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भट्टी की हत्या पर जर्मन मीडिया में क्षोभ

४ मार्च २०११

पाकिस्तान के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री शहबाज भट्टी की हत्या पर जर्मन समाचार पत्रों में क्षोभ व्यक्त किया गया है. भारत के बजट में सामाजिक मदों में खर्चों में वृद्धि पर भी काफी ध्यान दिया गया.

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आतंक के शिकार शहबाज भट्टीतस्वीर: picture alliance/dpa

जहां तक पाकिस्तान का सवाल है तो शहबाज भट्टी की हत्या के सिलसिले में समाचार पत्र नोए ओसनाब्र्युकर त्साइटुंग में ध्यान दिलाया गया है कि वह पाकिस्तान में एकमात्र ईसाई मंत्री थे. समाचार पत्र में कहा गया है -

भट्टी को जान देनी पड़ी, क्योंकि वे उन चंद साहसी लोगों में से एक थे, जो दृढ़ता के साथ चरमपंथ का विरोध कर रहे थे. उन्होंने ईशनिंदा कानून की आलोचना की थी, जिसके मुताबिक ईश्वर की निंदा या कुरान से भटकाव पर मौत की सजा दी जा सकती है. हालांकि सरकारी तौर पर किसी को फांसी नहीं दी गई है, लेकिन इस कानून के चलते कुत्सा अभियान का दौर शुरू हो गया है. अगर किसी पर ऐसा आरोप लगता है, तो जांच के बाद उसकी जान पर आफत आ जाती है. पिछले सालों के दौरान ऐसे लोगों को सरेआम पीटकर मार डाला गया या रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मौत हुई. अपनी ताकत दिखाने के बदले सरकार मुल्लाओं के सामने झुक रही है.

बीलेफेल्ड के समाचार पत्र वेस्टफालेन ब्लाट में कहा गया है कि ट्यूनिशिया, मिस्र, लीबिया व मध्य पूर्व के अन्य देशों में लोकतांत्रिक आंदोलन से नई उम्मीदें जगी हैं और इस्लामपंथियों का डर कुछ घटा है. लेकिन शहबाज भट्टी की हत्या से स्पष्ट हो जाता है कि यह खतरा अभी दूर नहीं हुआ है. समाचार पत्र में टिप्पणी की गई है -

पंजाब प्रांत के गवर्नर सलमान तासीर के बाद भट्टी दूसरे प्रमुख नेता हैं, ईशनिंदा कानून के विरोध की वजह से जिन्हें 2011 में अपनी जान देनी पड़ी. यह कानून किसी प्रकार की आलोचना बर्दाश्त नहीं करता और इस्लाम से भटकने वाले धार्मिक विश्वास को मौत की सजा की धमकी दी जाती है. इस प्रकार यह संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार चार्टर का खुला उल्लंघन है. लेकिन पाकिस्तान जैसे देश में इसके समर्थन में लोग सड़क पर उतरते हैं. पश्चिम के लिए यह एक विडंबना है.

म्युनिख से प्रकाशित दैनिक जुएडडॉएचे त्साइटुंग के एक लेख में कहा गया है कि तालिबान के स्थानीय लड़ाकुओं और अल कायदा के गठबंधन से सारे देश में दहशत का राज कायम हो गया है. लेखक का कहना है -

पाकिस्तान में आतंक का राज है. चरमपंथियों ने कमान संभाल ली है और वे देश को एक अंधेरे भविष्य की ओर ले जा रहे हैं. अभी तक एक चुनी हुई सरकार है और सेना की ताकत भी खत्म नहीं हुई है. लेकिन सड़क पर किसका बर्चस्व है, इसका फैसला हो चुका है. पाकिस्तान कट्टपंथ के गर्त में गिर रहा है. हो सकता है कि सेना में भी वे घुसपैठ कर चुके हैं. यह एक खतरनाक बात होगी. लेकिन यह भी हो सकता है कि सेना के जनरल खुद को और देश को बचाने के लिए आखिरी मौका अपनाएं. सेना की बगावत ऐसी हालत में एक कम बदी होगी.

पाकिस्तान के बाद भारत. भारत का तेज आर्थिक विकास जारी है, लेकिन कीमतों में बेतहाशा वृद्धि से सरकार परेशान है. वर्तमान बजट में सामाजिक मदों में खर्च बढ़ाए जा रहे हैं, ताकि कमजोर आर्थिक वर्गों को राहत पहुंचे. बजट की रिपोर्ट देते हुए नोए त्स्युरिषर त्साइटुंग में कहा गया है -

अन्य बातों के अलावा संसद में एक फुड सिक्योरिटी बिल पेश किया जा रहा है, जिसके तहत गरीब परिवारों के लिए सस्ते में अनाज मुहैया कराया जाएगा. इसके साथ साथ किसानों के लिए मदद व अनुदान की व्यवस्था की जाएगी और देहाती क्षेत्रों में रोजगार की सुविधाएं बढ़ाई जाएंगी. गरीबी से संघर्ष के लिए अभी ही दसियों अरब रुपए खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन ज्यादा कामयाबी नहीं मिली है. इस धन का ज्यादातर हिस्सा भ्रष्ट नेताओं और अधिकारियों की जेब में चला जाता है. अगर ठीक से अमल में नहीं लाया जाता है, तो नए कार्यक्रम से भी सफलता नहीं मिलेगी.

इसी सप्ताह के दौरान भारत में जनगणना का एक अनोखा कार्यक्रम समाप्त हो गया, पिछले तीन हफ्तों से 27 लाख शिक्षक व सरकारी कर्मचारी घर घर पहुंचकर लोगों को गिन नहीं रहे थे, बल्कि उन पर नंबर लगा रहे थे. इसे इसके अंग्रेजी नाम यूनिक आइडिंटिफिकेशन प्रोजेक्ट के अक्षरों के अनुसार युआईडी का नाम दिया गया है. इसके बारे में बर्लिन के वामपंथी दैनिक टागेसत्साइटुंग का कहना है -

इस जन नंबरीकरण का महत्वपूर्ण राजनीतिक लक्ष्य है भ्रष्टाचार को रोकना. बहुतेरे गरीबों को शिकायत है कि सरकार की ओर से मिलने वाली सहुलियतों का सिर्फ एक छोटा सा हिस्सा उन्हें मिल पाता है. वे अपना राशन कार्ड दिखाते हैं कि उन्हें कितना कम चावल या गेंहू दिया गया है. लेकिन सिर्फ वे खुद इस कार्ड को देखते हैं या फिर भ्रष्ट राशन दुकानदार. अब हर युआईडी कार्ड में दर्ज रहेगा कि किसे कितना अनाज मिला है. इस तरह जांच की जा सकेगी कि किसको कितना मिला. अगर यह सफल हो पाता है तो एक बहुत बड़ा कदम होगा. विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में समाज कल्याण की सुविधाओं का पचास फीसदी भ्रष्टाचार की बलि चढ़ जाती है.

संकलन: अना लेमान्न/उभ

संपादन: एस गौड़