बढ़ रहा है काम का तनाव
१३ दिसम्बर २०११रिपोर्ट में कहा गया है, "ओईसीडी के दायरे में आने वाले सभी देशों में पिछले एक दशक में काम को लेकर लोगों में तनाव बढ़ा है और आर्थिक संकट के इस माहौल में लोगों को अपनी नौकरी की चिंता लगी हुई है." रिपोर्ट में कहा गया है कि हर साल 30 से 50 प्रतिशत बीमारियों का कारण शारीरिक नहीं बल्कि मानसिक रोग होते हैं. ओईसीडी ने सलाह दी है कि सरकारें इसे संजीदगी से लें और सामाजिक और आर्थिक मुद्दों का बेहतर रूप से हल निकालें ताकि इनका लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर ना पड़े. साथ ही रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि आने वाले समय में काम को ले कर तनाव और बढेगा.
डिप्रेशन के कारण हर साल दुनिया भर में बहुत से लोगों की जान जाती है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 2020 तक यह दुनिया भर में बीमारियों का दूसरा सबसे बड़ा कारण बन जाएगा. सितम्बर और अक्टूबर में प्रकाशित की गई दो रिपोर्टों में कहा गया है कि करीब चालीस प्रतिशत यूरोपीय मानसिक और तंत्रिका संबंधी रोगों का शिकार हैं. हर साल इन रोगों के इलाज में कम से कम 800 अरब यूरो का खर्चा आता है.
इलाज जरूरी
ओईसीडी का कहना है कि मानसिक रोगों के कारण कई बार लोगों को नौकरियां ढूंढने में परेशानी भी होती है. मानसिक रोग वाले व्यक्ति के बेरोजगार होने की संभावना अन्य लोगों की तुलना में दोगुनी या कई बार तिगुनी भी होती है. ओईसीडी के अनुसार इसे बदलने की जरूरत है, "अधिकतर मानसिक रोगों का इलाज किया जा सकता है और रोजगार के अवसर बढ़ाए जा सकते हैं." रिपोर्ट ने इस बात की शिकायत की है कि अधिकतर देशों में मानसिक रोगों के इलाज को संजीदगी से नहीं लिया जाता, जैसे कि स्कित्सोफ्रीनिया को. रिपोर्ट के अनुसार गंभीर मानसिक रोग वाले 50 प्रतिशत और सामान्य मानसिक रोग वाले कम से कम 70 प्रतिशत लोगों का ठीक तरह से इलाज नहीं किया जाता है.
ओईसीडी की सलाह है कि कंपनियां लोगों को बेहतर सुविधाएं दें ताकि काम के कारण होने वाला तनाव कम किया जा सके. साथ ही बीमार होने पर छुट्टियां भी ठीक तरह दी जाएं और इस बात का ख्याल रखा जाए कि कर्मचारी को किस तरह की बीमारी है. इसके अलावा मानसिक रोगों के कारण लोगों को नौकरियों से ना निकालने की भी हिदायत दी गई है.
रिपोर्ट: रॉयटर्स/ ईशा भाटिया
संपादन: महेश झा