो कर लिया लेकिन इस आजादी की सामाजिक और आर्थिक कीमत देश के लिए बहुत बड़ा मसला है. व्यापार और आर्थिक सहयोग समझौते से ‘नो डील ब्रेक्जिट' का खतरा टाल दिया गया लेकिन बहुत से सवालों के जवाब अभी ढूंढे जा रहे है और यह सिलसिला जारी रहेगा.  

क्या पूरा हुआ ब्रेक्जिट ?

औपचारिक तौर पर ब्रिटेन ने 31 जनवरी 2020 को ईयू से विदा ले ली थी. व्यापार समझौते के लिए 11 महीने का वक्त रखा गया जिसकी समय सीमा यानी 31 दिसंबर से पहले समझौते को अंजाम तक पहुंचा ही दिया गया. सैद्धांतिक तौर पर ब्रिटेन की ईयू से विदाई हो चुकी है लेकिन ये दरअसल कई और समझौतों, सहमतियों और बहसों की लंबी प्रक्रिया की शुरूआत भर है.

उदाहरण के लिए मौजूदा समझौते के तहत ब्रिटेन और ईयू के बीच फिशिंग यानी मछली पकड़ने के मुद्दे पर बनी सहमति पर साढ़े पांच साल के भीतर पुनर्विचार होगा. इसी तरह समझौते में टैरिफ यानी सीमा शुल्क और कोटे की सीमाएं बांधे बिना वस्तुओं के व्यापार की बात कही गई है लेकिन सीमा-शुल्क से इतर अब ब्रिटेन और ईयू के बीच व्यापार में नए सीमा सुरक्षा नियम और कस्टम डिक्लेरेशन जैसी प्रक्रियाएं जुड़ जाएंगी. इसके बारे में भी बातचीत और सहमतियां बनाने का काम अब शुरू होगा.

Standbild Dokumentation | KW1 | Brexit Bittersüß
तस्वीर: DW

समझौते में सेवाओं के व्यापार खासकर वित्तीय सेवाओं से संबंधित किसी सहमति का जिक्र नहीं है. उस पर यूरोपिय संघ की तरफ से फैसले का इंतजार है लेकिन अनुमान यही है कि ब्रिटेन में वित्तीय सेवाओं के निर्यात पर भी नकारात्मक असर पड़ सकता है. कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि ब्रिटेन के लिए ब्रेक्जिट का मतलब सिर्फ यूरोपीय यूनियन के नियमों से बाहर निकलना नहीं है बल्कि उन सब राजनैतिक दावों और नारों को अमली जामा पहनाना है जिनकी वकालत बोरिस जॉनसन करते आ रहे हैं. ये प्रक्रिया लंबी है और इसके तनावपूर्ण होने की पूरी गुंजाइश है.

आर्थिक परिदृश्य

ब्रिटिश प्रधानमंत्री भले ही ब्रेक्जिट को ब्रिटेन के लिए अपना भाग्य विधाता बनने का सुनहरा मौका बता रहे हों लेकिन ब्रेक्जिट पर नजर रखने वाले जानकारों के ख्याल इससे अलग हैं. लंदन स्थित स्कूल ऑफ ओरिएंटल ऐंड अफ्रीकन स्टडीज में अंतरराष्ट्रीय मामलों के प्रोफेसर सुबीर सिन्हा कहते हैं कि "मेरे लिए यह कहना बहुत मुश्किल है कि यह किसी भी तरह से ब्रिटेन के लिए फायदे का सौदा है. अगर यह मान भी लिया जाए कि वैश्विक स्तर पर नए व्यापारिक समझौतों और नए संबंधों की गुंजाइश है तब भी अपने पड़ोस में मौजूद एकीकृत बड़े बाज़ार से जुड़े फायदों को दरकिनार कर सैकड़ों मील दूर स्थित देशों में बेहतर संभावनाएं तलाश लेने के दावे बहुत ज्यादा भरोसा नहीं जगाते. क्या उसमें बंधन और अलग किस्म की कीमतें शामिल नहीं होंगी?”

UK Premier Boris Johnson
तस्वीर: Pippa Fowles/Xinhua/imago images

जाहिर है कि कोविड से पैदा हुई भयंकर मुश्किलों के बीच अब आगे आने वाला वक्त आर्थिक मोर्चे पर ब्रिटेन के लिए बड़ी चुनौतियां लेकर आएगा. फिलहाल बिना सीमा-शुल्क और बिना कोटे के व्यापार चलते रहने की सहमति को बड़ी जीत कहा जा रहा है. हालांकि तस्वीर का दूसरा पहलू यह भी है कि ईयू का सदस्य ना रहने के बाद, नॉन-टैरिफ या सीमा-शुल्क से इतर, व्यापारिक संबंधों के लिए जरूरी कायदे-कानून जैसे गुणवत्ता प्रमाणपत्र, पैकेजिंग के तरीके और उन पर की जाने वाली घोषणाएं कुछ ऐसे मसले हैं जो ऊपरी तौर पर नजर ना आ रहे हों लेकिन व्यापार के लिए महंगा सौदा बन सकते हैं.

