भारत-ईयू शिखर भेंट के मौके पर कैसे हैं रिश्ते
१५ जुलाई २०२०शिखर भेंट मार्च 2020 में ही होनी थी जिसके लिए प्रधानमंत्री मोदी यूरोप जाने वाले थे, लेकिन कोरोना महामारी की वजह से वो यात्रा नहीं कर सके और बैठक स्थगित हो गई. आज की शिखर भेंट से ठीक पहले मंगलवार को भारत और ईयू के बीच सिविल न्यूक्लियर कोऑपरेशन संधि के हस्ताक्षर होने से एक सकारात्मक माहौल बन गया है. मीडिया में आई खबरों में बताया गया है कि यह संधि नाभिकीय ऊर्जा के इस्तेमाल के नए तरीकों पर भारत और यूरोपीय संघ के देशों में हो रहे शोध में सहयोग पर केंद्रित रहेगा.
इसके अलावा दोनों पक्षों के बीच राजनीतिक और सामरिक मुद्दों, व्यापार, निवेश और अन्य आर्थिक मामलों पर सहयोग की समीक्षा होगी. भारत के साथ यूरोपीय संघ की शिखर स्तरीय बातचीत की शुरुआत साल 2000 में हुई थी और यह इसका बीसवां साल है. दोनों पक्षों ने हर साल मिलने और सहयोग की समीक्षा करने का फैसला लिया था, लेकिन पिछले सालों में इस पर अमल नहीं हुआ. पिछली शिखर भेंट 2017 में हुई थी. 2004 में नीदरलैंड्स के द हेग में हुई पांचवीं भेंट में दोनों पक्षों के रिश्तों को "स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप" के स्तर पर अपग्रेड किया गया था.
भारत-ईयू रिश्ते
इसके तहत दोनों पक्षों के बीच 31 विषयों पर "डायलॉग मैकेनिज्म" स्थापित किए गए हैं, जिनमें विभिन्न विषयों पर लगातार बातचीत होती रहती है. इनमें व्यापार, ऊर्जा सुरक्षा, विज्ञान और शोध, परमाणु प्रसार निरोध और निशस्त्रीकरण, आतंकवाद का मुकाबला, साइबर सुरक्षा, समुद्री डाकुओं का मुकाबला, प्रवासन इत्यादि शामिल हैं.
यूरोपीय संघ भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है जबकि भारत ईयू का नौवां सबसे बड़ा कारोबारी सहयोगी है. दोनों के बीच 2018-19 में 115.6 अरब डॉलर मूल्य का व्यापार हुआ था, जिसमें भारत से निर्यात किए गए उत्पादों का मूल्य 57.17 अरब डॉलर था और भारत में ईयू से आयात किए उत्पादों का मूल्य 58.42 अरब डॉलर था. उत्पादों के अलावा भारत ईयू का चौथा सबसे बड़ा सेवा निर्यातक भी है और ईयू के सेवा निर्यातों का छठा सबसे बड़ा ठिकाना है.
व्यापार के अलावा ईयू भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का भी सबसे बड़ा स्रोत है. अप्रैल 2000 और जून 2018 के बीच यूरोपीय संघ के सदस्य देशों से भारत में 90.7 अरब डॉलर मूल्य का विदेशी निवेश आया, जो भारत में हुए कुल विदेशी निवेश के लगभग 24 प्रतिशत के बराबर है. भारत का भी ईयू देशों में निवेश 50 अरब डॉलर के आस पास है.
शिखर भेंट से उम्मीदें
कोविड-19 महामारी के वैश्विक अर्थव्यवस्था पर असर के अनुमानों के बीच भारत ईयू से अर्थव्यवस्था में मदद की उम्मीद कर रहा है. प्रधानमंत्री मोदी के 'आत्मनिर्भर भारत' मिशन के संदर्भ में भी भारत-ईयू रिश्तों को लेकर चिंता है. दोनों पक्ष कई वर्षों से मुक्त व्यापार संधि (एफटीए) तय करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन ऐसा अभी तक नहीं हो पाया है. शिखर भेंट में इस मोर्चे पर कुछ प्रगति होती है या नहीं, सबकी निगाहें इस पर लगी होंगी.
जिंदल स्कूल ऑफ इंटरनैशनल अफेयर्स के प्रोफेसर और डीन श्रीराम चौलिया ने डीडब्ल्यू से कहा कि एफटीए कई वर्षों से ठंडे बस्ते में है और अब जब कि पूरे विश्व में आर्थिक मंदी जैसे हालात हैं, उन्हें नहीं लगता कि इस विषय पर कुछ विशेष प्रगति हो पाएगी. लेकिन चौलिया का यह भी कहना है अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुमान के अनुसार आने वाले समय में इन हालात के बावजूद भारत में विकास दर सकारात्मक रहेगी और अगर ईयू इस पर ध्यान दे तो वो भारत में निवेश करना चाहेगा.
पूर्व विदेश सचिव शशांक भी ईयू के साथ एफटीए की संभावनाओं को लेकर उदासीनता को स्वीकारते है. उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा कि उनका मानना है भारत में इस समय ईयू की जगह अमेरिका के साथ एफटीए पर हस्ताक्षर करने में ज्यादा दिलचस्पी है. शशांक ने यह भी कहा कि वो शिखर भेंट से किसी ऐसी घोषणा की उम्मीद नहीं कर रहे हैं जो अखबारों की सुर्खियों में आ सके.
सामरिक दृष्टि से सहयोग
चीन के साथ भारत के रिश्ते बिगड़ने के बाद इस प्रश्न को लेकर भी उत्सुकता है कि विश्व की कौन सी बड़ी शक्तियां भारत के साथ सहानुभूति रखती हैं और उसके साथ सामरिक रूप से अपने रिश्तों को बढ़ाना चाहती हैं. भारत और ईयू को लेकर भी यह उत्सुकता बनी हुई है. शशांक के अनुसार भारत को यूरोपीय संसद से जरूर समर्थन मिला था, लेकिन शायद भारत को चीन के खिलाफ ईयू से मिलने वाली सहानुभूति यहीं तक सीमित हो.
पूर्व विदेश सचिव कहते हैं कि ईयू देशों के चीन में कई हित हैं और कई यूरोपीय कंपनियों में भारी मात्रा में चीनी निवेश है, जिसकी वजह से ईयू चीन को उस तरह चुनौती नहीं दे सकता जिस तरह अभी अमेरिका दे रहा है.
श्रीराम चौलिया का मानना है कि ईयू के देश चीन के प्रति अपनी नीति बदलने पर विचार कर रहे हैं और ऐसे में भारत चाहेगा कि वो भारत की तरफ एक पार्टनर की नजर से देखें. वो कहते हैं कि वैसे तो ईयू को इस बात से कम ही फर्क पड़ता है कि चीन दक्षिण चीन समुद्री इलाके में देशों को धमका रहा है, लेकिन शिनचियांग, हांगकांग और तिब्बत जैसी जगहों पर हो रहे मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोपों के प्रति ईयू के देश चीन को नकारात्मक दृष्टि से देखते हैं. चौलिया कहते हैं कि इस तरह के साझा आधारों को लेकर भारत को ईयू देशों से साझेदारी करनी चाहिए.
__________________________
हमसे जुड़ें: Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore