ब्लॉगरों की टोली में शामिल होते टीचर
१ मई २०१३वे अपने को योखेन इंगलिश कहते हैं या फ्राउ इला. कोई अपने को मिस संकट कहता है तो कोई मिसेज फ्राइडे. ब्लॉगस्फेयर के ये सब नाम स्कूलों में पढ़ाने वाले टीचर हैं और अपने ब्लॉग में स्कूल में हर दिन घटने वाली खट्टी मीठी घटनाओं के बारे में लिखते हैं. उनके लेखों में टीचरों के रोजनामचे की झलक होती है, मुश्किल विद्यार्थियों की कहानी होती है, नीचा दिखाते सहकर्मियों और जरूरत से ज्यादा दखल देते अभिभावकों के सामने असहाय दिखते टीचरों की व्यथा होती है. इंटरनेट पर सक्रिय टीचरों में सिर्फ युवा इंटरनेट फ्रीक ही नहीं हैं, बल्कि बुजुर्ग शिक्षक भी हैं जिन्होंने इंटरनेट को अपनी निराशा को शब्द देने का साधन बना लिया है.
यह इस बीच एक विपरीत आंदोलन जैसा बन गया है. आधुनिक तकनीकों को आम तौर पर युवाओं की तकनीक समझा जाता रहा है. लंबे समय तक जर्मनी में शिक्षकों की छवि बहुत अच्छी नहीं थी. बहुत से स्कूल आधे दिन वाले हैं, इसलिए लोग समझते हैं कि टीचरों का काम ज्यादा मुश्किल नहीं. बदलते समाज में शिक्षकों को बच्चों की परवरिश की वह जिम्मेदारियां भी लेनी पड़ रही हैं, जो आम तौर पर परिवारों का दायित्व है. इससे बहुत से शिक्षकों को शिकायत है और इसके बारे में भी ब्लॉग में अक्सर लिखा जाता है.
छद्म नामों से ब्लॉग
इस बीच ब्लॉग इतने सफल हो गए हैं कि कुछ को तो हर दिन 1000 से ज्यादा लोग पढ़ते हैं. कुछ लोग तो यह भी कहने लगे हैं कि शिक्षकों के प्रशिक्षण के दौरान उन्हें ब्लॉग लिखने के बारे में सिखाया जाना चाहिए. शिक्षकों के प्रशिक्षण का तीन आधार है, विषय की जानकारी, पढ़ाने की पद्धति और वेव कम्युनिकेशन. मसलन मिस संकट का असली नाम कुछ और है, वे बर्लिन में पढ़ाती हैं और उनके ब्लॉग इतने लोकप्रिय हैं कि बहुत से छात्र उन्हें प्यार से घेटो की दादी कहने लगे हैं.
नाम बताए बिना दिए गए एक इंटरव्यू में वे कहती हैं, "छद्म नाम के सहारे खुल कर लिखा जा सकता है." वे कहती हैं कि दिन भर वे इतनी दिलचस्प बातें देखती हैं, जिसे वे भुलाना नहीं चाहती हैं. "मैं चाहती हूं कि दूसरे इसे पढ़ें. इसके अलावा बहुत सारे लोग समस्या वाले स्कूलों पर बात करते हैं, जबकि उन्हें उनके बारे में कुछ पता नहीं है. मुझे इसके बारे में पता है क्योंकि मैं वहां पढ़ाती हूं." नाम छुपाने से वे हर बार स्कूल के प्रिंसिपल से पूछे बिना अपनी राय व्यक्त कर सकती हैं.
कुछ हफ्ते पहले वे रिटायर हो गईं, लेकिन अपना ब्लॉग वे अभी भी लिख रही हैं. वे रियूनियन बैठकों के बारे में बताती हैं, जिनमें पुराने स्टूडेंट अपनी जिंदगी के बारे में बताते हैं. "मिस संकट, आपने कहा था कि मैं कभी स्कूल पास नहीं कर पाऊंगा, लेकिन मैं कामयाब रहा. यींग ने मेरी ओर देखते हुए कहा था और मैं उससे प्रभावित थी." एक और स्टूडेंट उनके पास आता है और उन्हें कविताओं के बारे में बताने लगता है, जबकि स्कूल के दिनों में वह कभी कविता नहीं पढ़ता था. मिस संकट अवाक हैं.
किताबें भी बाजार में
ऐसी दिल को छू लेने वाली कहानियां हैं, जिसे दूसरे लोग भी पसंद कर रहे हैं. इस बीच इंटरनेट के अलावा स्कूल की दिनचर्या से जुड़ी कहानियों की किताबें भी बाजार में आ गई हैं. बहुत से टीचर अपने साथियों की शिकायत करते हैं कि उन्हें कुछ भी पता नहीं है, तो दूसरे ऐसे अभिभावकों की जो नियमित रूप से मुकदमे की धमकी देते रहते हैं. ब्लॉग लिखने वाले टीचर इस पर भी अपनी राय व्यक्त करते हैं कि जर्मनी में इतने ज्यादा टीचर बर्न आउट का शिकार क्यों हो रहे हैं और पेंशन की उम्र तक काम करने की हालत में क्यों नहीं रहते.
मिस संकट ने भी एक किताब लिखी है. उनकी सहेली मिसेज फ्राइडे ने तो दो किताबें लिख दी हैं. इस बीच दोनों ने मिलकर एक आपराधिक उपन्यास लिखा है जो इस महीने बाजार में आ रहा है. इस उपन्यास में गणित के टीचर अल्टमन की बर्लिन के एक समस्या वाले स्कूल में रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो जाती है. इस समय जर्मन क्लासरूम की कहानियों का ट्रेंड है, जल्द ही दूसरे पेशे के लोग भी इसमें शामिल हो सकते हैं.
रिपोर्ट: आर्मिन हिम्मेलराथ/एमजे
संपादन: निखिल रंजन