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कोरोना ने दबोची भारतीय अर्थव्यवस्था की गर्दन

३१ अगस्त २०२०

भारत की अर्थव्यवस्था में कोरोना महमारी और उसके चलते तालाबंदी के बाद एक तिमाही में सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की है. अप्रैल से जून के बीच की तिमाही में भारत की जीडीपी 23.9 फीसदी गिर गई है.

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तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/D. Talukdar

जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद देश भर में बनाई गई वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य का योग है. भारतीय राष्ट्रीय सांख्यिकी विभाग से सोमवार को जारी आंकड़े अर्थशास्त्रियों की आशंकाओं के मुताबिक ही हैं. अर्थशास्त्रियों ने भविष्यवाणी की थी कि एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था महामारी के चलते दूसरी तिमाही में 15 से 25 फीसदी तक सिकुड़ जाएगी.

भारत में वित्तीय वर्ष अप्रैल से मार्च के बीच चलता है. भारत में जीडीपी के तिमाही आंकड़े जारी करने की शुरुआत 1996 में हुई थी और उसके बाद यह अब तक की सबसे बड़ी गिरावट है. महामारी के बाद बड़े एशियाई देशों में हुई आर्थिक गिरावट के लिहाज से भी यह सबसे बड़ी है. अगर पश्चिमी देशों पर नजर डालें तो ब्रिटेन में यह गिरावट 20.4 फीसदी थी. इधर सबसे ज्यादा बुरा हाल स्पेन का हुआ था जहां यह आंकड़ा 22.1 फीसदी पर पहुंच गया हालांकि भारत उससे भी आगे निकल गया है.

तालाबंदी का असर

भारत में तालाबंदी की शुरूआत 25 मार्च को हुई थी और जीडीपी के ये आंकड़े ठीक उसी के बाद के तीन महीनों के हैं. इससे पहले की तिमाही में 4.2 फीसदी का विकास हुआ था जबकि एक साल पहले की ठीक इसी अवधि के लिए यह आंकड़ा 5.2 फीसदी था.

आर्थिक जानकार आशंका जता रहे हैं कि वित्तीय वर्ष की दूसरी छमाही में भारत अब तक की सबसे बड़ी मंदी देखेगा. फिलहाल भारत में कोरोना महामारी दुनिया के किसी भी और देश की तुलना में तेजी से बढ़ रही है. जब किसी देश की अर्थव्यवस्था में लगातार दो तिमाही गिरावट रहती है तो उसे मंदी में घिरा कहा जाता है. भारत में इससे पहले 1980 के दशक में मंदी आई थी और आजादी के बाद तब तीसरी बार ऐसा हुआ था.

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तस्वीर: DW/J. Akhtar

भारत की अर्थव्यवस्था के घटकों में सबसे बड़े सेवा क्षेत्र में सबसे बड़ी हिस्सेदारी वित्तीय सेवाओं की है. पिछले साल की तुलना में इस बार यह 5.3 फीसदी नीचे गया है. इसी तरह उत्पादन क्षेत्र 39.3 फीसदी और निर्माण क्षेत्र 50.3 फीसदी सिकुड़ा है. विकास केवल कृषि क्षेत्र में हुआ है और वह भी महज 3.4 फीसदी.

भारत अब कोरोना से पीड़ित देशों की कतार में तीसरे नंबर पर आ गया है. उससे आगे सिर्फ ब्राजील और अमेरिका हैं. यहां अब तक 36 लाख लोग संक्रमित हो चुके हैं. रविवार को 24 घंटे में 78,761 मामले दर्ज हुए जो पूरी दुनिया के लिए एक दिन में सबसे ज्यादा मामलों के लिहाज से रिकॉर्ड है. केंद्र सरकार ने मई के मध्य से ही रणनीतिक रूप से पाबंदियां हटानी शुरू कर दीं. इन पाबंदियों की वजह से बड़ी संख्या में लोगों की नौकरी छिन गई और जिसका खामियाजा पहले ही सुस्त रफ्तार से चल रही अर्थव्यवस्था को उठाना पड़ा.

क्या कहते हैं अर्थशास्त्री

भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णामूर्ति सुब्रह्मण्यम का कहना है कि तालाबंदी के उपायों के बाद जीडीपी में गिरावट की आशंका पहले से ही थी. हालांकि उनका कहना है कि अर्थव्यवस्था की रिकवरी के संकेत मिलने शुरू हो गए हैं. कृष्णामूर्ति ने कहा है, "यह ट्रेंड अनुमानित रास्ते पर ही हैं...कोर सेक्टर के आउटपुट में पहले ही वी आकार की रिकवरी दिख रही है." वी आकार की रिकवरी में अर्थव्यवस्था तेजी से नीचे जा कर उतनी ही तेजी से वापस लौटती है.

हालांकि सभी लोग इतने आशावान नहीं हैं. मीडिया चैनलों पर चल रही बहस में अर्थशास्त्री बता रहे हैं कि संक्रमित लोगों की बढ़ती संख्या, सार्वजनिक वित्त पर बढ़ता बोझ और बढ़ती महंगाई रिकवरी को अभी कुछ समय भारत की अर्थव्यवस्था से दूर ही रखेगी. कई लोगों ने आशंका जताई है कि भारत की अर्थव्यवस्था पूरे वित्तीय वर्ष में 10 फीसदी की गिरावट देखेगी. यह वित्तीय वर्ष मार्च 2021 में खत्म होगा.

कुछ अर्थशास्त्रियों ने यह भविष्यवाणी भी की है कि अर्थव्यवस्था में सुधार अगले साल ही शुरू हो सकेगा. अर्थव्यवस्था का यह हाल तब है जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 266 अरब डॉलर के प्रोत्साहन पैकेज का एलान किया है. यह रकम भारत की जीडीपी के 10 फीसदी के बराबर है. अर्थशास्त्रियों का कहना है कि यह भारत की अर्थव्यवस्था के लिए "खोया साल" साबित हो सकता है, दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले देश में हजारों परिवार गरीबी के चंगुल में फंस सकते हैं.

एनआर/एमजे (डीपीए)

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