ब्रिटेन-ईयू संबंधों पर शोध करने वाले संस्थान- यूके इन द चेंजिंग यूरोप के निदेशक और लंदन के किंग्स कॉलेज में प्रोफेसर आनंद मेनन कहते हैं, "आने वाले वक्त में ब्रिटेन-ईयू व्यापार में सीमा-शुल्क के बजाए नॉन-टैरिफ बैरियर जैसे व्यापार के लिए तय कानूनी जरूरतें, सीमाओं पर जांच और कागजी काम में बढ़ोत्तरी होगी. हालांकि बिना समझौते वाले ब्रेक्जिट की तुलना में ये वृध्दि कम होगी लेकिन इसका सीधा अर्थ है लागत में इजाफा और महंगा व्यापार क्योंकि ब्रिटेन ईयू के एकल बाजार नियमों से बाहर निकलकर एक बाहरी देश के तौर पर व्यापार करेगा.

इस पर राजनैतिक बहस भले ही ना हो रही हो लेकिन यह बदलाव ब्रिटेन के लिए बहुत गंभीर स्थितियां पैदा कर सकते हैं”. इस स्थिति का एक दूसरा पहलू यह भी होगा कि आगे अगर ईयू एकल बाजार में व्यापार के लिए नॉन-टैरिफ नियमों को कम करने की दिशा में कदम उठाता है तो ब्रिटेन को उसका कोई फायदा नहीं होगा. कुल मिलाकर यह ब्रिटेन के व्यापारिक वातावरण को प्रभावित करेगा जिसका असर तुरंत भले ही सामने ना हो लेकिन नतीजे दीर्घकालिक होंगे.

प्रवासन

यूरोपीय संघ के सदस्य देशों से प्रवासी नागरिकों का बेरोक-टोक आना, ब्रेक्जिट की पूरी प्रक्रिया के दौरान सबसे विवादास्पद मसला रहा है जिसने ब्रिटिश समाज में दरारों को गहरा किया. कोरोना वायरस के चलते अंतरराष्ट्रीय आवागमन आम तौर पर प्रभावित है इसलिए फिलहाल निश्चित तौर पर ये कहना मुश्किल है कि ब्रिटेन में ईयू नागरिकों के प्रवासन की प्रक्रिया पर ब्रेक्जिट का कितना असर होगा लेकिन कुछ अनुमान लगाए जा रहे हैं.

1 जनवरी 2021 से बदली परिस्थितियों के मुताबिक अब ब्रिटेन में पॉइंट आधारित वीजा व्यवस्था लागू हो चुकी है यानी ईयू और गैर-ईयू नागिरक समान हैं और ईयू नागरिकों को काम करने के लिए वीजा लेना होगा. राजनैतिक बयानों में कहा जाता रहा है कि नए आवागमन और काम करने के अधिकार में आए इन बदलावों को देखते हुए कुशल कामगारों की उपलब्धता को लेकर आशंका बनी हुई है. कुशल कामगारों की संख्या आने वाली कमी का गहरा संबंध उत्पादकता और जीडीपी पर पड़ने वाले असर से है.

Frankreich Boulogne sur Mer | Britische Fischer
तस्वीर: Bernd Riegert/DW

एक खास बात ये भी है कि ‘कुशल कामगार' की परिभाषा अस्पष्ट है और आम तौर पर इसका अर्थ विज्ञान, तकनीक, इंजीनियरिंग और गणित या ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था से जुड़े पेशेवरों से लगाया जाता है. हालांकि इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि खेती बाड़ी खासकर फसल कटाई के मौसम में काम के लिए आने वाले अनुभवी और कुशल यूरोपीय प्रवासियों की कमी भी बड़ा मुद्दा है.

कोविड के चलते आवागमन ठप हो जाने से साल 2020 में ही प्रवासियों का आना मुश्किल हो गया और अब ब्रेक्जिट के बाद आने वाले वक्त में वीजा की जरूरत और उस पर होने वाला खर्च जुड़ जाने से फसल कटाई के अगले मौसम में अनुभवी कृषि कामगारों की जरूरत को घरेलू स्तर पर पूरा करने का सपना दरअसल अपने आप में एक चुनौती है. मीडिया में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक ब्रिटेन के राष्ट्रीय किसान यूनियन के आंकड़े बताते हैं कि साल 2020 में, मौसमी कृषि कामगारों की कुल संख्या का महज 11 फीसदी ही ब्रिटेन के रहने वाले थे.

 प्रोफेसर सुबीर सिन्हा कहते हैं कि "ब्रिटेन में ऐस्पैरेगस या स्ट्रॉबेरी जैसे नर्म फलों की खेती दशकों से यूरोपीय कृषि कामगारों पर टिकी है. इसे एक झटके में बदल कर घरेलू कामगारो को खोजने की बात करना बेमानी है क्योंकि ये अपने आप में एक कौशल है जो सालों के अनुभव पर आधारित है. अब एकदम से ये उम्मीद करना कि किसी ब्रिटिश कामगार को औजार देकर ये काम करवा लिया जाएगा, नासमझी है.”

खेती-किसानी ब्रिटेन के खानपान उद्योग का आधार है जो करीब 40 लाख लोगों को रोजगार मुहैया कराता है और अर्थव्यवस्था में 120 बिलियन से ज्यादा का योगदान देता है. कामगारों की कमी की समस्या कृषि क्षेत्र के लिए और भी गंभीर तब हो जाती है जब इसे कोविड महामारी की वजह से पैदा हुई रुकावटों और व्यापार के लिए आगे आने वाली नए नियमों जैसे निर्यात के लिए सीमाओं पर अतिरिक्त चेक और कागजात की जरूरतों से मिलाकर देखकर जाए. यह पूरा परिदृश्य अनिश्चितता की स्थिति पैदा करता है जिसके बारे में ब्रिटेन का राष्ट्रीय किसान यूनियन आवाज उठाता रहा है.

Frankreich, Coquelles I Denkmal für die Erbauer des Eurotunnels
तस्वीर: Bernd Riegert/DW

शिक्षा जगत

यूरोपीय संघ में छात्रों को एक दूसरे देशों में भेजने के लिए ईरास्मस कार्यक्रम से खुद को बाहर रखने और एक नई वैश्विक योजना लाने के फैसले पर शिक्षा जगत से तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली है. ईरास्मस कार्यक्रम को ब्रिटेन और ईयू के बीच सामाजिक-सांस्कृतिक संबंधों का एक अहम जरिया माना जाता रहा है. इस फैसले ने बरसों से चल रहे उस सिलसिले को तोड़ दिया है.

ईरास्मस से छात्रों को एक दूसरे के विश्वविद्यालयों में जीवन भर काम आने वाले ना सिर्फ अकादमिक हुनर मिले बल्कि यादगार सांस्कृतिक अनुभव और सरहदों के पार दोस्त बनाने के मौके भी मिले जो अब छात्रों को हासिल नहीं होंगे. जर्मन नागरिक एनेट बेकर तकरीबन दो दशक पहले अनुवाद विषय की पढ़ाई कर रही थीं. सितंबर 1998 से मार्च 1999 के अपने ईरास्मस सत्र की पढ़ाई के लिए एनेट एडिनबरा के हेरियट वॉट विश्विद्यालय की छात्रा रहीं. वो कहती हैं कि " मेरे लिए वो वक्त जिंदगी के बेहतरीन अनुभवों में से है. अपने साथियों से हर दिन अंग्रेजी में बात करने की वजह से मेरी भाषा और शब्दज्ञान बहुत समृध्द हुए. मुझे वाकई में लगता है कि उस एक सत्र ने जर्मन से अंग्रेजी भाषा में मेरे अनुवाद कौशल को बहुत तराशा और यह मेरी खासियत बन गई. आम तौर पर लोग विदेशी भाषा से अपनी भाषा में अनुवाद का हुनर सीखते हैं. सिर्फ भाषा पर पकड़ नहीं, मुझे लोगों और संस्कृति को करीब से जानने का भी मौका मिला.”

ना सिर्फ छात्रों के यादगार अनुभव इससे जुड़े हैं बल्कि अलग अलग परिवेश से जाने वाले छात्र अध्यापकों के लिए भी नए नजरिए से दो चार होने की वजह बनते रहे. ब्रिटेन के वेस्टमिंस्टर विश्वविद्यालय में सामाजिक अध्ययन विभाग के प्रमुख, प्रोफेसर दिब्येश आनंद कहते हैं, "मेरे पिछले कई सालों के अध्यापकीय जीवन के दौरान, सीखने की इच्छा से भरपूर और बेहद तत्पर स्नातक छात्र वो रहे हैं जो ईरास्मस के जरिए आने वाले छात्र थे. ब्रिटेन का शिक्षा जगत उनकी गैर-मौजूदगी को महसूस करेगा.”

ईरास्मस की जगह एक नई योजना आ भी जाए तो सरहदों के पार एक दूसरे देश में होने मिलने वाले सांस्कृतिक अनुभवों की भरपाई तो नहीं कर सकती. ईरास्मस दरअसल ब्रिटेन और ईयू के चार दशक से भी ज्यादा समय में प्रगाढ़ हुए सामाजिक-सांस्कृतिक संबंधों का एक प्रतीक था, सामान और सेवाओं के व्यापार से आगे भावनाओं, विचारों और लोगों के आदान-प्रदान का जरिया जिसके ना होने से पड़ने वाले असर को जीडीपी के नंबरों और उस पर पड़ने वाले असर से नापा नहीं जा सकेगा.

ब्रेक्जिट के बाद ब्रिटेन के सामने बहुआयामी चुनौतियों की ये बहुत छोटी सी झलकी है. कोरोना से जूझ रही अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के अलावा ब्रेक्जिट को औपचारिक तौर पर निभाने वाले कंजर्वेटिव राजनैतिक नेतृत्व को  उसे हकीकत में बदलने के लिए बहुत ठोस काम करके दिखाना होगा. ब्रेक्जिट के दौरान उपजे तनाव और बंटे हुए देश के लिए, घरेलू और वैश्विक स्तर पर नये सिरे से अपनी भूमिका तलाशने का दबाव है.

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